Apr 27, 2015

  राफेल पास या फेल

भारत विश्व स्तर पर अपनी छवि निखारने के लिए पूरे दम-खम से विश्व शक्तियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। अमेरिका, चीन, फ्रांस, जर्मनी, कनाड़ा और अन्य विकसित राष्ट्र भी इसे अब तवज्जो दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व स्तर पर भारत की छवि को लेकर काफी गंभीर हैं। आर्थिक विकास को तवज्जो देते हुए मोदी सभी राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों से संबंध स्थापित करते हुए भारत के अंतर्राष्ट्रीय कद को बढ़ाने के इच्छुक हैं। यही कारण है कि अमीर और शक्तिशाली देश भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए कतारबद्ध हैं।

हाल में प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस, जर्मनी, कनाड़ा तीन देशों के 9 दिन के दौरे पर थे। उन्होंने वहां कई महत्वपूर्ण समझौते किये। परन्तु फ्रांस की दसाल्ट एविएशन कंपनी से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे से प्रधानमंत्री घिर गये। अरबों डॉलर का राफेल सौदा लागत संबंधी मतभेदों के कारण अटका पड़ा था। इसके तहत भारत को 126 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति की जानी थी।
आपको याद दिलाते चले रक्षा मंत्रालय ने यूपीए सरकार के दौरान 31 जनवरी 2012 को राफेल विमान खरीदने की घोषणा की थी। भारतीय वायु सेना ने कड़े मूल्यांकन के बाद दुनिया के छह जांबाज लड़ाकू विमानों में से यूरोफाइटर टाइफून और फ्रांस की कंपनी डशॉ के विमान राफेल पर मुहर लगाई थी। यह वही विमान सौदा है जिसे नरेंद्र मोदी ने मंजूरी दी है।

 राफेल विमान समझौते पर सियासी पारा तो गरमाना ही था। वीजेपी के दिग्गज नेता डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने इस सौदे को राष्ट्र हित में नहीं बताया था। स्वामी ने टीओआई की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था, कि यह लड़ाकू विमान कारगर नहीं है युद्ध में इनका प्रदर्शन लीबिया और मिस्र में बेहद खराब रहा है। गौरवतलब है कि स्वामी के चेतावनी के बावजूद मोदी सरकार ने 36 फ्रेंच लड़ाकू विमान खरीदने के समझौते को मंजूरी दी है। वहीं विशेषज्ञों मानें तो राफेल की रफ्तार 2200 से 2500 किमी प्रतिघंटा है। यह विमान ब्रहमोस जैसी 6 सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ले जाने में यह सक्षम है। 3 लेडर गाइडेड बम, 6 हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल, 4700 किलो फ्यूल 3700 किमी तक की रेंज और करीब 5 हजार किलो लोडेड वजन ले जाने मे इस विमान को कारगर बताया है। यह विमान हवा में फ्यूल भरने के बाद लगातार दस घंटे तक उड़ने में सक्षम है। अहम बात यह भी है कि भारतीय वायुसेना के हर परीक्षण मे यह विमान खरा उतरा है।
  भारत का कुल रक्षा बजट 41 अरब डालर के आसपास है। जो अमेरिका, चीन, रूस जैसे देशों के मुकाबले काफी कम है। इस साल चीन का 142.2 अरब डॉलर का रक्षा व्यय भारत के रक्षा बजट के मुकाबले लगभग 104 अरब डॉलर अधिक है। चीन ने पिछले साल के 132 अरब डॉलर के मुकाबले 12 अरब डॉलर की बढ़ोतरी की है।
 नरेंद्र मोदी ने भारत में मेक इन इंडिया का प्रस्ताव पूरे विश्व के समक्ष रखा है। भारत के अर्थव्यवस्था के लिहाल से यह अच्छा कदम साबित हो सकता है।

 भारत के कुछ विदेशी समझौते लोगों को परेशान कर रहे हैं।  ईरान, कनाडा से परमाणु समझौते तक तो समझा जा सकता है, क्योंकि हम इससे अपने यहां परमाणु यंत्र का निर्माण करेंगे। एक तरफ मोदी मेक इन इंडिया प्रोग्राम की शुरूआत करते हैं और विश्व को भारत मे प्रोडक्टस् बनाने का न्योता देते हैं और फिर फ्रांस से विमानों की खरीद करते हैं। आखिर यह मेक इन इंड़िया का कौन सा फर्रमूला है।?

कहते हैं कि अपनी कमियों को छिपाने में ही भलाई होती है यह काफी हद तक सही भी है, जब हमारे दुश्मनों को पता होगा की हमारी क्षमता क्या है यह मिशाइल 200 किलोमीटर से ज्यादा तेज नहीं लड़ सकती और फिर हम उन्हीं से यह मिशाइल खरीदते हैं और विश्व में ड़का बजाते हैं कि हम बहुत सबल हैं। परन्तु सवाल यह उठता है, कि जो देश हमें मिशाइल, विमान, अन्य तरह की सामग्री बेंच रहा है क्या उसके पास युद्ध करने के लिए हमसे बेहतर यंत्र नहीं होगें?। दुर्भग्यवश अगर भविष्य मे कभी भारत को युद्ध करना ही पड़े तो क्या इनका इस्तेमाल महज एक खिलौनें से बढ़कर होगा युद्ध जीतना तो दूर की बात है उस स्थिति में अगर हम अपनी रक्षा कर ले जाएं तो यह बहुत बड़ी बात होगी। प्रधानमंत्री से देश यही उम्मीद लगाए बैठा है कि वह जो करेंगे राष्ट्र हित में होगा परन्तु कैसे?

