आखिर क्या होगा उस किसान आंदोलन का जिसे ख़ालिस्तानी हैक कर लेता हो?
बेहद अपमानजनक तरीक़े से लाल क़िले पर लगे तिरंगे को दूर फेंकने वाले कौन थे? इसका जवाब तुम नहीं दोगे तो कौन देगा? तुम्हें बताना होगा कि देश के वीर सैनिकों का अपमान करने वाले कौन थे? दिल्ली को जलाने की साज़िश किसने रची? क़ानून व्यवस्था को चकनाचूर किसने किया? तुम ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि वो तुम्हारे संगठन के नहीं थे।
बेहद अपमानजनक तरीक़े से लाल क़िले पर लगे तिरंगे को दूर फेंकने वाले कौन थे? इसका जवाब तुम नहीं दोगे तो कौन देगा? तुम्हें बताना होगा कि देश के वीर सैनिकों का अपमान करने वाले कौन थे? दिल्ली को जलाने की साज़िश किसने रची? क़ानून व्यवस्था को चकनाचूर किसने किया? तुम ये कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि वो तुम्हारे संगठन के नहीं थे।
तुम कुछ भी हो सकते हो किसान तो बिलकुल नहीं। तुम परेड के जरिए देश का दिल
जीतने की बात करते हो। तुम शांतिपूर्ण ट्रैक्टर मार्च की बात करते हो। तुम
संविधान, संसद, कानून, राष्ट्र की बात करते हो। एक बात बताओ क्या ऐसे देश
का दिल जीता जाता है? क्या गणतंत्र दिवस के अवसर पर देश की छवि को धूमिल
करके गौरव बढ़ाया जाता है?क्या यही तरीक़ा है शांतिपूर्ण मार्च निकालने का? क्या ऐसे ही क़ानून की वापसी करवाई जाती है? क्या इसी तरीक़े से संविधान का पालन होता है? इसका जवाब देना ही पड़ेगा। देश की आन बान शान को अगर बढ़ा नहीं सकते हो तो तुम्हे इसे धूमिल करने का कोई अधिकार नहीं है।
देश जब 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा था तब तुमने वो किया जो आज तक इतिहास में कभी नहीं हुआ। तुमने अपमान किया देश का। तुमने अपमान किया देश के वीर सैनिकों का। तुमने अपमान किया अन्नदाताओं के नाम का। तुम्हें अगर देशद्रोही ना कहा जाए तो क्या कहा जाए? एक तरफ़ देश जहां अपना गौरव लिख रहा था वहीं तुम दूसरी तरफ़ साज़िश कर रहे थे दिल्ली को जलाने की, क़ानून व्यावस्था को चकनाचूर करने की। देश की आन बान शान को धूमिल करने की। जब हमारे वीर सैनिक ऐतिहासिक राजपथ पर भारत की अनूठी एकता में पिरोई विविधताओं वाली विरासत दिखा रहा था तब तुम देश के ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे थे।
दूसरों पर आरोप लगाने से पहले ख़ुद के गिरेबां में झांकिए
तुम्हें थोड़ी भी शर्म नहीं आती सरकार और दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाते
हुए? रैली से पहले तुम्हें पुलिस ने अगाह किया था। बताया था कि पाकिस्तान
से कुछ इनपुट मिले हैं लेकिन तुमने तो वादा किया था दिल्ली पुलिस से कि सब
कुछ शांतिपूर्ण तरीक़े से हो जाएगा। हो गया तुम्हारा आंदोलन सफल? मिल गयी
तसल्ली देश की छवि को पलीता लगाकर। अब तुम ये कहकर पल्ला झाड़ रहे हो कि
जिन्होंने दंगा किया वो तुम्हारे संगठन का हिस्सा नहीं हैं। फिर बता दो वो
कौन हैं? किसने उन्हें बुलाया था? किसने उन्हें दिल्ली आने का न्योता दिया
था? किसने आह्वान किया था 26 जनवरी की परेड में शामिल करने के लिए? अगर तुम
नहीं बताओगे वो कौन थे तो कौन बताएगा? तुम उन्हें नहीं जानते ये कहकर कैसे
पल्ला झाड़ सकते हो? तुम्हें क्यों नहीं पता है देश के उन देशद्रोहियों के
बारे में जिन्होंने लाल क़िले पर पहुंच कर एक गुंबद पर लगे तिरंगे को नीचे
फेंका? तुम्हें क्यों नहीं पता है कि गुंबद पर पंथी झंडा लगाने वाला कौन
था?
