Jul 20, 2016

Delhi State based Article 

For IAS/PCS Aspirants Very IMP Article 

क्या दिल्ली को मिलना चाहिए पूर्ण राज्य का दर्जा..?

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग पाँच दशक से भी अधिक समय से की जा रही है और यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सभी स्थानीय राजनैतिक दल प्रायः आपसी मतभेद भुलाकर एक सुर में बोलते रहे हैं। दूसरी ओर आम जनता और साधारण नागरिक के रूख के इस माँग को लेकर उत्साह का आभाव है।
केंद्र का कंट्रोल क्यो जरूरी .. ?
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दिल्ली में राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री आवास, संसद भवन, एंबेंसी और हाई कमिश्न है, अगर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया तो पुलिस और जमीन दिल्ली के अधीन हो जाएगी और केंद्र का कंट्रोल खत्म हो जाएगा जिससे सुरक्षा चुनौतियां बढ़ जाएगीं।  
राजनीतिक पार्टियों को मिलेगा लाभ 
दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की बात राजनीतिक पार्टियां करती रही हैं वह चाहती हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले जिससे वह अपना शासन खुल कर चला सकें, लेकिन अगर हम बारिकी से इसपर नजर डाले तो देखते हैं कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देना व्यावहारिक तौर पर सही नहीं है। चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है, इस नाते उस पर केंद्र सरकार का कंट्रोल होना बेहद जरूरी है। इससे जनता को बहुत सारे लाभ मिलते रहेंगे और अगर इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा तो सिर्फ राजनीतिक फायदा होगा इसमें जनता का कुछ भला नहीं होगा। 
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आर्थिक समस्यायें - 
- दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से सबसे पहले वहां की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर बुरा प्रभाव पड़ेगा जिसका खामयाजा सीधे जनता को चुकाना पड़ेगा। 
- दिल्ली को भी अन्य राज्यों की भांति अपना 90 फीसद बजट खुद ही जुटाना पड़ेगा जिसका सीधा असर जनता पर पड़ेगा। 
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हमले की स्थिति में ..
अगर दिल्ली में कभी कोई आंतकवादी हमला होता है तो ऐसे में सेना भी बुलाने की आवश्यकता पड़ सकती है। लेकिन यह अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को ही प्राप्त है न की राज्य सरकार को। राज्य सरकार आतंकी हमला और प्राकृतिक आपदा जैसे बड़े मामलों सही तरह से नहीं निपट पाएगी। राज्य बनने से राजधानी एक महंगा शहर बन जाएगा और कमजोर वर्ग को रोटी, कपड़ा, मकान की आवश्यकता में पड़ोसी राज्यों में पलायन के लिए मजबूत होना पडेगा।
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निष्कर्स 

- दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से वहां सामाजिक और आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाएगा जिसका सीधा असर वहां निवास कर रही स्थाई और अस्थाई जनता पर पड़ेगा, इसका लाभ सिर्फ वहां की राजनीतिक पार्टियों को मिलेगा। चूंकि दिल्ली देश की राजधानी है इसलिए इसपर केंद्र का कंट्रोल वेहद जरूरी है। 

Jul 19, 2016

Formation of New State - 

- सामाजिक, सास्कृतिक, भाषायी पहचान और विकास के लिहाज से कारगर है राज्यों का गठन 

- छोटे राज्यों के गठन से उत्पन्न होने वाली संभावनाएं द्विपक्षीय हैं और इस बारे में सौ प्रतिशत सत्य कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा। 

एक राष्ट्र विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में तभी खड़ा हो सकता है जब उसका सर्वांगीण विकास हुआ हो, सर्वांगीण विकास का अर्थ किसी एक क्षेत्र में हुए विकास से नहीं अपितु, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास से है। लोकतंत्र के हिसाब से देखा जाये तो राज्य की इकाई छोटी होने से जनता अधिक खुश और सरकार के अधिक निकट होती है, जिससे उस राज्य में विकास के तमाम अवसर खुलते हैं। दूसरे नजरिये से देखा जाए तो नए राज्यों के गठन से जनता को कम राजनीतिक पार्टियों को यादा लाभ मिलता है। नए राज्यों का गठन करने मात्र से राज्य को खुशहाल नहीं बनाया जा सकता यह तभी संभव हो सकता है जब राजनीतिक पार्टियां इसपर रोटी सेंकते हुए राज्य के विकास कार्यों में लगे, इसलिए छोटे राज्यों के गठन से उत्पन्न होने वाली संभावनाएं द्विपक्षीय है और इस बारे में सौ प्रतिशत सत्य कुछ कह पाना मुश्किल होगा। 

