Dec 20, 2019

यह देश तुम्हारी ज़ागीर नहीं, आग लगाना है तो अपने    
            आशियाने में लगाओ 'देश में नहीं'

देश की संसद में नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद से लगातार इसका विरोध हो रहा है। तमाम राजनीतिक दलों के साथ-साथ विशेष समुदाय इसका विरोध बहुत ही हिंसक तरीके से कर रहे हैं। सड़कों पर जली हुई बसें, आग में स्वाहा हुईं बाइकें गवाह हैं उस मंज़र का जिसमें देश की शांति और सुव्यवस्था को स्वाहा करते हुए अशांति, हिंसा और नफ़रत फैलाने की कोशिश की गई। बिल के पास होने के बाद से बिना सिर पांव के अफ़वाह फैलाई गई कि ये बिल देश के मुसलमानों के लिए सही नहीं है और उनकी नागरिकता पर ख़तरा है। जबकि संसद में सरकार ने बिल को लेकर सभी तरीके के द्वंद को पहले ही स्पष्ट कर दिया था। बावजूद इसके सोशल मीडिया पर इसे मोदी बनाम मुसलमान की तर्ज़ पर खूब शेयर किया गया। कुछ ने इसे सरकार की जीत के तौर पर आंका तो कईयों ने मुसलमानों की हार के तौर पर भी इसे देखा।

यह दुर्भाग्य है कि इसे लेकर देश में कोहराम मचाया गया। जिसमें देश के उन युवाओं ने हिस्सा लेते हुए हिंसक प्रदर्शन किया जिन्हें देश के भविष्य के रूप में देखा जाता है। देश में कई लोगों ने इसे आंदोलन का नाम तक दिया। साथ ही इसे व्यक्तिगत जीत हार के तौर पर भी देखा। यही वज़ह रही कि दिल्ली समेत कई जगहों पर खूब हिंसा हुई। जिसमें उपद्रियों के साथ-साथ कई पुलिसकर्मियों को चोट आई। साथ ही इसी हिंसा की आग में कई घरों के चिराग़ भी बुझ गये। कुल मिलाकर क़ानून के बहाने सरकार को निशाना बनाते हुए देश में खूब अशांति फैलाने की कोशिश की गयी। साथ ही देश की अथाह संपत्ति को नफ़रत की आग में झोंक कर स्वाहा कर दिया गया।

ये घटनायें सिर्फ़ घटनायें मात्र नहीं हैं जो आज घटित हुईं और कल ठीक हो जाएंगी। गौर करने वाली बात है कि बीते दिनों में जब भी कोई बड़ी घटना हुई है तब लोगों के द्वारा इसी तरह से देश की संपत्ति को आग के हवाले किया गया है। जिस तरह से चंद लम्हों में सरकारी संपत्ति को स्वाहा करने के बाद इन लोगों के चेहरे पर आज तनिक अफ़सोस दिखाई नहीं दे रहा है ये बताता है कि आज देश किस धारा पर आगे बढ़ रहा है।  सवाल उठता है कि क्या इनके सोचने समझने की शक्ति बिल्कुल ही क्षीण हो चुकी है?
किसी मुद्दे पर विरोध करने का हक सभी को है, संविधान इसकी इज़ाजत भी देता है लेकिन शांति पूर्वक। किन्तु 'नागरिकता संशोधन क़ानून' पर जिस तरह से राजनीति की रोटी सेंकते हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन पूर्वोत्तर के राज्यों में हुआ और देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंचा ये काफ़ी दुखद है। पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां अपनी अस्मिता से जोड़ते हुए इसका विरोध किया गया वहीं देश के अन्य राज्यों इस क़ानून को ही गैर-संवैधानिक करार देकर खूब मनमानी हुई।

सवाल उठता है कि क्या देश की न्यायपालिका पर क्या इनको भरोसा नहीं है? क्या सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारियों पर इन्हें शक है? जो खुद ही तय कर ले रहे हैं कि ये कौन सा क़ानून संवैधानिक है और कौन सा गैर-संवैधानिक? और अगर सब कुछ खुद ही तय कर लेना है तो फिर बार-बार लोकतंत्र की दुहाई क्यो?

