विदेश मे जमा काला धन और इसे
लाने की वीजेपी की कवायत का विश्लेषण कर रहे हैं – आशीष शुक्ला 
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विदेशी बैंकों में जो काला धन जमा है वो इस देश की
साधारण जनता का है । यह राशि पाँच सौ अरब डॉलर तक हो सकती है । अब काले धन को देश
में लाने का मुद्दा राजनीतिक नहीं रहा । देश की जनता की रुचि भी अब इसमें काफी बढ़
गई है । 
काले धन का मुद्दा 1970 के बाद से ही भारत में
सुर्खियो में रहा है । 1986 मे हुए बोफोर्स घोटाले के बाद से हर राजनेता काले धन
के बारे मे बात कर रहे हैं । 2009 और 2014 के चुनाव के दौंरान भाजपा ने दृढ़ता से
इस मुद्दे को उठाया जिसे कई वर्गों का समर्थन भी मिला था , कालेधन से निपटने के
लिए सरकार की ओर से कोई ठोस रणनीति नहीं दिख रही है । चाहे वह भारत के बैंको या
रीयल इस्टेट में जमा व निवेश की जाने वाली राशि हो । भारतीय बैंकों , बजारों और
उद्दोगो में किस तरह से काला धन इधर से उधर किया जा रहा है । कही ना कही हमे इस
समस्या से निपटने के लिए एक दीर्घकालीन रणनीति की आवश्यकता है । विदेश से काला धन
वापस लाने का मुद्दा सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता , ऐसा कहते
हुए भारत की सर्वोच्च अदालत ने सरकार को सभी नाम बताने के आदेश दिए हैं परंतु
सरकार नाम बताने से परहेज कर रही है ,अब सवाल यह है कि सरकार ऐसा क्या करेगी जिससे
विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस भारत लाना संभव हो पाएगा ? जिन लोगों ने विदेशी बैंकों में काला धन जमा किया है, वे आम भारतीय नहीं हैं । काला धन जमा करने वालों में देश के बड़े-बड़े
नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों के अलावा बॉलीवुड, मीडिया और
स्पोर्ट्स शख्सियतें भी शामिल हो सकती हैं ।  यानी काला धन सेक्यूलर होगा तो ये कहना ग़लत
नहीं होगा , क्योंकि इसमें ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, यादव, ही नहीं,
मुस्लिम, सुन्नी और शिया भी शामिल हो सकते हैं
। सरकार का तर्क था कि दोहरा कराधान बचाव संधि ( डीटीएए ) की वजह से विदेशी बैंकों
में जमा काला धन खाता धारकों के नाम उजागर नहीं किए जा सकते हैं । जबकि साल 2011
के शुरुआत में ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि डीटीएए का संबंध खाते धारकों
के नाम जाहिर करने से किसी भी तरह से नहीं जुड़ा है । यूपीए सरकार ने इसमें कोई
दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि मौजूदा सरकार ने इसे गलत समझा है अदालत
ने इसे स्पष्ट करते हुए नए आदेश जारी किए हैं । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि काला
धन वापस लाने का मुद्दा सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता । काले धन का संबंध बार-बार
टैक्स से जोड़ा जा रहा है पर यह कितने हद तक सही है यह तो जमाखोरो के नाम के वह
काला धन आने के बाद ही पता चल पाएगा ।  जबकि काले धन में भ्रष्टाचार, ड्रग्स व्यापार, हथियारों की तस्करी, हवाला, चरमपंथ इत्यादि से जुड़े तमाम मसले शामिल भी हैं
। अदालत के आदेश के बाद अब सरकार को सारे नाम बताने होंगे । परंतु बीजेपी युपीए 2
की भांति नाम बताने के तर्ज से यू टर्न मारती हुई नजर आ रही है  । मोदी ने वादा किया था, वे
100 दिन के भीतर काला धन वापस लाएंगे परंतु वह इस योजना मे विफल रहे हलाकि वह अभई काले
धन के मुद्दे को लेकर काफी गम्भींरता दिखा रहे हैं । अब यह देखना काफी दिलचस्प
होगा कि वह कितने दिनो में जन्ता से किए वादे पूरे कर पाते हैं । परंतु काले धन को
देश में लाने में पांच से सात साल भी लग सकते हैं । फिलीपींस, पेरु, नाइजीरिया आदि देशों का उदाहरण देखें तो यहां
काले धन को देश में वापस लाने में पांच से दस साल लग गए । काले धन पर टैक्स नहीं अदा किया जाता है । इससे सरकार का राजस्व कम होता है
और सड़क जैसे निर्माण कार्यों में व्यवधान पड़ता है, सरकार का लगभग आधा राजस्व सरकारी कर्मचारियों
के वेतन में जा रहा है । आम धारणा है कि काले धन के कारण आर्थिक विकास धीमा पड़ता
है । मेरा अनुमान इसके विपरीत है । स्वस्थ व्यक्ति द्वारा घी का सेवन लाभप्रद होता
है, लेकिन रोगी व्यक्ति द्वारा उसी घी का सेवन हानिप्रद हो
जाता है । वर्तमान में देश की कुल आय का लगभग 11 प्रतिशत
