Sep 18, 2016

महाशक्तियों को चुनौती देता चीन…

दक्षिण चीन सागर पर चीन इतिहास को आधार बनाकर छल और छद्म से अपने विस्तारवादी मनसूबे के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है, आखिर कोई कैसे “अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल” के फैसले और तमाम तरह के वैश्विक समझौतों को ताक पर रखते हुए अपनी मनमानी कर सकता है? 
चीन की लगातार बढ़ती दादागीरी अब विश्व पटल पर भी किसी से छिपी नहीं है, विस्तारवादी सोच के साथ हमेशा से आगे बढ़ने वाला चीन किसी की बात मानना कभी भी मुनासिब नहीं समझता रहा है चाहे वह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण द्वारा 12 जुलाई 2016 दिया गया कोई आदेश यह फिर अति महत्वपूर्ण सम्मेलनों में किये गये समझौते ही क्यों न हों। चीन के लिए कुछ भी मायने नहीं रखता वह सबकी सुनता जरूर है, पर करता अपने मन की है। खुद को माहाशक्ति के रूप में स्थापित करने की चीन की चाह वाकई विश्व के अन्य देशों के साथ दक्षिण एेशियाई देशों के लिए परेशानी का सबक बना हुआ है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण अब विश्व स्तर पर किया जा रहा है, परन्तु इससे सबसे ज्यादा अमेरिका की साख को ही पलीता लग रहा है भले ही अमेरिका का दक्षिण चीन सागर विवाद से ज्यादा कुछ लेना- देना न हो परन्तु यह एक ऐसा विवाद है जो इस समय उसके लिए परेशानी का सवब बना हुआ है। जिस तरह से चीन अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के फैसले को ताक पर रखकर लगातार अपने दादागीरी के दम पर फिलिपीन्स और अन्य देशों के द्वीपों पर हवाई पट्टी का निर्माण कर रहा इससे उसकी दादागीरी साफ नजर आ रही है इससे पता चलता है कि चीन किसी से नहीं डरता।
दक्षिण चीन सागर विवाद ताइवान, फीलिपीन्स, मलेशिया, वियतनाम, ब्रूनेई जैसे देशों के लिए एक समस्या बन चुका है अब यह समस्या विकराल रूप धारण कर रही है यह आज विश्व का यह सबसे गरम मुद्दा है। दक्षिण चीन सागर दक्षिण पूर्वी एशिया से प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे तक स्थित है और चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है जिसपर चीन अपना एकाधिकार जताता आया है। प्रशांत महासागर का यह हिस्सा सिंगापुर से लेकर ताइवान की खाड़ी तक 35 लाख वर्ग किलोमीटर में स्थित है। चीन के वर्चस्व को चुनौती देते हुए फिलिपीन्स ने “अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल” में अपील की थी जिसके बाद जुलाई में अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने अपने एेतिहासिक फैसले में चीन के कब्जे को अवैध करार देते हुए द्वीपो पर हवाई पट्टी न बनाने का