'नागरिकता संशोधन क़ानून' आर्टिकल 14 का उल्लंघन है ये सुप्रीम कोर्ट ही तय करने दें


नागरिकता संशोधन क़ानून बनने के बाद से देश के अधिकतर क्षेत्र में इसका विरोध संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन बताते हुए किया गया। तर्क ये रहा कि बिल संविधान के आर्टिकल 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। बेशक हमारा संविधान धर्म के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव और वर्गीकरण को गैर क़ानूनी समझता है लेकिन इसके भी कई पहलू हैं। समता के अधिकार के तहत सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं कर सकती है। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि "राज्य किसी नागरिक के खिलाफ सिर्फ़ धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा।"

अब इसी बात को लेकर इंडियन मुस्लिम लीग समेत कांग्रेस नेता जयराम रमेश और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस क़ानून पर रोक लगाने से इनकार करते हुए याचिकाओं पर सुनवाई की तारीख 22 जनवरी 2020 तय की है। इसके साथ ही केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर देश में सर्वोच्च न्यायालय जैसे संस्था जो भारतीय संविधान के संरक्षक है। जो मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं पर विचार करते हुए अपना फैसला सुनाता है उस पर इन तथाकथित लोगों को भरोसा नहीं है? जो आग लगा रहे हैं। और अगर है तो फिर देश में भ्रम और अशांति फैलाने की जूरूरत क्या है। फिलहाल अब  नागरिकता क़ानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट पर सबकी नज़रें टिकी हुई हैं। साथ ही अब सरकार को इस क़ानून को लेकर सही तत्वों और तर्कों के साथ सुप्रीम कोर्ट में ये साबित करना होगा कि ये क़ानून किसी भी तरह से संविधान का उल्लंघन नहीं करता है।

#NRC  #CAB #CAA PROTESTER 

Feb 3, 2019

दौपद्री वस्त्रहरण का पोस्टर लगवाने वाले कॉन्ग्रेसी नेता बताएँगे कि ‘महिला सशक्तिकरण’ क्या है?

मोदी सरकार के अंतरिम बजट में महिला सशक्तिकरण पर कॉन्ग्रेस के नेताओं की प्रतिक्रिया देश की महिलाओं के प्रति उनके वास्तविक रवैए को बताता है। यह बताता है कि किस तरह से विपक्ष में रहकर अच्छे कामों को कोसना चाहिए। बजट के बाद तमाम कॉन्ग्रेसी नेताओं ने ‘महिला सशक्तिकरण’ को लेकर अपने हिसाब से बिना सिर-पैर के सरकार पर निशाना साधा। महाराष्ट्र कॉन्ग्रेस के पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री जयंत पाटिल ने कहा कि मोदी सरकार महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कुछ नहीं किया है।
इन्हें नहीं लगता है कि सरकार के बजट में ‘उज्ज्वला योजना’ के तहत ₹30 करोड़ की वृद्धि से देश की महिलाएँ सशक्त होंगी। क्योंकि यह मुद्दा तो गैस चूल्हे से जुड़ा है। इन्हें यह भी नहीं पता है कि ‘राष्ट्रीय क्रेच योजना’ में सरकार ने ₹20 करोड़, महिला शक्ति केंद्रों की योजना में ₹35 करोड़, विधवा घरों के लिए ₹7 करोड़ की वृद्धि की है।
इसके बाद भी इनको सरकार की ‘महिला सशक्तिकरण’ को लेकर किया जा रहा प्रयास नहीं दिख रहा है, क्योंकि ये विपक्ष में हैं और इस लिहाज़ से आलोचना करना इनका जन्म-सिद्ध अधिकार है। सवाल उठता है कि जिस सरकार ने आने वाले तीन-चार महीने के बजट में महिलाओं के लिए इतना कुछ किया उसको लेकर वह कॉन्ग्रेस कैसे ताने दे सकती है जिसने 60 सालों तक देश में राज किया हो?
शायद इस बात को यूपी कॉन्ग्रेस के प्रवक्ता अंशु अवस्थी भी भूल गए, तभी उन्होंने भी आँख बंद करते हुए कह दिया कि मोदी सरकार महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर गंभीर नहीं है। जबकि सरकार ने महिलाओं की सशक्तिकरण को बजट में पूरी वैल्यू दी।
बजट में इस बार सरकार ने 2019-20 में ‘महिला सुरक्षा’ और ‘सशक्तिकरण मिशन’ के लिए 
1330 करोड़ आवंटित किए हैं। इसके अलावा सरकार ने ‘प्रधानमंत्री मातृत्व योजना’ के तहत महिलाओं की मैटरनिटी लीव 12 हफ़्ते से बढ़ाकर मातृत्व अवकाश की अवधि को 26 हफ़्ते कर दिया है। सरकार के इन तमाम प्रयासों के बावजूद भी कॉन्ग्रेस के इन नेताओं को लगता है कि सरकार महिलाओं को लेकर गंभीर नहीं है। सही मायने में इनके लिए महिला सशक्तिकरण के मायने अलग हैं।

