कहीं हम भी ईराक और
सीरिया न बन जाएं?
 देश में जब-जब चुनाव नजदीक आता है, तब-तब सांप्रदायिक दंगे होने लगते हैं इन दंगो में हिन्दू
और मुस्लमान समुदाय को धर्म और जाति के आधार पर निशाना बनाया जाता है। समाज सदियों
से इस तरह की साजिशों का शिकार रहा है यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण  है। अगर हमारा समाज जल्द ही इन साजिश से बाहर
नहीं निकला तो आने वालें समय में इसकी स्थिति कितनी खतरनाक होगी इसका अनुमान दादरी
जैसे कांड से लगाया जा सकता है। 
दादरी के बिसाहड़ा गांव
में गत 28
सितम्बर की रात गांव के 14-15 लोग हाथों में लाठी, डंडा, भाला और तमंचा लेकर गाली- गलौज करते हुए फिल्मी अंदाज में
दरवाजे को धक्का मारकर एक मुस्लमान के घर में घुसते हैं और एक व्यक्ति को
पीट-पीटकर जान से मार डालते हैं। इन्हें खब़र मिली है कि बगल वाले मुसलमान परिवार
के यहां गाय का मांस रखा है। मांस किसका है? अगर है तो कहां से आया? क्यों आया? इनपर यह भीड़ थोड़ा भी विचार नहीं करती वह बस जान लेने के
मकसद से आयी हैं। यह भीड़ एक व्यक्ति की जान ले लेती है।  इन लोगों ने यह कांड इस लिए किया क्योंकि इनके
धर्म को ठेस पहुंचानें की ख़बर इन्हें मिली। धर्म की रक्षा हर हाल में करनी चाहिए, लेकिन मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता अगर यह बात भीड़
समझ पाती तो शायद एक व्यक्ति की जान बच जाती। हमेशा जब इस तरह की घटनायें घटतीं
हैं तो,
इसका फायदा राजनीतिक पार्टियों को ही मिलता है।  अखलाक की हत्या के पीछे राजनीतिक फायदा लेने की
जद्दोजहद सभी राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं, आपने आपके दयालु, सर्वश्रेठ साबित करने के लिए वह कितना भी मुवाबजा और अन्य
तरह की मदद देनें के लिए तैयार हैं। हमेशा से लोगों के जज्बात भड़काकर वोट हासिल
करने की राजनीति होती आई है और यही वो पार्टियां हैं जो लोगों को भड़काती आई
हैं।  जिस तरह से आज ऐसी घटनायें तेजी से
बढ़ रही हैं यह धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर चिंता का विषय
है। भारत जहां सैकड़ों सालों से अलग-अलग धर्मों को मानने वाले समुदायों के बीच
एक-दूसरे की संस्कृति का आदर करने की परंपरा रही है। जहां जल्द ही यह घटना हई
बिसारा गांव दोनों समुदायों के लोग कई पीढ़ियों से साथ रह रहे हैं, लेकिन ऐसी घटना कभी नहीं हुई। सवाल यह उठता है कि,अचानक ऐसा क्यों हुआ। क्या अचानक लोगों के बीच से मानवता
खत्म हो गयी।  पिछले कुछ समय से लगातार
भिन्न संप्रदायों के बीच शक और तनाव बनाए रखने की जैसी कोशिश चल रही है, हिंदुत्व के नाम पर जैसी राजनीति चल रही है और बहुत मामूली
बातों को तूल देकर हिंसा भड़काने की कोशिश की जा रही है, उसके चलते सहज तरीके से जीवन गुजारने में यकीन रखने वाले
लोगों के बीच भी दूसरे समुदायों को लेकर दूरियां आज तेजी से बढ़ रही हैं। अगर आप
थोड़ा गौर करगें तो आपको एक खास तरह का आक्रामक माहौल बनता हुआ नज़र आयेगा। अब तो
किसी अफवाह के आधार पर भी दो समुदायों के बीच हिंसा भड़क उठती है या फिर किसी
सामान्य विवाद को भी सांप्रदायिक रंग दे दिया जाता है। निश्चित रूप से इस स्थिति
के लिए अपनी राजनीति चमकाने वाले वे समूह जिम्मेदार हैं, जो धार्मिक ध्रुवीकरण के बूते अपने पांव फैलाना चाहते हैं।
उन्हें शायद इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जमीनी स्तर पर समाज के ताने-बाने पर
इसका कितना गहरा और दीर्घकालिक असर पड़ता है। विडंबना है कि सरकारों की नींद तब
खुलती है,
जब मामला हाथ से निकलने लगता है। भारत जैसे देश में ऐसी
स्थिति की कल्पना भी दुखद है कि हर धार्मिक समुदाय को एक-दूसरे पर शक, भय और असुरक्षा के बीच जीना पड़े। ऐसी नकारात्मक राजनीति
करने वाले दल और सरकारें अगर समय रहते नहीं चेतीं, तो सामाजिक सद्भाव और देश की एकता का अंत निश्चित हो जाएगा।
समाज में जब सद्भावना व्याप्त रहेगी तभी हमारा राष्ट्र विश्व स्तर पर अपनी पहचान
बना पाएगा।  और हम संस्कृति और सभ्यता के
लिए जाने जाते रहेंगे। लेकिन अगर ऐसे सांप्रदायिक दंगे फसाद होते रहेंगे, जाति-धर्म मजहब  के
आधार पर हम लड़ते रहेंगे तो आने वाले समय में हमारी स्थिति भी निश्चित रूप से
सीरिया और ईराक जैसी हो जाएगी।
Ashish kumar shukla Editor Laboure Nigrani Bureo 
 

 
 
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