आदेश देते हुए चीन के उस दावे को खारिज  किया था, जिसमें उसने दक्षिण चीन सागर पर अपने एेतिहासिक आधिकार की पुष्टी की थी। किन्तु चीन को इससे ज्यादा परेशानी नहीं हो रही है, क्योंकि कोई भी निर्णय उसके लिए मायने नहीं रखते हैं चाहे वह “अन्तर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल” के ही क्यों न हो वह अपने मन का मौजी देश है। चीन इतिहास को आधार बनाते हुए छल और छद्म के साथ अपने मनसूबे में लगातार आगे बढ़ रहा है, आखिर कोई कैसे ट्रिब्यूनल के फैसले और तमाम तरह के वैश्विक समझौते को ताक पर रखते हुए अपनी मनमानी कर सकता है। 
हम अगर संयुक्त राष्ट्र संघ के सबसे महत्वपूर्ण अभिकरण सुरक्षा परिषद की बात करे जिसका गठन 1946 में हुआ था, जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक देशों में चीन को भी स्थाई सदस्यता दी गयी थी, जबकि भारत आज भी इसका अस्थाई सदस्य है। निश्चित रूप से चीन के लिए वह पल काफी खास रहा होगा जब उसे स्थाई सदस्यता मिली होगी, किंतु जिन दायित्वों का उसे निवार्हन करना था वह नहीं कर रहा है। सुरक्षा परिषद का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाए रखना था। संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद- 24 सभी सदस्य देशों को अनिवार्यता स्वीकार्य करने के लिए बाध्य करता है। लेकिन चीन सुरक्षा परिषद के नियमों को भी आज ताक पर रखकर आगे बढ़ रहा है। इसके साथ ही कई अन्य सवाल खड़े हो जाते हैं, कि आखिर चीन जब इस तरह के बनाये गये तमाम नियमों का उल्लंघन करता है, तो अमेरिका इसे सख्ती से क्यों नहीं लेता है? आखिर चीन के प्रति इतनी ढ़िलाही क्यों बरत रहा है? इसके साथ ही अमेरिका की शक्तियों पर भी सवालियां निशान उठने लगते हैं, क्या अमेरिका निष्पक्ष और निर्भीक होकर चीन को जवाब नहीं दे सकता है। सदैव से अमेरिका उन्हीं देशों के साथ सख्ती बरतता आया है जो उससे कमजोर रहे हैं, और उसका ही नतीजा है कि चीन अपने आपको अमेरिका के बराबर समझ रहा है और किसी भी आदेश-निर्देश को मानने में थोड़ी भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है। अमेरिका को चीन से सकारात्मक रूप से निपटने और समझाने के लिए आज तमाम तरह की नीतियों को बनाने की जरूरत है। आज अमेरिका दक्षिण चीन सागर पर दखल जरूर दे रहा है, परन्तु जितनी सख्ती से देना चाहिए उसके मुकाबले यह कुछ भी नहीं है। अमेरिका जानता है कि दुनिया के किसी बहुपक्षीय युद्ध की स्थित में उसे चीन से टक्कर लेनी पड़ सकती है। 
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(यह लेखक के अपने विचार हैं)
(लेखक बीबीसी खबर हिंदी डॉट काम में स््पेशल स््टोरी राइटर हैं)

