Dec 10, 2015

             

भीख मांगने वाला  बच्चा

कहानी लिखने का प्रयास किया हूं यह मेरी पहली कहानी है। कैसी लगी और क्या कमियां रह गयी जरूर लिखे अापका  आशीष ..........

भीख मांगने वाला बच्चा.

सुबह के आठ बजे होंगे श्रीवास्तव जी बहुत तेजी से बिस्तर से उठते हैं, हाय राम आज तो अॉफिस के लिए काफी देर हो गई पक्का लेट होऊंगा। और जोर-जोर से  बीबी को आवाज लगाने लगशांति शांति तुमने मुझे नहीं उठाया देखो कितनी देर हो गयी मैं तुम्हारीं वजह से आज अॉफिस जरूर लेट होऊंगा। सारा गुस्सा बीबी पर डालते हुए। …… शांति भी कम नहीं है….देखिए देर रात तक टीवी ।।।कितनी बार मना किया है कि टाइम से सो जाया कीजिए, पर आप हैं की मानते ही नहीं कौन आपके पीछे लगा रहे सारा वक्त घर में और काम भी होते हैं आपके काम की अलावा।  श्रीवास्तव जी पर गरजते हुएअच्छा-अच्छा तो अब मैं भूखा ही ऑफिस जाऊं।? अरे नहीं नहां कर आइये आप नाश्ता तैयार हैवोह अच्छा जानकर अच्छा लगा की तुम्हें मेरी फिर्क है .. श्रीवास्तव जी मुस्कुराते हुए……हां हां अब जाइये भीश्रीवास्तव जी की शादी को २५  साल हो गये थे लेकिन, ऐसा लगता था मानों अभी नई शादी हुई हो। गाने गुनगुनगुनाते हुए श्रीवास्तव जी नहा कर बाहर आते हैं और सीधे टेबल पर पहुंच जाते हैं,…..अरे अब कुछ लाओगी यह फिर पूरा दिन बनाती ही रहोगी भाई जोर की भूख लगी है….  ऑफिस के लिए भी लेट हो रही है। गयी महराज गरजिये न। गरम-गरम नाश्ता करके श्रीवास्तव जी बाय बोलकर कार के पास जाते हैं और चौकीदार को ड़ाट मारते हुए यार आज फिर तुमने गाड़ी नहीं साफ की और भुन-भुनाते हुए कार को स्टार्ट कर ऑफिस के लिए निकल लेते हैं। घर से करीब १६ किलोमीटर की दूरी पर ऑफिस है, पेशे से श्रीवास्तव जी पत्रकार हैं। घड़ी में करीब अब बजकर तीस मिनट हो रहे होगें। १० बजे तक ऑफिस पहुंचना होता है.. खुद से भुन-भुनाते हुए आज देर से ऑफिस पहुंचुंगा और आज जरूरी मीटिंग है…..अब कार की स्पीड ८० तक पहुंचा देते हैं, कार दना-दना सड़क पर जा रही है शुक्र है आज ट्रैफिक कम है.. १५ किलोमीटर की दूरी २० मिनट से भी कम समय में तय कर ली अब लास्ट रेड लाइट ही पार करना है। यहां थोड़ी ट्रैफिक रहती हैगाड़ी धीरे-धीर अन्य गाड़ियों के साथ चलती है। आखिर अब गाड़ी कुछ देरे के लिए रुकी श्रीवास्तव जी लोगों कोसते हुए जाने कितने मोटर कार हो गये हैं। तभी एक बच्चा जो शक्ल से भिखारी तो नहीं लगता पर फिर भी पैसे के लिए कार के सीशे को साफ करने लगा। श्रीवास्तव जी ने दस का नोट उस लड़के को देते हुए बोले जा कुछ खा लेना बच्चा काफी खुश हुआ और धन्यवाद देते हुए वहां से निकल लेता है .. श्रीवास्तर जी पता नहीं क्या करती है हमारी सरकार बच्चों को भी नहीं पढ़ा लिखा सकती चोर हैं सब। …. हो चाहे जो मजाल है जो आज तक श्रीवास्तव जी को किसी ने घूस के नाम पर एक पैसा देने की हिम्मत की हो। घड़ी में करीब अब दस बज चुके थे ऑफिस तो टाइम से पहुंच गये गाडी पार्क करके सीधे लिफ्ट की ओर बढ़ते हैं…. मीटिंग को अटेंड करके श्रीवास्तव जी बॉस के केबिन में जाते हैं और उनसे बात-चीत करने लगते हैं।  इसके बाद वहां से निकलकर सीधे अपने कैबिन में जाते हैं। कम्प्युटर को ऑन कर काम करने बैठ जाते हैं…. आज ये खबर है, इसको इताना छोटा करता हूं लोग क्या-क्या करते रहते हैं। सारी खबरें देख रहे थे तभी एक खबर भिखारियों पर थी उसमें बच्चों के भिखारी बनने और उनके बारे में बहुत कुछ लिखा था। वैसे तो पहले भी कई बार इस तरह की स्टोरी देखी थी लेकिन, इस बार कुछ अलग स्टोरी ही थी। एक साथ तीन भिखारी बच्चों की मौंत ट्रक के आगे आने से हुई थी इस स्टोरी को पढ़कर मन ही मन दुखी हुए। . और ट्रक वाले की गलती पर बकबका रहे हैं। काम खत्म हो चुका था….  