तेलंगाना में वस्त्रहरण का पोस्टर लगाकर किया गया महिलाओं का अपमान

दरअसल, सरकार के बजट में नुक्स निकालने वाले कॉन्ग्रेसी नेताओं के लिए महिलाओं का अपमान करना ही उनका सशक्तिकरण है। तभी तो तेलंगाना में इनके द्वारा चुनाव आयोग पर निशाना साधने के लिए एक पोस्टर लगाया जाता है, जिसमें दौपद्री का वस्त्रहरण किया जा रहा था। पोस्टर के माध्यम से तेलंगाना में लोकतंत्र को द्रौपदी और धृतराष्ट्र को चुनाव आयोग के रूप में कॉन्ग्रेस द्वारा प्रदर्शित किया गया था।
अब आप इनके ‘महिला सशक्तिकरण’ की सोच को इस पोस्टर लगाने के आधार पर अंदर तक आसानी से समझ सकते हैं, क्योंकि यही वो पार्टी है जिसने ऐसी हरक़त करते हुए हिंदू-मुस्लिम महिलाओं का न सिर्फ़ अपमान किया बल्कि, महिलाओं के प्रति अपनी सोच को भी उजागर किया।

महिला से अभद्रता करने वाले कॉन्ग्रेस के पूर्व सीएम कैसे समझ सकते हैं महिला सशक्तिकरण?

बीते दिनों कर्नाटक के पूर्व सीएम और कॉन्ग्रेसी नेता सिद्धारमैया का एक महिला से अभद्रता करने का मामला सामने आया था। जिसमें वो केवल इस बात को लेकर महिला से अभद्रता कर बैठते हैं क्योंकि उन्हें अपने बेटे के ख़िलाफ़ कुछ भी सुनना अच्छा नहीं लगता है। दरअसल, मामला सिर्फ़ इतना था कि महिला ने सीएम के विधायक बेटे की शिक़ायत लेकर उनके पास पहुँची थी। इस पर सिद्धारमैया ने महिला से न सिर्फ़ अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया बल्कि हाथापाई के दौरान उस महिला से माइक तक छीन लिया। इस हाथापाई में उक्त महिला का दुपट्टा तक सिद्धरमैया के हाथों से गिर गया और अपने इस कृत्य के लिए उन्होंने माफ़ी माँगना तक उचित नहीं समझा।
ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी बन पड़ता है कि अगर सीएम जैसे पद पर रह चुके कॉन्ग्रेसी नेताओं का व्यवहार इस क़दर ज़मीन छूता है, तो सोचिए छुट-भइए नेता महिलाओं के बारे में क्या सोच रखते होंगे? कहते हैं देखने वाले को पत्थर में भी ईश्वर दिख जाता है और न देखने वालों के लिए वह महज़ एक पत्थर ही होता है। ठीक वैसी ही स्थिति कॉन्ग्रेसी नेताओं की है जिन्हें मोदी सरकार के बजट में महिलाओं की सुविधाओं से संबंधित योजनाएँ और व्यवस्थाएँ नज़र नहीं आती।

Feb 1, 2019

₹5 मे भर पेट खिलाने वाली कॉन्ग्रेस बोल रही है कि ₹6 हजार से किसानों का क्या होगा!
संसद में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने आज अंतरिम बजट 2019 पेश किया। इस मौके पर जहाँ सरकार ने मजदूर, गरीब और किसानों को राहत देने की घोषणाएँ की, तो वहीं दूसरी ओर कॉन्ग्रेस समेत तमाम विपक्षी नेता बजट को लेकर मातम मनाते नज़र आए। दरअसल, सरकार ने ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ के जरिए 2 हेक्टेयर तक भूमि वाले छोटी जोत के किसान परिवारों को ₹6,000 प्रति वर्ष की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता उपलब्ध कराने की बात कही, जिसके बाद विपक्ष से अजीबोगरीब प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गईं।
इसके बाद जैसे-तैसे होश संभालते हुए कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी समेत कई अन्य नेताओं ने इसकी आलोचना इस बात का तर्क देते हुए किया कि ₹6 हजार में किसानों का क्या होगा? लेकिन शायद इन्हें 2013 में अपनी ₹5, ₹12 में खाना खिलाने वाली बात याद नहीं आई जिसमें यूपी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने गरीबों को ₹12 में भरपेट खाना मिलने की बात कही थी। इसके अलावा पार्टी के नेता ने रशीद मसूद ने यहाँ तक दावा कर दिया था कि दिल्ली में ₹5 में भरपेट खाना मिलता है।