Aug 28, 2016

समान नागरिक संहिता कितना आवश्यक.. ? 

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ASHISH KUMAR SHUKLA  

समान नागरिकता कानून का अर्थ, भारत के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून से है। समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है, जो सभी धर्मों के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून होना ही 'समान नागरिक संहिता' की मूल भावना है। 
समान नागरिक संहिता से अभिप्राय कानूनों के वैसे समूह से है जो देश के समस्त नागरिकों पर लागू होता है चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हों, यह कानून किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है।  भारत का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है किंतु अभी तक इसको लागू नहीं किया जा सका है। 
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- चूंकि भारत पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है
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समान नागरिक संहिता का मुद्दा काफी पुराना वह विवादित मुद्दा है, चूंकि भारत एक पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है और यहां विभिन्न जाति समुदायों के लोग निवास करते हैं, भारतीय संविधान इन्हें तमाम तरह की स्वतंत्रता प्रदान करता है जिससे वह देश में स्वतंत्र रूप से बिना किसी जोर दबाव के निवास कर सकें। वहीं समान नागरिक संहिता देश में निवास कर रहे सभी लोगों के लिए ( चाहे वह किसी भी जाति, धर्म समुदाय से जुड़े हों ) को एक समान यानी एक जैसा नागरिक कानून की व्याख्या कराता है। 
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- पसर्नल लॉ के चलते समान नागरिक संहिता लागू होना आसान नहीं 
भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को एक समान रूप से देखा जाता है ( कुछ अपवादों को छोड़ कर ) लेकिन हमारे देश में तमाम समुदायों के पर्सनल लॉ हैं, जिसके आधार पर वह समाज में अपने हिसाब से रह रहे हैं, इसके अनुसार शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंटवारे में फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ के तहत कर रहे हैं। 
वहीं समान नागरिक संहिता एक पंथनिरपेक्ष कानून होता है जो सभी धर्मों के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है, इस तरह से अगर कहा जाए कि ये किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है तो निर्विवाद होगा। 
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- इसे लागू करना है राज्य की जिम्मेदारी 
संविधान में समान नागरिक संहिता को लागू करना अनुच्‍छेद- 44 के तहत राज्‍य की जिम्‍मेदारी बताया गया है, लेकिन ये आज तक देश में लागू नहीं हो पाया। जिसके आधार पर कहें कि हम वर्षों से संविधान की मूल भावना का अपमान कर रहे हैं तो यह निर्विवाद होगा। सवाल ये उठता है कि आखिर इसे लागू करने में क्या दिक्कतें रही हैं और यह क्यो अब तक लागू नहीं हो सका है।
कई लोगों का ये मानना है कि इसके लागू होने से देश में हिन्दू कानून लागू हो जाएगा जबकि सच्चाई ये है कि समान नागरिक संहिता एक ऐसा कानून है जो हर धर्म के लोगों के लिए बराबर होगा और उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं होगा। इसके अलावा इसके लागू न होने के पीछे कई सरे राजनीतिक कारण भी हैं, वोट बैंक की राजनीति के चलते कोई भी पार्टियां इस मुद्दे पर हस्ताक्षेप करना पसंद नहीं करती हैं। 
एक नजर में 
- फिलहाल मुस्लिम, ईसाई और पारसी समुदाय का पर्सनल लॉ है जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध आते हैं।
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अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाए तो सभी धर्मों के लिए एक जैसा कानून होगा।
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यानी शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों ना हो।
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फिलहाल हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी क़ानूनों के तहत करते हैं।
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मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए इस देश में अलग कानून चलता है जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ज़रिए लागू होता है।
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आज़ादी के बाद वर्ष 1950 के दशक में हिन्दू क़ानून में तब्दीली की गई लेकिन दूसरे धर्मों के निजी क़ानूनों में कोई बदलाव नहीं हुआ।
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- निष्कर्ष  
भारत में तमाम समुदायों के अपने- अपने पर्सनल लॉ हैं, जिसके चलते समान नागरिक संहिता लागू करना आसान नहीं है। इसके अलावा इसे लागू करने से पहले कानूनों में ढेर सारी तब्दीलियां करने की आवश्यकता होगी। वहीं दूसरी समस्या ये है कि तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक की राजनीति के चलते इस मुद्दे पर बहस नहीं करना चाहती, जिसके चलते संविधान भी ताक पर है, नतीजन आज भी हमारा देश अलग- अलग कानूनों की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। 
आज फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, उजबेकिस्ता्न जैसे देशों में समान नागरिक संहिता सिस्टम लागू है। अगर हम धार्मिक आधार पर बनाए गए पुराने कानूनों से मुक्ति पा लेते तो हमारा देश अब तक ना जाने कितना आगे बढ़ चुका होता, ये सिर्फ कानून का नहीं बल्कि सोच का विषय है। 
धर्म पर आधारित कानूनों की जंजीरों से आजादी का एकमात्र रास्ता ये है कि सबके लिए समान कानून बनाए जाएं। अगर भारत में समान नागरिक संहिता लागू हो जाए तो देश को एक अलग और नई पहचान मिलेगी जिससे देश के विकास के मार्ग स्वतः खुल जाएंगे। 
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WRITER A SPECIAL STORY WRITER IN BBC KHABAR HINDI DELHI 
FOR IAS/PCS SPECIAL 

Jul 20, 2016

Delhi State based Article 

For IAS/PCS Aspirants Very IMP Article 

क्या दिल्ली को मिलना चाहिए पूर्ण राज्य का दर्जा..?