लोकल एडिशन अख़बार का छपने के लिए जाने वाला था।  शाम के बजे होगें अब श्रीवास्तव जी ऑफिस से निकल कर गाड़ी की तरफ बढ़ते हैं। बाहर काफी ठंड है जल्दी से कार में बैठकर वहां से निकल लेते हैं। घर पहुंचकर धंटी बजाते हैं शांति दरवाजा खोलती है। गये आप आइये …. और दरवाजा बंद कर लेती हैं। आज यार बहुत बुरा हुआ तीन मासूम बच्चे जो भीख मांगते थे आज ट्रक से कुचल कर मारे गये काफी दुख हुआराम राम ….शांति ने कहा यह तो बुरा हुआ भगवान भी …. और दोनों बाते करने लगे फिर खाना खाते हुए श्रीवास्तव जी समाचार देखने लगे और शांति से बात करने लगे। आज मैं काफी थक गया हूं सोने जा रहा हूंठीक है जाइये। श्रीवास्तव जी मन ही मन दुखी है। और राम का नाम लेकर सो जाते हैं।  सपने में वह गाड़ी चला रहे हैं और वह तीनों बच्चे जो मर चुके हैं, उन्हें एक रेड लाइट पर खड़े दिखते हैं, वह तेजी से श्रीवास्तव जी की गाड़ी की तरफ आते हैं और बडे ही प्यार से चाचा कुछ दे दो ना चाचा ….श्रीवास्तव जी ठीक है भाई ठहरो तो ठहरो तोऔर वह दस की तीन नोट निकालकर तीनों को देते हैं और गाड़ी आगे बढ़ा लेते हैं। श्रीवास्तव जी हैरान हैं, कि यह तो बच्चे जिंदे हैं। और मन ही मन खबर भेजने वाले को कोसने लगते हैं। तभी उनकी नजर सामने से रहे ट्रक पर पड़ती है उन तीनों बच्चों को वह देखते हैं। जो पैसे पाकर मगन होकर अपनी धुन में जा रहे हैं।…. पीछे से रहे ट्रक से वह पूरी तरह अंजान हैं,,,, ट्रक ने एक बार भी हॉर्न बजाया होगा ट्रक तेजी से उनकी तरफ रहा था जब ट्रक उन बच्चों के पास पहुंचा तो हॉर्न बजाया तीनों बच्चे घबरा गये और इधर- उधर भागने लगे लेकिन तीनों इतने छोटे थे की भाग नहीं पाये और रोते हुए ट्रक के नीचे जाते हैं। यह सब नजारा श्रीवास्तव जी के सामने हो गया पर वह कुछ कर नहीं पाए अगर वह कोशिश  करते तो उन सबको बचा सकते थे।,… नींद खुली सुबह के सात बज रहे थे नहा-धोकर नाश्ता करके ऑफिस के लिए निकल पड़ते हैं, गाड़ी तेजी से सड़क पर जा रही है फिर रेड लाईट पर गाड़ी रोकते हैं वही बच्चा फिर आता है और फिर पैसे मांगता है….. और श्रीवास्तव जी खुशी-खुशी उसे पैसे देकर हाल खबर पूछने लगे….. इसके बाद तकरीबन महीने तक जब भी श्रीवास्तव जी वहां पहुंचते वह भिखारी बच्चा वहां उनसे मिलता जरूर और पैसे लेकर खुश हो जाता। कभी भी उसने मुफ्त के पैसे नहीं लिए होंगे गाड़ी जरूर साफ करता था हांलाकि श्रीवास्तव जी मना करते पर फिर भी वह हंसते हुए उनकी बातों पर ध्यान दिये बिना गाड़ी साफ करने लगता। यह देखकर श्रीवास्तव जी काफी खुश होते की मेहनती लड़का है पर मन ही मन सोचते की अभी उम्र ही कितनी है। एक दिन की बात है, रेड लाइट पर कार खड़ी थी पर वह बच्चा उन्हें नजर नहीं आया इस बार श्रीवास्तव जी काफी बेचैन थे क्यों वह बच्चा नहीं आयातभी उसे दौड़ते हुए आते देखा लेकिन यह क्या उसके पीछे एक और मोटा तगड़ा आदमी उसे दौड़ा रहा था। वह गाड़ी के पास आकर जोर- जोर से रोने लगता है.. श्रीवास्तव जी बिना कुछ पूछे-जांचे गेट खोल देते हैं। वह जल्दी से गाड़ी में बैठ जाता है। वह  आदमी जो उसका पीछा कर रहा था वह अब रुक गया और वापस जाने लगा।