यह देश तुम्हारी ज़ागीर नहीं, आग लगाना है तो अपने
आशियाने में लगाओ 'देश में नहीं'
देश
की संसद में नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद से लगातार इसका विरोध हो
रहा है। तमाम राजनीतिक दलों के साथ-साथ विशेष समुदाय इसका विरोध बहुत ही
हिंसक तरीके से कर रहे हैं। सड़कों पर जली हुई बसें, आग में स्वाहा हुईं
बाइकें गवाह हैं उस मंज़र का जिसमें देश की
शांति और सुव्यवस्था को स्वाहा करते हुए अशांति, हिंसा और नफ़रत फैलाने की
कोशिश की गई। बिल के पास होने के बाद से बिना सिर पांव के अफ़वाह फैलाई गई
कि ये बिल देश के मुसलमानों के लिए सही नहीं है और उनकी नागरिकता पर ख़तरा
है। जबकि संसद में सरकार ने बिल को लेकर सभी
तरीके के द्वंद को पहले ही स्पष्ट कर दिया था। बावजूद इसके सोशल मीडिया पर
इसे मोदी बनाम मुसलमान की तर्ज़ पर खूब शेयर किया गया। कुछ ने इसे सरकार की
जीत के तौर पर आंका तो कईयों ने मुसलमानों की हार के तौर पर भी इसे देखा।
यह दुर्भाग्य है कि इसे लेकर देश में कोहराम मचाया गया। जिसमें देश के उन युवाओं ने हिस्सा लेते हुए हिंसक प्रदर्शन किया जिन्हें देश के भविष्य के रूप में देखा जाता है। देश में कई लोगों ने इसे आंदोलन का नाम तक दिया। साथ ही इसे व्यक्तिगत जीत हार के तौर पर भी देखा। यही वज़ह रही कि दिल्ली समेत कई जगहों पर खूब हिंसा हुई। जिसमें उपद्रियों के साथ-साथ कई पुलिसकर्मियों को चोट आई। साथ ही इसी हिंसा की आग में कई घरों के चिराग़ भी बुझ गये। कुल मिलाकर क़ानून के बहाने सरकार को निशाना बनाते हुए देश में खूब अशांति फैलाने की कोशिश की गयी। साथ ही देश की अथाह संपत्ति को नफ़रत की आग में झोंक कर स्वाहा कर दिया गया।
ये घटनायें सिर्फ़ घटनायें मात्र नहीं हैं जो आज घटित हुईं और कल ठीक हो जाएंगी। गौर करने वाली बात है कि बीते दिनों में जब भी कोई बड़ी घटना हुई है तब लोगों के द्वारा इसी तरह से देश की संपत्ति को आग के हवाले किया गया है। जिस तरह से चंद लम्हों में सरकारी संपत्ति को स्वाहा करने के बाद इन लोगों के चेहरे पर आज तनिक अफ़सोस दिखाई नहीं दे रहा है ये बताता है कि आज देश किस धारा पर आगे बढ़ रहा है। सवाल उठता है कि क्या इनके सोचने समझने की शक्ति बिल्कुल ही क्षीण हो चुकी है?
किसी मुद्दे पर विरोध करने का हक सभी को है, संविधान इसकी इज़ाजत भी देता है लेकिन शांति पूर्वक। किन्तु 'नागरिकता संशोधन क़ानून' पर जिस तरह से राजनीति की रोटी सेंकते हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन पूर्वोत्तर के राज्यों में हुआ और देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंचा ये काफ़ी दुखद है। पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां अपनी अस्मिता से जोड़ते हुए इसका विरोध किया गया वहीं देश के अन्य राज्यों इस क़ानून को ही गैर-संवैधानिक करार देकर खूब मनमानी हुई।
यह दुर्भाग्य है कि इसे लेकर देश में कोहराम मचाया गया। जिसमें देश के उन युवाओं ने हिस्सा लेते हुए हिंसक प्रदर्शन किया जिन्हें देश के भविष्य के रूप में देखा जाता है। देश में कई लोगों ने इसे आंदोलन का नाम तक दिया। साथ ही इसे व्यक्तिगत जीत हार के तौर पर भी देखा। यही वज़ह रही कि दिल्ली समेत कई जगहों पर खूब हिंसा हुई। जिसमें उपद्रियों के साथ-साथ कई पुलिसकर्मियों को चोट आई। साथ ही इसी हिंसा की आग में कई घरों के चिराग़ भी बुझ गये। कुल मिलाकर क़ानून के बहाने सरकार को निशाना बनाते हुए देश में खूब अशांति फैलाने की कोशिश की गयी। साथ ही देश की अथाह संपत्ति को नफ़रत की आग में झोंक कर स्वाहा कर दिया गया।
ये घटनायें सिर्फ़ घटनायें मात्र नहीं हैं जो आज घटित हुईं और कल ठीक हो जाएंगी। गौर करने वाली बात है कि बीते दिनों में जब भी कोई बड़ी घटना हुई है तब लोगों के द्वारा इसी तरह से देश की संपत्ति को आग के हवाले किया गया है। जिस तरह से चंद लम्हों में सरकारी संपत्ति को स्वाहा करने के बाद इन लोगों के चेहरे पर आज तनिक अफ़सोस दिखाई नहीं दे रहा है ये बताता है कि आज देश किस धारा पर आगे बढ़ रहा है। सवाल उठता है कि क्या इनके सोचने समझने की शक्ति बिल्कुल ही क्षीण हो चुकी है?
