महान वैज्ञानिक डॉ होमी जहाँगीर भाभा ( आशीष शुक्ला ) 25 / 6/ 2014
आज भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न
देश है । । देश को इस राह पर लाने का श्रेय होमी जहाँगीर भाभा को जाता है । 30 अक्टुबर 1909 को मुम्बई मे
जन्मे भाभा बचपन से ही बडे सपने देखते और उन्हे पूरा करने का हर संभव प्रयास करते
थें । बालक अवस्था में इस महान वैज्ञानिक को नींद बहुत कम आती थी, डॉ. के अनुसार
कम नींद आना कोई बिमारी न थी बल्की तीव्र बुद्धी के कारण विचारों के प्रवाह की वजह
से कम नींद आती थी। इन्होने पुस्तकालय की व्यवस्था घर पर ही कर रखी गई थी। जहाँ वे
विज्ञान तथा अन्य विषयों से संबन्धित पुस्तकों का अध्ययन करते थे । भारतीय परमाणु
ऊर्जा कार्यक्रम के जनक इस महान वैज्ञानिक की प्रारंभिक शिक्षा कैथरैडल स्कूल में
हुई और आगे की शिक्षा के लिए जॉन केनन में पढने गये। विलक्षण बुद्धी के धनी होमी
जहाँगीर भाभा ने मात्र 15 वर्ष की आयु में आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धान्त पढ
लिया था। भौतिक शास्त्र में उनकी अत्यधिक रुची थी। गणित भी उनका प्रिय विषय था।
एलफिस्टन कॉलेज से 12वीं पास करने के बाद कैम्ब्रिज में पढने गये और 1930 में मैकेनिकल
इंजीनियर की डिग्री हासिल किये। 1934
में उन्होने पीएचडी की डिग्री
हासिल की, इसी दौरान होमी भाभा को आइजेक न्यूटन फेलोशिप मिली। होमी भाभा को
प्रसिद्ध वैज्ञानिक रुदरफोर्ड,
डेराक, तथा नील्सबेग
के साथ काम करने का अवसर मिला था। होमी भाभा ने कॉस्केटथ्योरी ऑफ इलेक्ट्रान का
प्रतिपादन करने साथ ही कॉस्मिक किरणों पर भी काम किया जो पृथ्वी की ओर आते हुए
वायुमंडल में प्रवेश करती है। उन्होने कॉस्मिक किरणों की जटिलता को सरल किया।
दूसरे विश्वयुद्ध के प्रारंभ में होमी भारत वापस आ गये। उस समय तक होमी भाभा विश्व
ख्याती प्राप्त कर चुके थे, यदि चाहते तो किसी भी देश में उच्च पद पर कार्य करके अच्छा वेतन पा
सकते थे। परन्तु उन्होने मातृभूमी के लिए कार्य करने का निश्चय किया। 1940 में भारतीय
विज्ञान संस्थान बंगलौर में सैद्धान्तिक रीडर पद पर नियुक्त हुए। उन्होने कॉस्मिक
किरणों की खोज के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की। 1941 में मात्र 31 वर्ष की आयु
में आपको रॉयल सोसाइटी का सदस्य चुना गया था। नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. सी.वी.
रमन भी होमी भाभा से प्रभावित थे। होमी भाभा ने टाटा को एक संस्थान खोलने के लिए
प्रेरित किया। टाटा के सहयोग से होमी भाभा का परमाणु शक्ति से बिजली बनाने का सपना
साकार हुआ। भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने की महात्वाकांक्षा मूर्तरूप लेने
लगी, जिसमें भारत सरकार तथा तत्कालीन मुम्बई सरकार का पूरा सहयोग मिला।
नव गठित टाटा इन्सट्यूट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च के वे महानिदेशक बने । होमी भाभा का
उद्देश्य था कि भारत को बिना बाहरी सहायता से परमाणु शक्ति संपन्न बनाना। मेहनती
और सक्रिय लोगों को पसंद करने वाले होमी भाभा अंर्तराष्ट्रीय मंचो पर अणुशक्ति की
शान्ती पर बल देते थे। निजी प्रतिष्ठा की लालसा उनके मन में बिलकुल न थी, एक बार
केन्द्रिय मंत्रीमंडल में शामिल होने का प्रस्ताव मिला किन्तु उन्होने नम्रतापूर्ण
प्रस्ताव को अस्विकार कर दिया। मंत्री पद के वैभव से ज्यादा प्यार उन्हे विज्ञान
से था। 1955 में होमी भाभ जिनेवा में आयोजित
एक सम्मेलन में भाग लेने गये थे,
वहां कनाडा ने भारत को परमाणु
रिएक्टर बनाने में सहयोग देने का प्रस्ताव दिया। जिसको उचित समझते हुए भाभा वहीं
से तार भेजकर पं. जवाहर लाल से अनुमति माँगे, नेहरु जी ने समझौते की अनुमति दे
दी तब कनाडा के सहयोग से
सायरस परियोजना प्रारंभ हुई। इसके पहले भारत ने पहले रिएक्टर निमार्ण का कार्य
शुरू कर दिया था। 6 अगस्त 1956 को इसने कार्य़ करना प्रारंभ कर दिया था जिसके लिए ईधन ब्रिटेन ने
दिया था। इस रिएक्टर का उपयोग न्यूट्रॉन भौतिकी, विकिरण, प्राणीशास्त्र, रसायन शास्त्र
और रेडियो आइसोटोप के निर्माण में किया जाने लगा। सायरस परियो+जना 1960 में तथा
