May 22, 2014

  दिल को ही सुनाने दो –आशीष शुक्ला


गर जो गुमनाम हैं गुमनाम ही मर जाने दो
अब तो कोई और करो बात चलो जाने दो

          
दिल की सुनते हैं, जीते हैं अपनी शर्तों पे
          
शौक़ ए शौहरत है जिसे उसे ही कमाने दो

बात बन जाएगी कोई दिल जो हमें चाहेगा
जो भी अपना है उसे पास तो बुलाने दो

          
चंद तनहाई भरे लम्हे अपनी दौलत है
          
अब किसी यार से मिल के इसे लुटाने दो

ख़ुद ही कहते हैं ख़ुद से, ख़ुद ही सुनते हैं
दिल के नग़्में हैं इन्हें दिल को ही सुनाने दो

          
एक तो इश्क़ है, दूजा है ग़म जुदाई का
          
और कोई बात नहीं यही हैं फ़साने दो

किसी का तोड़ के दिल चैन कहाँ मिलता है
प्यार से मौत भी आए तो उसे आने दो

 

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