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग पाँच दशक से भी अधिक समय से की जा रही है और यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सभी स्थानीय राजनैतिक दल प्रायः आपसी मतभेद भुलाकर एक सुर में बोलते रहे हैं। दूसरी ओर आम जनता और साधारण नागरिक के रूख के इस माँग को लेकर उत्साह का आभाव है।
केंद्र का कंट्रोल क्यो जरूरी .. ?
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दिल्ली में राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास, संसद भवन, एंबेंसी और हाई कमिश्न है, अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया तो पुलिस और जमीन दिल्ली के अधीन हो जाएगी और केंद्र का कंट्रोल खत्म हो जाएगा जिससे सुरक्षा चुनौतियां बढ़ जाएगीं।  
राजनीतिक पार्टियों को मिलेगा लाभ 
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की बात राजनीतिक पार्टियां करती रही हैं वह चाहती हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले जिससे वह अपना शासन खुल कर चला सकें, लेकिन अगर हम बारिकी से इसपर नजर डाले तो देखते हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना व्यावहारिक तौर पर सही नहीं है। चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है, इस नाते उस पर केंद्र सरकार का कंट्रोल होना बेहद जरूरी है। इससे जनता को बहुत सारे लाभ मिलते रहेंगे और अगर इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा तो सिर्फ राजनीतिक फायदा होगा इसमें जनता का कुछ भला नहीं होगा। 
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आर्थिक समस्यायें - 
- दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से सबसे पहले वहां की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ेगा जिसका खामयाजा सीधे जनता को चुकाना पड़ेगा। 
- दिल्ली को भी अन्य राज्यों की भांति अपना 90 फीसद बजट खुद ही जुटाना पड़ेगा जिसका सीधा असर जनता पर पड़ेगा। 
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हमले की स्थिति में ..
अगर दिल्ली में कभी कोई आंतकवादी हमला होता है तो ऐसे में सेना भी बुलाने की आवश्यकता पड़ सकती है। लेकिन यह अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को ही प्राप्त है न की राज्य सरकार को। राज्य सरकार आतंकी हमला और प्राकृतिक आपदा जैसे बड़े मामलों सही तरह से नहीं निपट पाएगी। राज्य बनने से राजधानी एक महंगा शहर बन जाएगा और कमजोर वर्ग को रोटी, कपड़ा, मकान की आवश्यकता में पड़ोसी राज्यों में पलायन के लिए मजबूत होना पडेगा।
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निष्कर्स 

- दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से वहां सामाजिक और आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाएगा जिसका सीधा असर वहां निवास कर रही स्थाई और अस्थाई जनता पर पड़ेगा, इसका लाभ सिर्फ वहां की राजनीतिक पार्टियों को मिलेगा। चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है इसलिए इसपर केंद्र का कंट्रोल वेहद जरूरी है। 

Jul 19, 2016

Formation of New State - 

- सामाजिक, सास्कृतिक, भाषायी पहचान और विकास के लिहाज से कारगर है राज्यों का गठन 

- छोटे राज्यों के गठन से उत्पन्न होने वाली संभावनाएं द्विपक्षीय हैं और इस बारे में सौ प्रतिशत सत्य कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा। 

एक राष्ट्र विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में तभी खड़ा हो सकता है जब उसका सर्वांगीण विकास हुआ हो, सर्वांगीण विकास का अर्थ किसी एक क्षेत्र में हुए विकास से नहीं अपितु, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास से है। लोकतंत्र के हिसाब से देखा जाये तो राज्य की इकाई छोटी होने से जनता अधिक खुश और सरकार के अधिक निकट होती है, जिससे उस राज्य में विकास के तमाम अवसर खुलते हैं। दूसरे नजरिये से देखा जाए तो नए राज्यों के गठन से जनता को कम राजनीतिक पार्टियों को यादा लाभ मिलता है। नए राज्यों का गठन करने मात्र से राज्य को खुशहाल नहीं बनाया जा सकता यह तभी संभव हो सकता है जब राजनीतिक पार्टियां इसपर रोटी सेंकते हुए राज्य के विकास कार्यों में लगे, इसलिए छोटे राज्यों के गठन से उत्पन्न होने वाली संभावनाएं द्विपक्षीय है और इस बारे में सौ प्रतिशत सत्य कुछ कह पाना मुश्किल होगा। 

राज्य को होने वाले सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए- Positive Points For Fromation Of New State 

राज्य की इकाई छोटी होने से जनता सरकार के अधिक निकट होती है जिससे विकास कार्यों में तेजी आती है और परिणाम स्वारूप सरकार और जनता के सहयोग से काफी दिनों से अल्पविकसित पड़े राज्य में विकास तेजी से होने लगता है। राज्य के छोटे होने से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को संचालित करने और विकासोन्मुखी कार्य करने में भी काफी सहुलियत होती है। विकास सुविधाओं के लिए बने नये राज्यों में तेजी से प्रगति होती है। उदाहरण के तौर पर हम उत्तर प्रदेश के गर्भ से निकला उत्तराखण्ड और बिहार से अलग हुए झारखंड को देख सकते हैं। वहीं बड़े राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश अव्यवस्थित एंव अविकसित हैं। 

बड़े राज्य के होने से लोगों की जीवन शैली पर पड़ने वाले दुश प्रभाव - Impact of Largest State 