किसी मुद्दे पर विरोध करने का हक सभी को है, संविधान इसकी इज़ाजत भी देता है लेकिन शांति पूर्वक। किन्तु 'नागरिकता संशोधन क़ानून' पर जिस तरह से राजनीति की रोटी सेंकते हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन पूर्वोत्तर के राज्यों में हुआ और देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंचा ये काफ़ी दुखद है। पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां अपनी अस्मिता से जोड़ते हुए इसका विरोध किया गया वहीं देश के अन्य राज्यों इस क़ानून को ही गैर-संवैधानिक करार देकर खूब मनमानी हुई।
सवाल उठता है कि क्या देश की न्यायपालिका पर क्या इनको भरोसा नहीं है?
क्या सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारियों पर इन्हें शक है? जो खुद ही तय कर ले
रहे हैं कि ये कौन सा क़ानून संवैधानिक है और कौन सा गैर-संवैधानिक? और
अगर सब कुछ खुद ही तय कर लेना है तो फिर बार-बार
लोकतंत्र की दुहाई क्यो?
'नागरिकता संशोधन क़ानून' आर्टिकल 14 का उल्लंघन है ये सुप्रीम कोर्ट ही तय करने दें
नागरिकता संशोधन क़ानून बनने के बाद से देश के अधिकतर क्षेत्र में इसका
विरोध संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन बताते हुए किया गया। तर्क ये रहा
कि बिल संविधान के आर्टिकल 14 के समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
बेशक हमारा संविधान धर्म के आधार पर किसी भी तरह के
भेदभाव और वर्गीकरण को गैर क़ानूनी समझता है लेकिन इसके भी कई पहलू हैं।
समता के अधिकार के तहत सरकार भारत में किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं
कर सकती है। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि "राज्य किसी नागरिक के खिलाफ
सिर्फ़ धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान
या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा।"
अब इसी बात को लेकर इंडियन मुस्लिम लीग समेत कांग्रेस नेता जयराम रमेश और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने इस क़ानून पर रोक लगाने से इनकार करते हुए याचिकाओं पर सुनवाई की तारीख 22 जनवरी 2020 तय की है। इसके साथ ही केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर देश में सर्वोच्च न्यायालय जैसे संस्था जो भारतीय संविधान के संरक्षक है। जो मौलिक अधिकारों और मानव अधिकारों के गंभीर उल्लंघन से सम्बन्धित याचिकाओं पर विचार करते हुए अपना फैसला सुनाता है उस पर इन तथाकथित लोगों को भरोसा नहीं है? जो आग लगा रहे हैं। और अगर है तो फिर देश में भ्रम और अशांति फैलाने की जूरूरत क्या है। फिलहाल अब नागरिकता क़ानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट पर सबकी नज़रें टिकी हुई हैं। साथ ही अब सरकार को इस क़ानून को लेकर सही तत्वों और तर्कों के साथ सुप्रीम कोर्ट में ये साबित करना होगा कि ये क़ानून किसी भी तरह से संविधान का उल्लंघन नहीं करता है।
#NRC #CAB #CAA PROTESTER

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