राज्य को होने वाले सकारात्मक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए- Positive Points For Fromation Of New State 

राज्य की इकाई छोटी होने से जनता सरकार के अधिक निकट होती है जिससे विकास कार्यों में तेजी आती है और परिणाम स्वारूप सरकार और जनता के सहयोग से काफी दिनों से अल्पविकसित पड़े राज्य में विकास तेजी से होने लगता है। राज्य के छोटे होने से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को संचालित करने और विकासोन्मुखी कार्य करने में भी काफी सहुलियत होती है। विकास सुविधाओं के लिए बने नये राज्यों में तेजी से प्रगति होती है। उदाहरण के तौर पर हम उत्तर प्रदेश के गर्भ से निकला उत्तराखण्ड और बिहार से अलग हुए झारखंड को देख सकते हैं। वहीं बड़े राज्यों में पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश अव्यवस्थित एंव अविकसित हैं। 

बड़े राज्य के होने से लोगों की जीवन शैली पर पड़ने वाले दुश प्रभाव - Impact of Largest State 

बड़े प्रांतों में पुरुषों और स्त्रियों, दोनों की जीवन स्थितियाँ काफी बदत होती हैं। बाल मृत्युदर सर्वाधिक होता है, निर्धानता रेखा में लाखों लोग रहते हैं, आबादी अनियंत्रित रहती है, समस्याओं का अंबार होता, वहीं इसके ठीक विपरीत, छोटे राज्यों में शिशु मृत्यु दर, साक्षरता, प्रति व्यक्ति आय कहीं ज्यादा होती है।

निष्कर्ष  ( Conclusion )  


राज्य छोटे हों या बड़े यदि शासन करने वालों की नीति और नीयत साफ हो तो राज्य का आकार मायने नहीं रखता है जिसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिका है वहां 50 राज्य हैं जबकि उसकी आबादी भी भारत से कम है। छोटे राज्यों के गठन से उत्पन्न होने वाली संभावनाएं द्विपक्षीय हैं और इस बारे में सौ प्रतिशत सत्य कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा। 
Writer is a journalist ( Ashish kumar shukla BBC khabar Hindi )...
9458592089  

Jul 3, 2016


काला धन यह काले लोग…..?

आशीष शुक्ला - 

अगर टैक्स चोरी करने वाले देश के सभी काले लोग सुधर जाए तो निश्चत रूप से हमारा राष्ट्र एक दिन विकसित राष्ट्रों के श्रेणी में खुद को खड़ा पा सकता है। विदेशों मे जमा काला धन इतना अधिक है कि अगर यह भारतीय अर्थव्यवस्था में जुड जाए तो इसे सवरने में थोड़ा समय भी नहीं लगेगा। 

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आज हमारा राष्ट्र भ्रष्टाचार, कुशासन, महंगाई, बेरोजगारी से जूझ रहा है यह समस्यायें भारत के सामने मुंह बाये खड़ी हैं लेकिन हमारा राष्ट्र और मौजूदा सरकार इनसे भयभीत हुए बिना बड़ी बहादुरी के साथ इनसे लड़ रहे हैं। राष्ट्र को वैश्विक बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में चल रही भारतीय जनता पार्टी आज देश में सुशासन के लिए भ्रष्टाचार पर सीधा प्रहार करते हुए इसका खत्मा करने के लिए प्रयासरत है। 

यह सिर्फ एक कोशिश मात्र नहीं है, बीते दो सालों मे इसका रिजल्ट भी देश-वासियों को तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप देखने को मिला है। राष्ट्र की अर्थव्यवस्था पर सबसे ज्यादा प्रभाव भ्रष्टाचार, कुशासन, और काले धन से पड़ता है। काले धन का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जिसको लेकर भाजपा अपने चुनावी प्रचार के दौरान से ही काफी ज्यादा सजग रही है। सरकार ने देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था को गंभीरता से लेते हुए काले धन को लेकर (एसआइटी) का गठन किया, जिसके बाद काला धन रखने वाले यह काहे की काले लोगों के होश उड़े थे 21,000 करोड़ की अघोषित आय का इसमें खुलासा हुआ था साथ ही 2015 में ब्लैक मनी एक्ट जिसे (अनडिसक्लोज्ड फॉरेन इनकम एंड असेट्स) के नाम से जाना जाता है में 50,000 करोड़ कर चोरी करने वालों को पकड़ा गया था। 
सरकार द्वारा प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट, इनकम डिक्लेरेशन स्कीम, से सक्रियता लगातार बढ़ी रही है। यही कारण है कि हालिया में स्वीट्जरलैंड के केंद्रीय बैंकिंग प्रधिकरण स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) में हमें वहां जमा भारतीयों द्वारा जमा धन में तेजी से गिरावट होने की बात कही है। यह एक तिहाई घटकर रिकॉर्ड सबसे निचले स्तर 1.2 अरब फ्रैंक करीब (8,392 करोड रूपये) पर पहुंच गया है। इस आँकड़े से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार काले धन के मुद्दे पर कितना गंभीर है। 