बड़े प्रांतों में पुरुषों और स्त्रियों, दोनों की जीवन स्थितियाँ काफी बदत होती हैं। बाल मृत्युदर सर्वाधिक होता है, निर्धानता रेखा में लाखों लोग रहते हैं, आबादी अनियंत्रित रहती है, समस्याओं का अंबार होता, वहीं इसके ठीक विपरीत, छोटे राज्यों में शिशु मृत्यु दर, साक्षरता, प्रति व्यक्ति आय कहीं ज्यादा होती है।

निष्कर्ष  ( Conclusion )  


राज्य छोटे हों या बड़े यदि शासन करने वालों की नीति और नीयत साफ हो तो राज्य का आकार मायने नहीं रखता है जिसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिका है वहां 50 राज्य हैं जबकि उसकी आबादी भी भारत से कम है। छोटे राज्यों के गठन से उत्पन्न होने वाली संभावनाएं द्विपक्षीय हैं और इस बारे में सौ प्रतिशत सत्य कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा। 
Writer is a journalist ( Ashish kumar shukla BBC khabar Hindi )...
9458592089  

Jul 3, 2016


काला धन यह काले लोग…..?

आशीष शुक्ला - 

अगर टैक्स चोरी करने वाले देश के सभी काले लोग सुधर जाए तो निश्चत रूप से हमारा राष्ट्र एक दिन विकसित राष्ट्रों के श्रेणी में खुद को खड़ा पा सकता है। विदेशों मे जमा काला धन इतना अधिक है कि अगर यह भारतीय अर्थव्यवस्था में जुड जाए तो इसे सवरने में थोड़ा समय भी नहीं लगेगा। 

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आज हमारा राष्ट्र भ्रष्टाचार, कुशासन, महंगाई, बेरोजगारी से जूझ रहा है यह समस्यायें भारत के सामने मुंह बाये खड़ी हैं लेकिन हमारा राष्ट्र और मौजूदा सरकार इनसे भयभीत हुए बिना बड़ी बहादुरी के साथ इनसे लड़ रहे हैं। राष्ट्र को वैश्विक बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में चल रही भारतीय जनता पार्टी आज देश में सुशासन के लिए भ्रष्टाचार पर सीधा प्रहार करते हुए इसका खत्मा करने के लिए प्रयासरत है। 

यह सिर्फ एक कोशिश मात्र नहीं है, बीते दो सालों मे इसका रिजल्ट भी देश-वासियों को तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप देखने को मिला है। राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर सबसे ज्यादा प्रभाव भ्रष्टाचार, कुशासन, और काले धन से पड़ता है। काले धन का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जिसको लेकर भाजपा अपने चुनावी प्रचार के दौरान से ही काफी ज्यादा सजग रही है। सरकार ने देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को गंभीरता से लेते हुए काले धन को लेकर (एसआइटी) का गठन किया, जिसके बाद काला धन रखने वाले यह काहे की काले लोगों के होश उड़े थे 21,000 करोड़ की अघोषित आय का इसमें खुलासा हुआ था साथ ही 2015 में ब्लैक मनी एक्ट जिसे (अनडिसक्लोज्ड फॉरेन इनकम एंड असेट्स) के नाम से जाना जाता है में 50,000 करोड़ कर चोरी करने वालों को पकड़ा गया था। 
सरकार द्वारा प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट, इनकम डिक्लेरेशन स्कीम, से सक्रियता लगातार बढ़ी रही है। यही कारण है कि हालिया में स्वीट्जरलैंड के केंद्रीय बैंकिंग प्रधिकरण स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) में हमें वहां जमा भारतीयों द्वारा जमा धन में तेजी से गिरावट होने की बात कही है। यह एक तिहाई घटकर रिकॉर्ड सबसे निचले स्तर 1.2 अरब फ्रैंक करीब (8,392 करोड रूपये) पर पहुंच गया है। इस आँकड़े से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार काले धन के मुद्दे पर कितना गंभीर है। 