बच्चा अभी भी डरा हुआ था और रो रहा था। उससे बहुत कुछ पूछना चाहा पर वह कुछ बोलने को तैयार था। बहुत समझाने पर उस बच्चे ने अपना नाम किशन बताया और अपने बारे में सब कुछ बताने लगा। आंखों से आंसू की धारा बह रही थी।…. मेरा घर इलाहाबाद है मैं अपने घर से भाग कर दिल्ली आया था ताकी बाबू की ड़ांट सुननी पड़े। मैं जैसे ही ट्रेन से उतरकर बाहर आने लगा तभी मुझसे कुछ लोग मिले और मुझे अच्छा काम दिलाने के बहाने पता नहीं कहां ले गये। वहां पर बहुत सारे बच्चे मेरी तरह पहले से थे मैं बहुत डरा हुआ था। मुझे दादा के पास ले जाया गया और उन्होंने कड़क आवाज में क्या नाम है तेरा ….मैंने  अपना नाम बताया नहीं.....आज से तेरा कोई नाम नहीं है.. तू बस वही करेगा जो दादा कहेंगे। और फिर मुझे एक कमरे में बंद कर दिया गया उसके बाद इन लोगों ने मुझे भीख मांगने के लिए कहा और तबसे लेकर अब तक भीख मागवा रहे हैं।  जोर-जोर से रोने लगाश्री वास्तव जी उसे चुप करते हैं औऱ उसे अपने साथ लेकर एक कपड़े की दुकान पर नया कपड़ा दिलाते हैं औऱ फिर उससे उसका घर का पता पूंछते हैंपता उसकी जुबान पर फटा-फट रटा हुआ था। अपना पूरा पता झट से बताता है.. श्रीवास्तव जी अब उसे उसके घर छोड़ने का निश्चय कर लेते हैं।  गांड़ी स्टार्ट करके.. बिना कुछ किसी को बताए इलाहाबाद के लिए निकल लेते हैं।करीब १३ घंटे गाड़ी चलाने के बाद वह इलाहाबाद पहुंच जाते हैंबच्चे की उम्र १४ साल की ही थी पर उसे रास्ते सारे रटे पड़े थे। घर अब करीब था बच्चा अब खुशी से रो रहा था सोच रहा था बाबू क्या कहेंगे। और बहुत सवाल उसके जहन में गूंज रहा था।  घर के पास पहुंचता है दूर से कहता है वह हैं मेरे बाबू जी श्रीवास्तव जी घर के सामने अपनी कार रोकते हैं। सामने से किशन के बाबू जी आते हैं अंदर किशन को देख कर रोने लगते हैं औऱ उसे गाड़ी से उतार कर चिपका लेते हैं। श्रीवास्तव जी कार से नीचे उतरते हैं और फिर उसके बाबू राम प्रताप से बात करने लगते हैं। दोनों अदर जाते हैं किशन की मां किशन को देखकर काफी खुश है रो रही हैअब श्रीवास्तव जी पूरी कहानी राम प्रताप को समझाते हैंराम प्रताप आप मेरे लिए भगवान निकले हैं नहीं तो हमने तो अपना इकलौता बेटा खो दिया होता….. बस एक दिन थोड़ा सा ड़ाट दिया था इसको उसी दिन बिना बताए पता नहीं कहां चला गया हमने बहुत ढूंढा क्या-क्या नहीं किया फिर भी यह हमें नहीं मिला….. औऱ रोने लगते हैंश्रीवास्तव जी चुप कराते हैं और कहते हैं की प्रभु की यही इच्छा थी….बस अब आप इसे पढ़ाइये लिखाइये और अच्छा आदमी बनाइये। फिर रात रुकने के बाद सुबह श्रीवास्तव जी वहां से दिल्ली के लिए रवाना हो जाते हैं……..लखनऊ दिल्ली हाइवे पर गाड़ी ८० और १०० की स्पीड से चलती जा रही है। गांड़ी में पुरानी गज़लें बज रही हैं…. श्री वास्तव जी की आंखों से तेज आंशुओं की धारा बह रही है……वह चाहते हुए भी अपने आशुंओं को नहीं रोक पा रहे हैं।….. उन्हें वह पुराने दिन याद रहे हैं जब उन्होंने अपने १० साल के इकलौते बेटे को ड़ाटा था और वह स्कूल से जाने कहां चला गया था बहुत ढ़ूढने की कोशिस की पर नहीं मिला ……. और वह जोर-जोर से रो रहे हैं अपने आपको कोश रहे हैं…….. जाने किस हाल में होगा मेरा बेटा…… औऱ ढेर सारे सवाल श्रीवास्तव जी को परेशान कर रहे थे। ………वह मन ही मन उस बच्चे के बारे में सोच रहे हैं और खुश भी हो रहे हैं।....

कहानी- आशीष कुमार शुक्ला संपादक लेबर निगरानी ब्यूरो
Story by- Ashish Kumar Shukla Editor LNB