तुमने कहा था कुछ नहीं होगा...सब कैसे हुआ जवाब देना ही पड़ेगा
गणतंत्र दिवस के अवसर पर तुमने दिल्ली पुलिस के साथ कई राउंड की बैठक की। बैठक के बाद कुछ जगहों पर ट्रैक्टर रैली निकालने की इजाज़त मिली। इजाज़त मिली थी तुम्हे 5 हज़ार लोग..5 हज़ार ट्रैक्टर और 5 घंटे प्रदर्शन करने की। लेकिन हज़ारों की भीड़ आए। तुम्हारे दंगाईयों ने दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर हज़ारों की संख्या में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। ट्रैक्टरों के ज़रिए धावा बोल दिया। सबसे पहले आईटीओ फिर नांगलोई, अक्षरधाम, ट्रांसपोर्ट नगर, ग़ाज़ीपुर और उसके बाद लाल क़िला पर जमकर उत्पात मचाया। आईटीओ पर तो तुम्हारे दंगाईयों ने डंडे से पुलिसकर्मियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। ट्रैक्टरों के ज़रिए DTC बसों को टक्कर मारी। तलवार, फरसा, हथियार, घोड़ा सबकुछ था।
तुमने कहा था कुछ नहीं होगा...सब कैसे हुआ जवाब देना ही पड़ेगा
गणतंत्र दिवस के अवसर पर तुमने दिल्ली पुलिस के साथ कई राउंड की बैठक की। बैठक के बाद कुछ जगहों पर ट्रैक्टर रैली निकालने की इजाज़त मिली। इजाज़त मिली थी तुम्हे 5 हज़ार लोग..5 हज़ार ट्रैक्टर और 5 घंटे प्रदर्शन करने की। लेकिन हज़ारों की भीड़ आए। तुम्हारे दंगाईयों ने दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर हज़ारों की संख्या में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। ट्रैक्टरों के ज़रिए धावा बोल दिया। सबसे पहले आईटीओ फिर नांगलोई, अक्षरधाम, ट्रांसपोर्ट नगर, ग़ाज़ीपुर और उसके बाद लाल क़िला पर जमकर उत्पात मचाया। आईटीओ पर तो तुम्हारे दंगाईयों ने डंडे से पुलिसकर्मियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। ट्रैक्टरों के ज़रिए DTC बसों को टक्कर मारी। तलवार, फरसा, हथियार, घोड़ा सबकुछ था।
तुम्हें अगर शांतिपूर्वक मार्च निकालना था तो इन्हें अपने मार्च में क्यों जगह दी? तुमने उन्हें क्यों नहीं अपनी भीड़ से अलग करके दिल्ली पुलिस को नहीं बताया कि ये तुम्हारे साथ नहीं हैं? इसका जवाब तो तुम्हें देना ही पड़ेगा। तुम्हें हक़ है प्रदर्शन करने का। तुम्हे हक़ है अपनी आवाज़ उठाने का। तुम्हें हक़ है सरकार से सवाल करने का। लेकिन क्या यही तरीक़ा है कृषि क़ानून का विरोध करने का तुम्हें ये सोचना पड़ेगा। लेकिन तुम्हे हक़ नहीं देश को जलाने का। तुम्हारे दंगाईयों ने जो किया इतिहास में ये शर्मिंदगी के रूप में दर्ज हो गया है।
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