1997 से स्विस बैंक ने विदेशियों के जमा धन के बारे में आँकड़े सार्वजनिक करना शुरू किया था तब से लेकर अब तक के रिपोर्ट पर अगर नजर डाले तो ऐसा पहली बार हुआ जब भारतीयों का काला धन वहां कम हुआ हो। 2006 के अंत तक भारतीयों की स्विस बैंकों में जमा रकम का रिकॉर्ड ऊँचे स्तर 6.5 अरब सीएचएफ तकरीबन 23,000 करोड़ रूपये पर था लेकिन इसके बाद से लगातार यह घटता जा रहा है, हलांकि 2011 में इसमें 12 फीसद, 2013 में 42 फीसद  इजाफा हुआ था। 2015 तक स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा सीधे जमा की गयी कुल रकम 120.67 करोड़ सीएचएफ रह गया था और ठीक इसके एक साल पहले यह रकम 177.6 करोड़ थी। 2015 से लेकर अब तक भारतीयों द्वारा स्विस बैंक में जमा की गयी राशि में काफी कमी दर्ज की गयी है, इसका श्रेय मौजूदा सरकार को मिलना चाहिए चूँकि सरकार की सजगता से ही स्विस बैंकों में करोड़ो रुपये जमा करने वाले भारतीयों को अब चैन की नींद नहीं आ रही है।  

वर्तमान में सरकार द्वारा चलाई गयी एक योजना मे कोई भी अपनी अघोषित आय पर टैक्स चुका कर उसे नैतिक रूप दे सकता है, इस बात को बीते कुछ दिन पहले स्वंय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से अपने मन की बात प्रोग्राम में कही थी, साथ ही उन्होंने उन काले लोगों को यह हिदायत भी दी थी की यह उनके लिए आखिरी मौका है और इसके बाद किसी भी हालत में उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। 

प्रधानमंत्री मोदी के इस सराहनीय कार्य से निश्चित रूप से अब काला धन रखने वालों के बीच अफरातफरी का माहौल होगा और अगर यह महौल देश में आने वाले तीन सालों तक बना रहे तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार पर काफी लगाम लगेगा और अगर ऐसा हुआ तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। टैक्स चोरी करने वाले लोगों को भी अब एकजुट होना होगा और उन्हें इसका ख्याल रखना होगा की वह भी भारत के हैं और यहां की अर्थव्यवस्था से उनका सीधा लेना-देना है, जिससे वह राष्ट्र हित के लिए राष्ट्र को मजबूती देनें के लिए जरूर राश्ते पर लौटगें। अगर टैक्स चोरी करने वाले देश के सभी काले लोग सुधर जाए तो निश्चत ही हमारा राष्ट्र विकसित राष्ट्रों के श्रेणी में खुद को खड़ा पा सकता है। विदेशों मे जमा काला धन इतना अधिक है कि, अगर यह भारतीय अर्थव्यवस्था में जुड़ जाए तो इसे सवरने में थोड़ा भी समय नहीं लगेगा। अगर 25 लाख करोड़ रूपये देश के 6.38 लाख गांवों में बराबर बांट दिया जाए तो प्रत्येक के हिस्से में 3.91 करोड़ रूपये आएंगे। यह इतनी पर्याप्त रकम है कि इससे एक गांव में एक प्राथमिक विद्यालय, एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के साथ गांव की तमाम अन्य जरूरी सुविधाओं को आसानी से मुहैया कराया जा सकता है।………….

