Feb 17, 2021

 

हाल-ए-तहसील का ‘भौकाल’ लेखपाल का

अगर वरासत बनने में जिंदगी घिसी जा रही है तो इसमें दोष आपका नहीं है। दोष उस शख्स का है जो अब इस दुनिया में नहीं रहा। आखिर उसने ही तो आपको वरासत बनवाने के लिए छोड़ दिया। ना वो ऊपर जाता ना वरासत बनाने की झंझट होती।

हेलो! लेखपाल साहब क्या हुआ मेरी वरासत का उसकी वजह से सारे काम रुके हुए हैं। साहब बताइए क्या हुआ कब तक दर्ज हो जाएगी वरासत। जवाब आता है! बस कुछ दिन की और बात है। कुछ दिन की और बात करते-करते डेढ़ महीने निकल चुके हैं लेकिन अब तक वरासत हाथ नहीं आयी। अब धीरज रखने की बात है। आखिर डेढ़ महीने कलेजे पर पत्थर रख कर इंतजार किए ना थोड़ा और कर लेंगे तो क्या बुरा हो जाएगा। आखिर लेखपाल साहब भी क्या करें ठहरे अकेले और जिम्मा दे दिया पूरे 5-6 इलाके का ऊपर से अधिकारी एक जान को हजारों काम थमा देते हैं। अब लेखपाल साहब बैठकर वरासत चढ़ाएं यह फिर काम देखें।

दरअसल कुछ कामों के लिए जरूरत होती है बाबू (रजिस्ट्रार) की और बाबू तो बाबू होते हैं कर ही क्या सकते हैं। सुनने में आता है कि कई तहसीलों में एक ही बाबू हैं! अब एक ही बाबू बताओ कितना काम करेगा? उसके ऊपर इतनी सारी फाइल लदी होती है कि बेचारा फाइल के नीचे खुद ही दब जाता है। फिर भी वो आपके लिए कैसे भी करके सांस लेते हुए धीरे-धीरे काम निपटाता है। अब इसमें जनता परेशान होती है तो बताओ किसकी गलती है? लेखपाल साहब की? बाबू की? या फिर सरकार की। आप जिसको भी दोष देना चाहें दे सकते हैं। आपको पता होना चाहिए कि दोष आपका है जो वरासत बनवाने गए। नहीं-नहीं नहीं दोष आपका भी नहीं है। दोष उस शख्स का है जो अब इस दुनिया में नहीं रहा और आपको वरासत बनवाने के लिए छोड़ गया। ना वह ऊपर जाते और ना ही वरासत बनाने का झंझट होता।

लेखपाल साहब अपनी जेब से पैसे कहां से भरेंगे?
खैर जो भी हो क्या ही कहा जाए लेखपाल साहब अपना काम कर दिए उनके जिम्मे हजार काम है। ऊपर से दौड़ने के लिए जो भत्ता मिलता है ₹100। बताओ गज्बे है ना? यहां ₹100 लीटर पेट्रोल हुआ पड़ा है वहां ₹100 उनको भत्ता मिलता है। मेरे मित्र ‘दीपक’ जो गोण्डा से हैं एकदम भौकाली लेखपाल। गुस्से में कहते हैं इससे अच्छी नौकरी तो सफाई कर्मचारी की है पैसे के मामले में ना की भौकाल के मामले में। लेखपालों की तनख्वाह का तो छोड़ ही दें महीने में कब आएगी इसका पता तो लेखपाल साहब को भी नहीं होता। ऊपर से लोग कहते रहते हैं लेखपाल साहब बिना पैसा लिए काम नहीं करते हैं। ठीक ही तो है कैसे काम करेंगे बिना पैसे के? आखिर बताओ कौन सा काम होता है बिना पैसे के। आपको क्या लगता है लेखपाल साहब का इतना बड़ा पेट है कि वह पैसे बचा लेंगे? ऐसा थोड़ी होता है सब लेखपाल एक जैसे नहीं होते कुछ इतने ईमानदार होते हैं कि आप पैसे दो तो आपको डांट देंगे। लेकिन हाल-ए-तहसील का लेखपाल साहब अपनी जेब से पैसे कहां से भरेंगे आपके काम के लिए।

