Jul 22, 2015

Ashish kumar shukla 

आशीष कुमार शुक्ला 

नोएडा कार्यकारी संपादक 'लेबर निगरानी ब्यूरो'      

जनसामना  में प्रकाशित लेख 



जनसामना में प्रकाशित लेख 
 

Ashish kumar shukla 

आशीष कुमार शुक्ला 

नोएडा कार्यकारी संपादक 'लेबर निगरानी ब्यूरो'      

जनसामना समाचार पत्र में प्रकाशित लेख



Ashish kumar shukla 

आशीष कुमार शुक्ला 

नोएडा कार्यकारी संपादक 'लेबर निगरानी ब्यूरो'      

स्वैच्छिक दुनिया में प्राकाशित लेख 



लेबर निगरानी ब्यूरो 1 से 15 जुलाई संस्करण                      में प्रकाशित लेख 




         खतरे में चौथा स्तंभ

  समाज सदियों से बदलाव का साक्षी रहा है, आज इसमें बहुत व्यापक बदलाव देखा जा सकता है। किसी मकान को बनाने के लिए नीव तैयार की जाती है, नीव जितनी मजबूत होगी मकान उतना ही मजबूत होता है। हमारा समाज भी इसी तरह की नीव पर टिका हुआ है। यह नीव विधानमंडल, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया है। समाज 21 वीं सदी में भ्रष्टाचार, अपराध, जातिवाद, नक्सलवाद, आतंकवाद, और कई अन्य बड़ी समस्याओं से ग्रषित है।  
 इन चारों का स्तर आज लगातार गिरता जा रहा है। लोगों को न्यायपालिका  से न्याय की उम्मीद नहीं रहती और कार्यपालिका से काम की। विधानमंडल से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। चौथा स्तंभ यानी मीडिया इसके ऊपर सदैव किसी न किसी तरह से दबाव रहा है। यह कभी स्वतंत्र नहीं हो पाया। आए दिन इसपर सवालिया निशान खड़े होते रहते हैं। बावजूद इसके समाज में मौजूद अपवादों से यह लगातार लड़ता रहता है।
       जो लोग चौथे स्तंभ से जुड़े उन्हें लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ा है। आज पत्रकारों पर जिस तरह का हिंसात्मक प्रहार करके, उनके हौसले को ना सिर्फ तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है बल्कि, यह चौथे स्तंभ की आवाज को दबाने की एक साजिश है।
आजादी से अब तक मीडिया में व्यापक बदलाव आया है। पहले मीडिया को  समाज सेवा के लिए जाना जाता था, धीरे-धीरे यह बिजनेस बन गया। इसके बावजूद भी यह लोकतंत्र के चौथे पिलर के तौर पर अपनी भूमिका निभाता रहा है। शायद अब कुत्ता आदमी को काटे तो समाचार नहीं है, और आदमी कुत्ते को काटे तो समाचार है कि, परिभाषा में बदलाव की जरूरत है। जल्द घटित हेमा मालिनी के साथ की घटना इसका ताजा उदाहरण है। हेमा को ही समाचार में प्रमुखता दी गयी। ना की उस मृत बच्ची और उसके परिवार को।
आज ऐसे हालात बन चुके हैं कि, देश में करप्‍शन और कुशासन (पुअर गवर्नेंस) ने संवैधानिक संस्थानों तक की विश्वसनीयता को खतरे में डाल दिया है।  देश को आजादी मिलने के बाद मीडिया के स्वरूप और इसके दायरे में एक बड़ा बदलाव आया। आज मीडिया के लिए हालात अब उतने मुश्किल नहीं हैं जितने आज़ादी से पहले हुआ करते थे। मीडिया की निष्‍पक्षता पर लगातार सवाल उठते रहते हैं। यही कारण है कि, इसकी विश्वसनीयता कम होती जा रही है।
तमाम चुनौतियों के बावजूद भी यह अपना काम बखूबी कर रहा है। आज पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया जाता है और अपराधी खुले में घूमते नज़र आते हैं।  चौथे स्तंभ के आवाज को दबाने और खरीदने की आज भरपूर कोशिस की जा रही है। लोग निर्भया गैंगरेप कांण्ड, जम्मू-कश्मीर बाढ़ त्रासदी, भूमि घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला, आईपीएल में भ्रष्टाचार, के मामले को कैसे भूल सकते हैं। जिसमें मीडिया ने अपना सतप्रतिशत दिया और सत्य को उजागर किया। सदैव से मीडिया ने जनता की आवाज़ कार्यपालिक, न्यायपालिका तक पहुंचाई है और आज भी पहुंचा रही है।  
1857 की क्रांति के बाद गैगिंग एक्ट लाया गया जिसके तहत प्रेस पर ऐसा कोई भी न्यूज़ मैटीरियल छापने पर पाबंदी लगा दी गई जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हो।  इसके जरिए प्रेस की स्वतंत्राता को छीनने की पूरी कोशिश की गई।
 इसके बाद वर्नाकुलर एक्ट लाकर इसकी स्वतंत्रता छीनने की कोशिश जारी रही। इसके तहत प्रेस को सरकार के खिलाफ कुछ भी छापने की आज़ादी नहीं थी।  कुछ भी छापने से पहले अखबारों को ना सिर्फ सारी स्टोरीज़ दिखानी होती थीं बल्कि एक बॉन्ड भी साइन करना होता था। हालांकि इस एक्ट के खिलाफ पूरे देश की मीडिया एकजुट हो गई और तब तक इसका विरोध करती रही जब तक सरकार ने एक्ट वापस नहीं लिया। फिर धीरे धीरे दी हिन्दू, पायनियर, अमृत बाजार पत्रिका, द ट्रिब्यून जैसे कई समाचार पत्र सामने आए। प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म करने का प्रयास लगातार होता रहा है, आज भी इसकी स्वतंत्रता को खत्म करने के लिए एक साजिश रची जा रही है।
          पत्रकार अपनी कलम को चलाने से पहले सौ बार जनता के हितों का ख्याल रखता है। एक पत्रकार जो दिन रात मेहनत करके खबरों को इकट्टठा करता है और लोगों के सामने सच उजागर करता है उसके लिए उसे क्या हांसिल होता है। एक खौफनाक मौत, और जलालत।

             चौथे स्तंभ के साथ कब तक खिलवाड़ होता रहेगा? यह प्रसाशन से बहुत बड़ा सवाल है। देश के लिए लड़ने वाले शहीद पत्रकारों को कब न्याय मिलेगा। अब समय आ गया है कि, चौथा स्तंभ अपनी रक्षा के लिए भी लड़े इसे अपनी स्वतंत्रा बरकरार रखनी होगी। अगर समय रहते ना हो सका तो निश्चित ही चौथा स्तंभ हमेशा-हमेशा के लिए टूट जाएगा।