1997 से स्विस बैंक ने विदेशियों के जमा धन के बारे में आँकड़े सार्वजनिक करना शुरू किया था तब से लेकर अब तक के रिपोर्ट पर अगर नजर डाले तो ऐसा पहली बार हुआ जब भारतीयों का काला धन वहां कम हुआ हो। 2006 के अंत तक भारतीयों की स्विस बैंकों में जमा रकम का रिकॉर्ड ऊँचे स्तर 6.5 अरब सीएचएफ तकरीबन 23,000 करोड़ रूपये पर था लेकिन इसके बाद से लगातार यह घटता जा रहा है, हलांकि 2011 में इसमें 12 फीसद, 2013 में 42 फीसद  इजाफा हुआ था। 2015 तक स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा सीधे जमा की गयी कुल रकम 120.67 करोड़ सीएचएफ रह गया था और ठीक इसके एक साल पहले यह रकम 177.6 करोड़ थी। 2015 से लेकर अब तक भारतीयों द्वारा स्विस बैंक में जमा की गयी राशि में काफी कमी दर्ज की गयी है, इसका श्रेय मौजूदा सरकार को मिलना चाहिए चूँकि सरकार की सजगता से ही स्विस बैंकों में करोड़ो रुपये जमा करने वाले भारतीयों को अब चैन की नींद नहीं आ रही है।  

वर्तमान में सरकार द्वारा चलाई गयी एक योजना मे कोई भी अपनी अघोषित आय पर टैक्स चुका कर उसे नैतिक रूप दे सकता है, इस बात को बीते कुछ दिन पहले स्वंय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता से अपने मन की बात प्रोग्राम में कही थी, साथ ही उन्होंने उन काले लोगों को यह हिदायत भी दी थी की यह उनके लिए आखिरी मौका है और इसके बाद किसी भी हालत में उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। 

प्रधानमंत्री मोदी के इस सराहनीय कार्य से निश्चित रूप से अब काला धन रखने वालों के बीच अफरातफरी का माहौल होगा और अगर यह महौल देश में आने वाले तीन सालों तक बना रहे तो निश्चित रूप से भ्रष्टाचार पर काफी लगाम लगेगा और अगर ऐसा हुआ तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। टैक्स चोरी करने वाले लोगों को भी अब एकजुट होना होगा और उन्हें इसका ख्याल रखना होगा की वह भी भारत के हैं और यहां की अर्थव्यवस्था से उनका सीधा लेना-देना है, जिससे वह राष्ट्र हित के लिए राष्ट्र को मजबूती देनें के लिए जरूर राश्ते पर लौटगें। अगर टैक्स चोरी करने वाले देश के सभी काले लोग सुधर जाए तो निश्चत ही हमारा राष्ट्र विकसित राष्ट्रों के श्रेणी में खुद को खड़ा पा सकता है। विदेशों मे जमा काला धन इतना अधिक है कि, अगर यह भारतीय अर्थव्यवस्था में जुड़ जाए तो इसे सवरने में थोड़ा भी समय नहीं लगेगा। अगर 25 लाख करोड़ रूपये देश के 6.38 लाख गांवों में बराबर बांट दिया जाए तो प्रत्येक के हिस्से में 3.91 करोड़ रूपये आएंगे। यह इतनी पर्याप्त रकम है कि इससे एक गांव में एक प्राथमिक विद्यालय, एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के साथ गांव की तमाम अन्य जरूरी सुविधाओं को आसानी से मुहैया कराया जा सकता है।………….

लेखक बीबीसी खबर दिल्ली में स्पेशल स्टोरी राइटर हैं।