जेरिलिना परियोजना 1961 में पूरी हुई। 1200
इंजिनियरों और कुशल कारीगरों ने
दिन-रात इसमें काम किया। कार्य पूरा होने पर भारत का इस क्षेत्र में आत्मविश्वास
बढा। रिएक्टरों के निर्माण से देश में परमाणु शक्ति से चलने वाले विद्युत संयत्रों
की परियोजना का मार्ग प्रश्सत हुआ। तारपुर अणुशक्ति केन्द्र से बिजली का उत्पादन होने लगा बाद में दो अन्य केन्द्र राजस्थान
में राणाप्रताप सागर तथा तमिलनाडु में कल्पकम में स्थापित किये गये। ये सभी डॉ. भाभा के प्रयासों का ही परिणाम
था। भाभा विदेशी यूरेनियम पर निर्भर नही रहना चाहते थे। वे स्वदेशी थोरियम, स्वदेशी
प्लेटोरेनियम आदि का उपयोग बनाना चाहते थे। विश्व में थोरियम का सबसे बङा भंडार
भारत में है। केरल के तट पर स्थित मोनेजाइट बालू को संसोधित करके थोरियम और
फॉस्फेट को अलग-अलग करना प्रारंभ कर दिया गया। थाम्ब्रे में अपरिष्कृत थोरियम को
हाइड्रोआक्साइड तथा यूरेनियम के संसाधन के लिए संयत्र लगाया गया। डॉ. होमी जहाँगीर
भाभा के प्रयासों का ही परिणाम है कि कृषि उद्योग और औषधी उद्योग तथा
प्राणीशास्त्र के लिए आवश्यक लगभग 205 रेडियो आइसोटोप आज देश में उपलब्ध
हैं। भाभा ने जल्दी नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थों जैसे- मछली, फल, वनस्पति आदि को
जीवाणुओं से बचाने के लिए विकिरण के प्रभाव को इस्तेमाल करने की उच्च प्राथमिकता
दी और इस दिशा में शोध किया। बीजों के शुद्धीकरण पर भी जोर दिये ताकि अधिक से अधिक
उच्च कोटी का अन्न उत्पादन किया जा सके। भूगर्भीय विस्फोटों तथा
भूकंपो के प्रभावों का अध्यनन करने के लिए एक केन्द्र बंगलौर से 80 किलोमिटर दूर
खोला गया। विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने के लिए उन्होने भारतीय वैज्ञानिकों
को भारत वापस आने का आह्वान किया। उनके बुलाने पर कई वैज्ञानिक भारत आए। डॉ.भाभा
को वैज्ञानिकों की परख थी, उन्होने चुन-चुन कर कुशल वैज्ञानिकों को टॉम्ब्रे तथा अन्य
संस्थानो में योगयता अनुसार पद तथा अनेक सुविधाएं दिलवाई। उन्होने योग्य और कुशल
वैज्ञानिकों का एक संगठन बना लिया था। लालफिताशाही से उन्हे सख्त चिढ थी तथा किसी
की मृत्यु पर काम बन्द करने के वे सख्त खिलाफ थे। उनके अनुसार कङी मेहनत ही सच्ची
श्रद्धांजलि है। अपनी प्रतिभा और विज्ञान की नई उपलब्धियों से उन्हे अनेक सम्मान से सम्मानित किया गया था। 1941
में उन्हे रॉयल सोसाइटी ने फैलो
निर्वाचित किया। उस समय उनकी आयु मात्र 31 वर्ष की थी। 24 जनवरी 1966 को जब वे
अर्तंराष्ट्रीय परिषद में शान्ति मिशन के लिए भाग लेने जा रहे थे तो उन्हे ले जाने
वाला बोइंग विमान 707 कंचन जंघा बर्फीले तुफान में उलझकर गिर गया। जिससे भारत माता का
स्वप्नद्रष्टा महान पुत्र आकस्मिक इह लोक छोङकर परलोक सिधार गया । उनके सिद्धान्तो को अपनाते
हुए टॉम्ब्रे के वैज्ञानिकों ने इस असहनीय दुःख को सहते
हुए पूरे दिन परिश्रम पूर्ण कार्य करके उन्हे सच्ची श्रधांजली दी। भारत सरकार ने 12 जनवरी 1967 को टॉम्ब्रे
संस्थान का नामकरण उनके नाम पर यानि की भाभा अनुसंधान केन्द्र कर दिया। डॉ. होमी भाभा असमय चले गये किन्तु उनका सपना साकार हो
गया, 1974 में भारत पूर्ण परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन गया। असाधारण
प्रतिभा के धनि होमी भाभा सिर्फ सपने देखने में ही विश्वास नही करते थे, बल्की उन्हे
पूरा करने में जुट जाते थे। उनके अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि आज भारत परमाणु
सम्पन्न राष्ट्र की श्रेणी में गिना जाता है। डॉ. भाभा उदार विचार धारा के थे, उनके व्यवहार
में मानवियता की झलक सदैव दृष्टीगोचर होती थी। मित्र बनाने में अग्रणी होमी भाभा
लोगों की व्यक्तिगत समस्याओं को भी हल करने में सहयोग देते थे। डॉ. भाभा का प्रयास
न सिर्फ भारत के लिए बल्की सभी विकासशील देशों के लिए मूल्यवान है। भारत उनके
योगदान का सदैव ऋणी रहेगा। भारत देश को सर्वश्रेष्ठ बनाने की उनकी सोच सदा वंदनीय
है। डॉ. होमी जहाँगीर भाभा की सृजनता तथा मृदुल व्यवहार को शत्-शत् नमन करते हैं।