जो गरीब है, बेचारा है वो पैसे नहीं दे सकता तो काम में थोड़ी लेट लतीफी हो जाती है तो इसमें लेखपाल साहब की गलती थोड़ी है। गलती उसकी है जो गरीब पैदा हुआ। अरे कुछ करो गरीबी मिटाओ देश का भी कल्याण होगा अधिकारियों का भी कल्याण होगा। साहब यह दुनिया जो है भावनात्मक तरीके से नहीं पैसे से चलती है। हाल में एक फिल्म आई थी ‘कागज’ देखी होगी आपने। इसमें बताया गया है कि लेखपाल साहब का क्या भौकाल होता है लेखपाल साहब अगर एक बार तुम को कागज में मार दिए तो तुम समझो मर गए। तुमको जिंदा होने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा। हो सकता है खुद को जिंदा कराने के लिए अपनी खुद की जिंदगी भी आपको खर्च करनी पड़ जाए। और हां,, फिर भी आप जिंदा हो जाएंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह ताकत होती है लेखपाल की। फिल्म से हटकर आज वास्तविकता थोड़ी और है।अधिकारियों को कर्मचारियों से ज्यादा खास मतलब नहीं होता काम को छोड़कर। काम नहीं हुआ तो अधिकारियों से डांट पक्की है। सब जगह यही हाल है प्राइवेट सेक्टर हो या गवर्नमेंट। ऐसे में अधिकारी को खुश करने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। अब खुश करने के क्या तरीके हैं आपको अच्छे से पता है।

आखिर में दर्द लेखपाल का
ऐसे में अब लेखपाल साहब लोग अधिकारी की जी हजूरी करें या फिर कुछ काम कर लें। बहुत काम होता है लेखपालों के जिम्मे जैसे- खसरा खतौनी का रिकॉर्ड अपडेट रखना। गांव-गांव मोटरसाइकिल में किक मार के घूमते हुए भू स्वामियों का सत्यापन करना। तहसील दिवस और समाधान दिवस में जाना। विभागीय जांचों के अलावा अन्य जांच भी करना। जनगणना और कृषि गणना के अलावा अन्य गणनाएं करना। इन सब के बावजूद भी बेचारे ले देकर आपका काम कर ही देते हैं तो बताओ कितने कितने भले हैं लेखपाल साहब। अरे भाई एक अकेली जान कितना करेगी काम खुद ही बताओ? इसीलिए खुद भी खाओ और भूखे को भी खिलाओ। आप को खिलाना ही पड़ेगा क्योंकि सिस्टम सड़ा हुआ है। जब दीमक नीचे से लगा होता है तो ऊपर के प्लाई को दोष नहीं देना चाहिए इस बात को समझिए और दीमक को खत्म करिए।

एक बात और बताएं जहां एक तरफ प्राइवेट सेक्टर में भी 2-3 सालों में प्रमोशन हो जाता है, वहीं दूसरी तरफ लेखपाल साहब का प्रमोशन 30-35 सालों में भी नहीं हो पाता। लेखपाल बिना प्रमोशन पाए ही लेखपाल पद पर से रिटायर्ड हो जाते हैं। पर कहते है ना की भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। मौजूदा परिस्थिति में कानूनगो रिटायर हो रहे हैं प्रोमोशन हो नहीं रहा। आप बिना प्रोमोशन के ही लेखपालों को प्रभारी कानूनगो व प्रभारी रजिस्ट्रार कानून गो बनाया जा रहा है। यही हाल-ए- है ‘तहसील’ और लेखपाल का।

 

follow on twitter 

@ashishshuklaak

 

 

Feb 5, 2021

आखिर क्या होगा उस किसान आंदोलन का जिसे ख़ालिस्तानी हैक कर लेता हो?

बेहद अपमानजनक तरीक़े से लाल क़िले पर लगे तिरंगे को दूर फेंकने वाले कौन थे? इसका जवाब तुम नहीं दोगे तो कौन देगा? तुम्हें बताना होगा कि देश के वीर सैनिकों का अपमान करने वाले कौन थे? दिल्ली को जलाने की साज़िश किसने रची? क़ानून व्यवस्था को चकनाचूर किसने किया? तुम ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि वो तुम्हारे संगठन के नहीं थे।
 
तुम कुछ भी हो सकते हो किसान तो बिलकुल नहीं। तुम परेड के जरिए देश का दिल जीतने की बात करते हो। तुम शांतिपूर्ण ट्रैक्टर मार्च की बात करते हो। तुम संविधान, संसद, कानून, राष्ट्र की बात करते हो। एक बात बताओ क्या ऐसे देश का दिल जीता जाता है? क्या गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की छवि को धूमिल करके गौरव बढ़ाया जाता है?
क्या यही तरीक़ा है शांतिपूर्ण मार्च निकालने का? क्या ऐसे ही क़ानून की वापसी करवाई जाती है? क्या इसी तरीक़े से संविधान का पालन होता है? इसका जवाब देना ही पड़ेगा। देश की आन बान शान को अगर बढ़ा नहीं सकते हो तो तुम्हे इसे धूमिल करने का कोई अधिकार नहीं है।

