समान नागरिक संहिता कितना आवश्यक.. ?
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ASHISH KUMAR SHUKLA
समान नागरिकता कानून का अर्थ, भारत के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून से है। समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है, जो सभी धर्मों के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही 'समान नागरिक संहिता' की मूल भावना है।
समान नागरिक संहिता से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों पर लागू होता है चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हों, यह कानून किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। भारत का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है किंतु अभी तक इसको लागू नहीं किया जा सका है।
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- चूंकि भारत पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है
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समान नागरिक संहिता का मुद्दा काफी पुराना वह विवादित मुद्दा है, चूंकि भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है और यहां विभिन्न जाति समुदायों के लोग निवास करते हैं, भारतीय संविधान इन्हें तमाम तरह की स्वतंत्रता प्रदान करता है जिससे वह देश में स्वतंत्र रूप से बिना किसी जोर दबाव के निवास कर सकें। वहीं समान नागरिक संहिता देश में निवास कर रहे सभी लोगों के लिए ( चाहे वह किसी भी जाति, धर्म समुदाय से जुड़े हों ) को एक समान यानी एक जैसा नागरिक कानून की व्याख्या कराता है।
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- पसर्नल लॉ के चलते समान नागरिक संहिता लागू होना आसान नहीं
भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को एक समान रूप से देखा जाता है ( कुछ अपवादों को छोड़ कर ) लेकिन हमारे देश में तमाम समुदायों के पर्सनल लॉ हैं, जिसके आधार पर वह समाज में अपने हिसाब से रह रहे हैं, इसके अनुसार शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंटवारे में फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के तहत कर रहे हैं।
वहीं समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है, इस तरह से अगर कहा जाए कि ये किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है तो निर्विवाद होगा।
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- इसे लागू करना है राज्य की जिम्मेदारी
संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्छेद- 44 के तहत राज्य की जिम्मेदारी बताया गया है, लेकिन ये आज तक देश में लागू नहीं हो पाया। जिसके आधार पर कहें कि हम वर्षों से संविधान की मूल भावना का अपमान कर रहे हैं तो यह निर्विवाद होगा। सवाल ये उठता है कि आखिर इसे लागू करने में क्या दिक्कतें आ रही हैं और यह क्यो अब तक लागू नहीं हो सका है।
कई लोगों का ये मानना है कि इसके लागू होने से देश में हिन्दू कानून लागू हो जाएगा जबकि सच्चाई ये है कि समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है जो हर धर्म के लोगों के लिए बराबर होगा और उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं होगा। इसके अलावा इसके लागू न होने के पीछे कई सरे राजनीतिक कारण भी हैं, वोट बैंक की राजनीति के चलते कोई भी पार्टियां इस मुद्दे पर हस्ताक्षेप करना पसंद नहीं करती हैं।
एक नजर में
- फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।
- अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाए तो सभी धर्मों के लिए एक जैसा कानून होगा।
- यानी शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों ना हो।
- फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी क़ानूनों के तहत करते हैं।
- मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए इस देश में अलग कानून चलता है जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ज़रिए लागू होता है।
- आज़ादी के बाद वर्ष 1950 के दशक में हिन्दू क़ानून में तब्दीली की गई लेकिन दूसरे धर्मों के निजी क़ानूनों में कोई बदलाव नहीं हुआ।
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- अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाए तो सभी धर्मों के लिए एक जैसा कानून होगा।
- यानी शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों ना हो।
- फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी क़ानूनों के तहत करते हैं।
- मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए इस देश में अलग कानून चलता है जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ज़रिए लागू होता है।
- आज़ादी के बाद वर्ष 1950 के दशक में हिन्दू क़ानून में तब्दीली की गई लेकिन दूसरे धर्मों के निजी क़ानूनों में कोई बदलाव नहीं हुआ।
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- निष्कर्ष
भारत में तमाम समुदायों के अपने- अपने पर्सनल लॉ हैं, जिसके चलते समान नागरिक संहिता लागू करना आसान नहीं है। इसके अलावा इसे लागू करने से पहले कानूनों में ढेर सारी तब्दीलियां करने की आवश्यकता होगी। वहीं दूसरी समस्या ये है कि तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक की राजनीति के चलते इस मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहती, जिसके चलते संविधान भी ताक पर है, नतीजन आज भी हमारा देश अलग- अलग कानूनों की जंजीरों में जकड़ा हुआ है।
आज फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, उजबेकिस्ता्न जैसे देशों में समान नागरिक संहिता सिस्टम लागू है। अगर हम धार्मिक आधार पर बनाए गए पुराने कानूनों से मुक्ति पा लेते तो हमारा देश अब तक ना जाने कितना आगे बढ़ चुका होता, ये सिर्फ कानून का नहीं बल्कि सोच का विषय है।
धर्म पर आधारित कानूनों की जंजीरों से आजादी का एकमात्र रास्ता ये है कि सबके लिए समान कानून बनाए जाएं। अगर भारत में समान नागरिक संहिता लागू हो जाए तो देश को एक अलग और नई पहचान मिलेगी जिससे देश के विकास के मार्ग स्वतः खुल जाएंगे।
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WRITER A SPECIAL STORY WRITER IN BBC KHABAR HINDI DELHI
FOR IAS/PCS SPECIAL
