महाशक्तियों को चुनौती देता चीन…
दक्षिण चीन सागर पर चीन इतिहास को आधार बनाकर छल और छद्म से अपने विस्तारवादी मनसूबे के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है, आखिर कोई कैसे “अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल” के फैसले और तमाम तरह के वैश्विक समझौतों को ताक पर रखते हुए अपनी मनमानी कर सकता है?
चीन की लगातार बढ़ती दादागीरी अब विश्व पटल पर भी किसी से छिपी नहीं है, विस्तारवादी सोच के साथ हमेशा से आगे बढ़ने वाला चीन किसी की बात मानना कभी भी मुनासिब नहीं समझता रहा है चाहे वह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण द्वारा 12 जुलाई 2016 दिया गया कोई आदेश यह फिर अति महत्वपूर्ण सम्मेलनों में किये गये समझौते ही क्यों न हों। चीन के लिए कुछ भी मायने नहीं रखता वह सबकी सुनता जरूर है, पर करता अपने मन की है। खुद को माहाशक्ति के रूप में स्थापित करने की चीन की चाह वाकई विश्व के अन्य देशों के साथ दक्षिण एेशियाई देशों के लिए परेशानी का सबक बना हुआ है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण अब विश्व स्तर पर किया जा रहा है, परन्तु इससे सबसे ज्यादा अमेरिका की साख को ही पलीता लग रहा है भले ही अमेरिका का दक्षिण चीन सागर विवाद से ज्यादा कुछ लेना- देना न हो परन्तु यह एक ऐसा विवाद है जो इस समय उसके लिए परेशानी का सवब बना हुआ है। जिस तरह से चीन अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले को ताक पर रखकर लगातार अपने दादागीरी के दम पर फिलिपीन्स और अन्य देशों के द्वीपों पर हवाई पट्टी का निर्माण कर रहा इससे उसकी दादागीरी साफ नजर आ रही है इससे पता चलता है कि चीन किसी से नहीं डरता।
दक्षिण चीन सागर विवाद ताइवान, फीलिपीन्स, मलेशिया, वियतनाम, ब्रूनेई जैसे देशों के लिए एक समस्या बन चुका है अब यह समस्या विकराल रूप धारण कर रही है यह आज विश्व का यह सबसे गरम मुद्दा है। दक्षिण चीन सागर दक्षिण पूर्वी एशिया से प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे तक स्थित है और चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है जिसपर चीन अपना एकाधिकार जताता आया है। प्रशांत महासागर का यह हिस्सा सिंगापुर से लेकर ताइवान की खाड़ी तक 35 लाख वर्ग किलोमीटर में स्थित है। चीन के वर्चस्व को चुनौती देते हुए फिलिपीन्स ने “अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल” में अपील की थी जिसके बाद जुलाई में अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने अपने एेतिहासिक फैसले में चीन के कब्जे को अवैध करार देते हुए द्वीपो पर हवाई पट्टी न बनाने का आदेश देते हुए चीन के उस दावे को खारिज किया था, जिसमें उसने दक्षिण चीन सागर पर अपने एेतिहासिक आधिकार की पुष्टी की थी। किन्तु चीन को इससे ज्यादा परेशानी नहीं हो रही है, क्योंकि कोई भी निर्णय उसके लिए मायने नहीं रखते हैं चाहे वह “अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल” के ही क्यों न हो वह अपने मन का मौजी देश है। चीन इतिहास को आधार बनाते हुए छल और छद्म के साथ अपने मनसूबे में लगातार आगे बढ़ रहा है, आखिर कोई कैसे ट्रिब्यूनल के फैसले और तमाम तरह के वैश्विक समझौते को ताक पर रखते हुए अपनी मनमानी कर सकता है।
हम अगर संयुक्त राष्ट्र संघ के सबसे महत्वपूर्ण अभिकरण सुरक्षा परिषद की बात करे जिसका गठन 1946 में हुआ था, जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक देशों में चीन को भी स्थाई सदस्यता दी गयी थी, जबकि भारत आज भी इसका अस्थाई सदस्य है। निश्चित रूप से चीन के लिए वह पल काफी खास रहा होगा जब उसे स्थाई सदस्यता मिली होगी, किंतु जिन दायित्वों का उसे निवार्हन करना था वह नहीं कर रहा है। सुरक्षा परिषद का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाए रखना था। संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद- 24 सभी सदस्य देशों को अनिवार्यता स्वीकार्य करने के लिए बाध्य करता है। लेकिन चीन सुरक्षा परिषद के नियमों को भी आज ताक पर रखकर आगे बढ़ रहा है। इसके साथ ही कई अन्य सवाल खड़े हो जाते हैं, कि आखिर चीन जब इस तरह के बनाये गये तमाम नियमों का उल्लंघन करता है, तो अमेरिका इसे सख्ती से क्यों नहीं लेता है? आखिर चीन के प्रति इतनी ढ़िलाही क्यों बरत रहा है? इसके साथ ही अमेरिका की शक्तियों पर भी सवालियां निशान उठने लगते हैं, क्या अमेरिका निष्पक्ष और निर्भीक होकर चीन को जवाब नहीं दे सकता है। सदैव से अमेरिका उन्हीं देशों के साथ सख्ती बरतता आया है जो उससे कमजोर रहे हैं, और उसका ही नतीजा है कि चीन अपने आपको अमेरिका के बराबर समझ रहा है और किसी भी आदेश-निर्देश को मानने में थोड़ी भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है। अमेरिका को चीन से सकारात्मक रूप से निपटने और समझाने के लिए आज तमाम तरह की नीतियों को बनाने की जरूरत है। आज अमेरिका दक्षिण चीन सागर पर दखल जरूर दे रहा है, परन्तु जितनी सख्ती से देना चाहिए उसके मुकाबले यह कुछ भी नहीं है। अमेरिका जानता है कि दुनिया के किसी बहुपक्षीय युद्ध की स्थित में उसे चीन से टक्कर लेनी पड़ सकती है।
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(यह लेखक के अपने विचार हैं)
(लेखक बीबीसी खबर हिंदी डॉट काम में स््पेशल स््टोरी राइटर हैं)





