टैक्स के रूप में वसूल किया जाता है । इस रकम का सदुपयोग हो रहा हो तो वृद्धि
उत्तम है, परंतु यदि इस रकम का रिसाव और दुरुपयोग हो रहा हो
तो वही वृद्धि हानिप्रद हो जाती है । काले धन का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है
कि सरकार स्वच्छ है या भ्रष्ट । वर्तमान भ्रष्ट शासन व्यवस्था में काला धन राहत
प्रदान करता है । इस व्यवस्था में नेताओं और अधिकारियों द्वारा बनाया गया काला धन
ही प्रमुख समस्या है  । जिन मंत्रियों ने
काला धन बनाया है और इसे विदेश भेजा है उन्हीं से आज सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि
इसे वापस लाएं । मुजरिम से ही पुलिस की भूमिका का निर्वाह करने की अपेक्षा की जा
रही है । यह नामुमकिन है । संभवत: इसीलिए प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि स्विस बैंक
में जमा काले धन की सूची को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है । मूल समस्या काले धन
को वापस लाने की नहीं है, बल्कि नेताओं एव अधिकारियों द्वारा
काला धन बनाने की है । कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने ही भ्रष्ट सदस्यों के विरुद्ध
मुहिम चलाने को तैयार नहीं होगी । अत: इस समस्या का निदान प्रशासनिक व्यवस्था के
बाहर खोजना होगा । इसके समाधान के लिए ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं देश
के प्रबुद्ध वर्ग को स्थापित करनी होगीं । अपने चुनाव
अभियान के दौरान मोदी ने दावा किया कि, "एक बार ये जो
चोर-लुटेरों के पैसे विदेशी बैंकों में जमा हैं ना, उतने भी
हम ले आए ना, हिंदुस्तान के एक-एक ग़रीब आदमी को मुफ़्त में
15-20 लाख रुपये यूं ही मिल जाएँगे ।  इतने
रुपये हैं । सुप्रीम कोर्ट ने काले धन को लेकर काफ़ी सक्रिय है और एसआईटी के काम
पर नज़र रख रहा है । जैसा कि मोदी ने मांगा था, लोगों ने
भाजपा को मौक़ा दिया, लेकिन वह कोई नाटकीय बदलाव लाने में सफल
नहीं हुए ।  प्रधानमंत्री के रूप में पहले
दिन उन्होंने काले धन पर विशेष जांच दल ( एसआईटी ) का गठन किया ।  लेकिन इसके बाद चीज़ें पहले की तरह पुराने ढर्रे
पर चलती दिखाई देने लगीं, यहां तक कि सुब्रमण्यम स्वामी और
राम जेठमलानी जैसा भाजपाइयों को भी ऐसा लगा ।  एसआईटी उन विदेशी बैंक के खाताधारकों की सूची की
जांच कर रही है जो भारत को कांग्रेस के शासन में ही मिल गई थी । इस सूची में कुछ
सौ लोगों के नाम हैं, लेकिन इनमें से लगभग आधे वैध माने जा
रहे हैं, क्योंकि ये अप्रवासी भारतीयों (एनआरआई) के हैं ।
कांग्रेस सरकार ने अप्रैल में इनमें से 18 लोगों के नाम सार्वजनिक किए थे, लेकिन इनमें बहुत कुछ नहीं निकला था ।  सुप्रीम कोर्ट के दबाव में तीन नाम और सार्वजनिक
किए गए क्योंकि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई शुरू कर दी गई थी ।  यह साफ़ होता जा रहा है कि सरकार अब काले धन को
वापस लाने और इसे जनता में बांटने के वादे से ख़ुद को धीरे-धीरे अलग कर रही है । एचएसबीसी
में भारतीयों के बैंक खातों की जानकारी भारत को फ्रांस सरकार से मिली थी यदि देश
की भीतर काले धन पर ज़ोर दिया गया तो पहले गुजरात की अर्थव्यवस्था और वहां की
सरकार के भारत में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 627 लोगों के नामों की सूची
बंद लिफाफे में सौंपी  इसके बाद से लोगों
की बीच इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि विदेशों से काला धन भारत वापस लाना
कितना आसान या मुश्किल है । आज देश की एक अरब पच्चीस करोड़ की जन्ता को यह भरोसा
हो चला है कि काला धन जल्द ही देश मे आएगा । परंतु अगर इतिहास पर ग़ौर करें तो कह
सकते हैं कि विदेशों से पैसा वापस भारत लाना काफ़ी मुश्किल है ।  इस काम को किसी निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए
कड़ी मेहनत करनी होगी । पहले भी कुछ एक नेताओं ने कहा कि उनके पास एक बड़े
उद्योगपति का नंबर है, जिनका खाता विदेश में है ।  लेकिन यह सारी कहने की बातें है कितना काला धन
है विदेशों में ऐसे खाते की जानकारी हासिल करना और पैसे को वापस लाना वाकई मुश्किल
है । यह देखना काफी रोचक होगा की बीजेपी काले धन को कितने समय तक देस मे ला पाती
है । 
यह
लेखक के अपने विचार हैं  
(
लेखक लेबर निगरानी ब्यूरो में सह – संपादक है ) 
 
 
 
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