कंज़ंप्शन एक्सपेंडिचर सर्वे से उड़ी थी कॉन्ग्रेस की नींद 

दरअसल, 2013 में यूपीए सरकार के दौरान कंज़ंप्शन एक्सपेंडिचर सर्वे में गरीबी के नए आँकड़ों के बचाव में राज बब्बर ने ऐसा कहा था। रिपोर्ट में कॉन्ग्रेस के ‘गरीबी हटाओं’ के नारे की पोल खुली थी। रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि पिछले 12 सालों में अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ी। रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि 2000 से 2012 के बीच अमीर तबके के ख़र्च करने की क्षमता 5 से 60% बढ़ी थी, वहीं गरीब की इन 12 सालों में ख़र्च करने की ताकत 5 से 30% तक ही बढ़ पाई थी।
- विज्ञापन -
- लेख आगे पढ़ें -
यह हास्यास्पद है कि गरीबों के वोटबैंक की चाह लेकर उनके द्वार जाने वाली कॉन्ग्रेस मोदी सरकार के साल में ₹6 हजार यानी महीने में ₹500 देने की बात का मज़ाक उड़ा रही है। शायद कॉन्ग्रेसी नेता यह भूल गए हैं कि उनके ₹5 में भरपेट खाना खिलाने में रोज के 5X365= ₹1825 ही आते थे।
वैसे भी, इन पैसों से किसान खेती करेगा, क्योंकि उन्हें थोड़ी मदद मिल जाए, बीज-खाद के पैसे मिल जाएँ, तो वो फसल उगा लेंगे, और खाना भी खा लेंगे। जब किसान लगातार सूद और महाजन के जंजाल में फँसकर आत्महत्या करते हैं, तो उसका समाधान एक बार की क़र्ज़माफ़ी नहीं, बल्कि सतत प्रयासों से उसके जीवन में स्वाबलंबन लाना है। किसी को भी मुफ़्तख़ोरी अच्छी नहीं लगती, ख़ासकर उस किसान को तो बिलकुल ही नहीं जिसका जीवन सरकार, तंत्र, मौसम और पैसों की किल्लत से लड़ते हुए जीने में कट जाती है।

कॉन्ग्रेसी और विपक्षी नेताओं का प्रलाप उनकी घबराहट को दर्शाता है

सरकार द्वारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ के तर्ज़ पर पेश किए गए इस बजट पर विपक्षी नेताओं का ऊल-जूलूल बोलना उनकी घबराहट को भी दर्शाता है। शायद राहुल गाँधी इस आँकड़े और ₹5 में खाना खिलाने वाली स्कीम भूल गए तभी उन्होंने सरकार के किसानों को ₹6 हजार देने की बात का यह कहते हुए विरोध किया कि ₹17 दिए जाने का प्रावधान करना किसानों का अपमान है।\

राहुल गाँधी को अब यह बात कौन समझाए कि किसानों के लिए एक-एक पैसे कि कितनी महत्ता है। राहुल गाँधी भूल गए कि यह रकम उनके हाथ में न आकर सीधे बैंक खाते में जाएगी।किसान यह समझता है, भले ₹13 का ऋण माफ़ी देने वाले राहुल न समझें, कि ये पैसे उनकी बीड़ी के लिए नहीं है। वो जानते हैं कि इतने पैसों में बुआई के समय वो खेत में बीज रोप सकते हैं। अगर सरकार की हर योजना का लाभ उन्हें मिले, तो यह मदद बड़ी मदद है।

https://hindi.opindia.com/national/its-ironical-that-congress-is-calculating-pm-kisan-scheme-when-they-announced-rs-5-was-enough-for-a-meal/