जनता मोदी और उम्मीदें
दुनिया भर में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गईं सरकारें
पहले सौ दिनों के दौरान वादे पूरे करने का रिपोर्ट कार्ड जारी करती हैं। मोदी
सरकार ने भी यही किया। रक्षा, रेलवे, इंश्योरेंश क्षेत्र में सरकार ने
विदेशी निवेश को बढ़ाया है यह देश के हित मे होगा। मोदी भारतीय अर्थव्यवस्था को
पटरी पर लाने के वायदे के साथ सत्ता में आए हैं और वह लगातार इसपर काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री को देश में शासन और प्रशासन को सुधारने की जरूरत है। मोदी सरकार कुछ
हद तक सुशासन लाने में कामयाब तो रही हैं, लेकिन आर्थिक मामले में उनकी कोई ठोस
नीतियां नहीं दिख रही जो की चिंता का विषय है।
मोदी ने बेहतर रेलवे, बुलेट
ट्रेनों, आयकर सुधारों, कौशल विकास,
ढांचागत सुधार,आर्थिक समावेशन और अधिक उत्पादन
की बातों पर ध्यान दिया है। मोदी के चुनावी भाषणों ने लोगों की उम्मीदें काफ़ी
बढ़ा दी थीं जिसके चलते उन्हें पूर्ण बहुमत प्राप्त हुई। जनता से उन्होंने 'गुड गवर्नेंस' का वादा किया था कुछ हद तक इस वायदे
को पूरा करने में वह जरूर सफल रहे हैं। हमें याद रखना चाहिए कि, 'गुड गवर्नेंस' लाना कोई साधारण काम नहीं है इसके लिए
हमें काफी इंतजार करना होगा। भारत मे भ्रष्टाचार एक बहुत बड़ी समस्या है यही कारण
है कि, 'गुड गवर्नेंस' जल्दी नहीं लाया
जा सकता। प्रधानमंत्री वाकई एक प्रधान
सेवक की तरह काम कर रहे हैं। वह श्रम को महत्व देते हैं। अपने इस कार्यकाल मे मोदी
ने कभी छुट्टी नहीं ली वह लगातार देश हित के लिए सोचते रहते हैं उनके अंदर काम
करने का एक गज़ब का जज़्बा है। न सिर्फ खुद वह पूरी मेहनत, लगन से कार्य कर रहे
हैं, बल्कि अपने मंत्रियों और अधिकारियों से भी करवा रहे हैं।
जनता को यह समझना चाहिए कि, जिस प्रकार टूटे
हुए घर को तुरंत नहीं बनाया जा सकता ठीक उसी प्रकार न तो तुरंत नीतियों को बनाया
जा सकता है और न ही लागू किया जा सकता है। भारत की मौजूदा स्थिति एक टूटे हुए घर
की तरह है। जिस उम्मीद से जनता ने मोदी को चुना था उस लिहाज से उन्हें सब्र का
परिचय देना चाहिए।
आज महंगाई बढ़ रही है जिसे लोग मोदी सरकार की
सबसे बड़ी नाकामी मान रहे हैं। हमें सोचना चाहिए कि, जमाने के साथ महंगाई हमेशा बढ़ती
रही है औऱ आज भी बढ़ रही है, परन्तु मोदी को यह बात ध्यान रखना चाहिए कि, विश्व
स्तर पर छवि निखारते-निखारते वह अपनी छवि जनता के समक्ष न खराब कर लें। ध्यान रहे
भारत की अर्थव्यवस्था एक मिश्रित अर्थ व्यवस्था है जिसमे लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा खेती
पर निर्भर है। कहने का उद्देश्य भले ही भारत की शैक्षिणिकता 75 प्रतिशत के आस-पास
हो परन्तु, ज्यादातर लोग आज भी गांव मे निवास कर रहे हैं।
भारत की शिक्षा नीति बहुत कमजोर है। एक गरीब किसान और
सामान्य जनता के लिए वैश्विकता को समझ पाना संभव नहीं है। उसके छोटे-छोटे ख्वाब
हैं उसे खाने के लिए रोटी चाहिए और सोने के लिए छत। अगर वह यह नहीं पाएगा तो देश
कितनी भी तरक्की कर ले, वैश्विकता पर छवि निखार ले, परन्तु इससे देश की 65 प्रतिशत आबादी पर शायद कोई फर्क नहीं पडेगा।
मै सोचता हूं कि मोदी को इनके लिए सोचने की आवश्यकता है यह उनकी प्रथम प्रथमिकता होनी
चाहिए।

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