देश जब 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा था तब तुमने वो किया जो आज तक इतिहास में कभी नहीं हुआ। तुमने अपमान किया देश का। तुमने अपमान किया देश के वीर सैनिकों का। तुमने अपमान किया अन्नदाताओं के नाम का। तुम्हें अगर देशद्रोही ना कहा जाए तो क्या कहा जाए? एक तरफ़ देश जहां अपना गौरव लिख रहा था वहीं तुम दूसरी तरफ़ साज़िश कर रहे थे दिल्ली को जलाने की, क़ानून व्यावस्था को चकनाचूर करने की। देश की आन बान शान को धूमिल करने की। जब हमारे वीर सैनिक ऐतिहासिक राजपथ पर भारत की अनूठी एकता में पिरोई विविधताओं वाली विरासत दिखा रहा था तब तुम देश के ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे थे।

दूसरों पर आरोप लगाने से पहले ख़ुद के गिरेबां में झांकिए
तुम्हें थोड़ी भी शर्म नहीं आती सरकार और दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाते हुए? रैली से पहले तुम्हें पुलिस ने अगाह किया था। बताया था कि पाकिस्तान से कुछ इनपुट मिले हैं लेकिन तुमने तो वादा किया था दिल्ली पुलिस से कि सब कुछ शांतिपूर्ण तरीक़े से हो जाएगा। हो गया तुम्हारा आंदोलन सफल? मिल गयी तसल्ली देश की छवि को पलीता लगाकर। अब तुम ये कहकर पल्ला झाड़ रहे हो कि जिन्होंने दंगा किया वो तुम्हारे संगठन का हिस्सा नहीं हैं। फिर बता दो वो कौन हैं? किसने उन्हें बुलाया था? किसने उन्हें दिल्ली आने का न्योता दिया था? किसने आह्वान किया था 26 जनवरी की परेड में शामिल करने के लिए? अगर तुम नहीं बताओगे वो कौन थे तो कौन बताएगा? तुम उन्हें नहीं जानते ये कहकर कैसे पल्ला झाड़ सकते हो? तुम्हें क्यों नहीं पता है देश के उन देशद्रोहियों के बारे में जिन्होंने लाल क़िले पर पहुंच कर एक गुंबद पर लगे तिरंगे को नीचे फेंका? तुम्हें क्यों नहीं पता है कि गुंबद पर पंथी झंडा लगाने वाला कौन था?

तुमने कहा था कुछ नहीं होगा...सब कैसे हुआ जवाब देना ही पड़ेगा
गणतंत्र दिवस के अवसर पर तुमने दिल्ली पुलिस के साथ कई राउंड की बैठक की। बैठक के बाद कुछ जगहों पर ट्रैक्टर रैली निकालने की इजाज़त मिली। इजाज़त मिली थी तुम्हे 5 हज़ार लोग..5 हज़ार ट्रैक्टर और 5 घंटे प्रदर्शन करने की। लेकिन हज़ारों की भीड़ आए। तुम्हारे दंगाईयों ने दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर हज़ारों की संख्या में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। ट्रैक्टरों के ज़रिए धावा बोल दिया। सबसे पहले आईटीओ फिर नांगलोई, अक्षरधाम, ट्रांसपोर्ट नगर, ग़ाज़ीपुर और उसके बाद लाल क़िला पर जमकर उत्पात मचाया। आईटीओ पर तो तुम्हारे दंगाईयों ने डंडे से पुलिसकर्मियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। ट्रैक्टरों के ज़रिए DTC बसों को टक्कर मारी। तलवार, फरसा, हथियार, घोड़ा सबकुछ था।

तुम्हें अगर शांतिपूर्वक मार्च निकालना था तो इन्हें अपने मार्च में क्यों जगह दी? तुमने उन्हें क्यों नहीं अपनी भीड़ से अलग करके दिल्ली पुलिस को नहीं बताया कि ये तुम्हारे साथ नहीं हैं? इसका जवाब तो तुम्हें देना ही पड़ेगा। तुम्हें हक़ है प्रदर्शन करने का। तुम्हे हक़ है अपनी आवाज़ उठाने का। तुम्हें हक़ है सरकार से सवाल करने का। लेकिन क्या यही तरीक़ा है कृषि क़ानून का विरोध करने का तुम्हें ये सोचना पड़ेगा। लेकिन तुम्हे हक़ नहीं देश को जलाने का। तुम्हारे दंगाईयों ने जो किया इतिहास में ये शर्मिंदगी के रूप में दर्ज हो गया है।

....................................

 #farmersprotest

#ashishshuklablog

@ashishshuklaak