लेखक बीबीसी खबर दिल्ली में स्पेशल स्टोरी राइटर हैं।  

Jun 3, 2016

Ashish Kumar  shukla -
Special Writer - BBC Khabar hindi (Delhi)
9458592089 - 

May 9, 2016

कड़वा पर सच है

सफेद पानी का गोरख धंधा 

पानी, पानी, पानी चारो तरफ बस इसकी चर्चा है। हमारी पृथ्वी पानी से खाली हो गयी क्या? यह फिर सरकारी लाइसेंस पर धड़ल्ले से चल रही पानी की तमाम कंपनियो ने सारा पानी बोतल में बंद कर लिया है, जो पानी की इतनी किल्लत आन पड़ी है। सोचिए भाई आखिर क्यों देश के तमाम जिलों मे पानी की इतनी किल्लत आन पड़ी। सोचिए न महाराष्ट्र का लातूर जिला और उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड जिला क्यो प्यास से व्याकुल हो रहा है। देश की तकरीबन आधी आबादी पानी के लिए क्यो मारी- मारी फिरने लगी है। चलिए हमी बताते हैं कि, इसके पीछे क्या कारण है। जनाब चंद रूपयों की आमदनी के लिए देश-विदेश के पानी कंपनियों को सरकार खूब लाइसेंस दे रही है जो पानी को बड़ी-बड़ी मशीनों से खीचकर बाहर निकालते हैं। सवाल यह भी है कि, आज आखिर पानी की इनती मरा-मारी के बीच भी यह कंपनियां लोगों की प्यास बुझाने में कैसे सफल हो रही हैं? यह कितना पानी निकाल रही हैं धरती से? यह बात अपन के समझ से परे है।
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आज शहर से लेकर गांव तक तमाम प्राइवेट पानी कंपनियों का वर्चस्व है। छोटे-छोटे गावों, कसबों मे अब बोतल बंद पानी मिलने लगा है। आपको जानकर थोड़ी हैरानी जरूर होगी,  लेकिन यह कडवा सच है। पानी की कमी के लिए यह तमाम पानी कंपनिया काफी हद तक जिम्मेदार हैं। यह शुद्ध पानी को बनाने के नाम पर 100 लीटर पानी को 30 लीटर पानी में बदल कर आपको शुद्ध पानी देती हैं। जबकि अन्य 70 लीटर पानी का कोई अता पता नहीं होता है। आखिर इतने शुद्ध पानी की हमे क्या जारूरत आन पड़ी है, कि हम एक तिहाई पानी को नष्ट करके शुद्ध पानी को पीकर संतुष्ट हो रहे हैं। आज भारत में तकरीबन 3000 ऐसे ब्रांड मौजूद हैं, जो पानी का कारोबार करते हैं, जिसमें से तकरीबन 85 प्रतिशत लोकल ब्रांड हैं। अगर आकड़े पर नजर डाले तो, वर्ष 2013 में बोतलबंद पानी का देश में 6 हजार करोड़ रूपये का अच्छा- खासा कारोबार रहा है। 
एक आकलन के मुताबिक वर्ष 2020 तक इसका कारोबार 36 हजार करोड़ यह इससे भी अधिक होने वाला है। आज भारत में लगातार देश-विदेश की ऐसी कंपनियां बढ़ती जा रही हैं, जो लोगों को शुद्ध पानी उपलब्ध कराने का ठेका ले रही हैं। इनका पानी कितना शुद्ध होता है इसपर भी एक नजर डालते हैं। आपको जानकर थोड़ी हौरानी होगी कि, जो बोतलबंद पानी आप पीते हैं,  उसमें सामान्य पानी के मुकाबले तकरीबन 25 क्लोरेट पाया गया है। इतना अधिक क्लोरेट किसी के आंत, मस्तिष्क, शरीर की महत्तवपूर्ण कोशिकाओं, के अलावा पूरे शरीर को क्षतिग्रस्त करने के लिए काफी है। आज पानी कंपनियों के सही गुणवत्ता को जांचने के लिए हमारे पास किसी भी प्रकार का कोई मानक निर्धारित नहीं है, इसके बावजूद भी हम इन झूठी कंपनियों पर बे तहाशा न सिर्फ यकीन कर रहे हैं, बल्कि इनपर खूब प्यार भी बरपा रहे हैं। जरूरत है समय रहते सतर्क होने की, अगर समय रहते हमने इन कंपनियों के बंद बोतल पानी को नहीं त्यागा तो निश्चित रूप से यह देश का सारा पानी अपने बोतल में बंद कर लेंगी और एक दिन ऐसा आएगा जब पूरे देश में पानी की मारा-मारी हो जाएगी और भारत भी बड़े जल संकट से जूझने लगेगा।  

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लेखक आशीष कुमार शुक््ला
पत्रकार नवभारत टाइम््स समाचार पत्र नोएडा
Ashish kumar shukla NBT Noida 
9458592089
ashishnoida62@gmail.com

Mar 31, 2016

कुशलता की निरंतरता को नहीं बरकरार रख पायी टीम इंडिया सेमीफाइनल में करना पड़ा वेस्टइंडीज से हार का सामन...


BY- Ashish kumar shukla Nbt Noida Sport Desk. 

Mar 18, 2016

आज होने वाले महामुकाबले में एनबीटी पैनल में शामिल कोच और प्लेयरों ने पाक-भारत की बॉलिंग और पाक फील्डिंग पर व्यक्त किए अपने विचार
Ashish kumar shukla NBT Noida sport Desk.
BY- Ashish kumar Shukla NBT Noida Sport Desk 

Mar 8, 2016

Noida top 4 golfer participating in delhi golf course- 17 to 20 March Hero open For 1.66 million Dollar
Ashish kumar shukla  NBT Noida Sports Desk


Ashish kumar shukla NBT Noida Sports Desk 

Feb 20, 2016