भारत को अगर एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना है तो उसे मेक इन इंड़िया पर काम करना ही पड़ेगा। भारत जब इसपर काम करने लगेगा तभी अपने आपको वह विश्व स्तर पर सिद्ध कर सकेगा। अमेरिका, रूस, जापानचायना, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा जैसे देश आज सिर्फ इस लिए विश्व शक्ति के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि वह खुद अपने रक्षा यंत्रों को बनाते हैं। और जो उनके उपयोग से बच जाता है उसे वह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे राष्ट्र को बेच देते हैं। अन्य देशों को बेंचने से वह अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करते हैं। अगर भारत को अपनी अर्थव्यवस्था और रक्षा सुधार करना है तो उसे भी इन्हीं देशों की तरह घर में रंक्षा यंत्र सहित अन्य उपयोगी वस्तुओं को मेक करना ही होगा। भारत आये दिन किसी न किसी देश से तमाम समझौते करता रहता है जिसके कारण देश के धन की बहुत खफत होती है। भारत की अर्थव्यवस्था को अगर मजबूत बनाना है तो खरीद फरोख को कम करना होगा और मेक इन इंड़िया पर कार्य करना ही होगा।


Apr 20, 2015


Ashish kumar shukla 

आशीष कुमार शुक्ला 

नोएडा कार्यकारी संपादक 'लेबर निगरानी ब्यूरो'      

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना ......................
अपने शब्दों मे पिराकर बताने की एक कोशिश 
दो अलग-अलग अख़बारों के संपादकीय पृष्ट के समस्त संस्करणों मे प्रकाशित ...
1 दैनिक दबंग दुनिया ( मध्यप्रदेश)
2 जनसामन, कानपूर देहरादून  A.s Raja




Apr 18, 2015

व्यक्ति विशेष
मोदी का सपना


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका, जापान, चीन जैसे देशों की तरह भारत को विकसित राष्ट्र के रूप मे देखना चाहते हैं, इसके लिए उनकी क्या नीतियां हैं किस तरह वह भारत को विकसित राष्ट्र बनाना चाहते हैं, इसका विश्लेषण कर रहे हैं आशीष शुक्ला
A.S RAJA 



आज भारत एक विकसित राष्ट्र बनने के दौड मे तेजी से अमेरिका, रूस, चीन, जापान और अन्य विकसित देशों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता नजर आ रहा है। भारत के लिए इन देशों के बराबर चलना कभी एक सपना था, परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सपने को अपने सपने से जोडते हुए विश्व स्तर पर भारत को सशक्त बनाने की ठान ली है। प्रधानमंत्री बनने के बाद ही मोदी ने देश के सपने पर काम करना शुरू कर दिया और महज दस महीने मे भारत की छवि को निखारने की कोशिश कि, इसमे काफी हद तक वह सफल भी रहे। काफी समय बाद भारत को ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो विश्व मे भारत की छवि को लेकर चिंतित नज़र आता है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने विश्व स्तर पर भारत की छवि सुधारने की शुरूआत कुछ इस अंदाज मे की। अपने शपथ ग्रहण में सार्क देशों के सभी नेताओं सहित तिब्बत के निर्वाचित प्रधानमंत्री को भी उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह मे आमंत्रित किया। मोदी की यह पहली शुरुआत थी। जापान सदैव से भारत का हितैषी रहा है नरेंद्र मोदी ने जापान के उद्योगपतियों को भारत मे व्यापार करने की नसीहत दी। भारत की अर्थव्यवस्था को सुधारने का यह पहला सही कदम था मोदी कफी हद तक इस नीति मे सफल होते नज़र आ रहे हैं। हर देश अपने विपक्षी देश के लिए एक विदेश नीति" निर्धारित करता है। वो देश राजनयिक और कूटनीतिक स्तर पर उसी "नीति" के अनुसार चलता है। मोदी ने भी अपनी विदेश नीति मे चीन को काफी महत्ता दी।

भारत और चीन के रिस्ते हमेशा से कटु रहे हैं, परन्तु नरेंद्र मोदी ने चीन से अच्छे रिश्ते बनाने की ठान ली और राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भारत आने का आमंत्रण दे दिया, मोदी की यह महत्वपूर्ण चाल चीन से अच्छे रिश्ते कायम करने की थी। चीन, भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साथी है 1962 के चीन-भारत और अब के भारत-चीन में भी फर्क है। आज चीन भी भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए तैयार है, मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन के साथ भारत के 12  महत्वपूर्ण समझौते हुए हैं। अब जिक्र करते हैं पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के लिए मोदी के नीतियों की।
आज भारत इतना सबल-संक्षम है कि वह पाकिस्तान को मुहतोड जवाब दे सकता है, परन्तु वह ऐसा इस लिए नहीं कर रहा क्योंकि वह सदा से ही अपनी दयालुता के लिए जाना जाता रहा है।  युद्ध करने से विश्व स्तर पर राष्ट्र की छवि धूमिल होती है । मै समझता हूं कि युद्ध किसी भी देश के लिए सामाजिक, आर्थिक, वह अन्य तरीके से राष्ट्र को अपूर्णिय छति पहंचाता है। परन्तु पाकिस्तान की नापाक हरकत जो आये दिन होती रहती है इसको भारत कब तक बरदास करेगा? और पाक को मुहतोड़ जवाब कब देगा यह देखना खासा गंभीर होगा । सवाल यह भी उठता है कि आखिर मोदी की खामोशी इसपर कब टूटती है।

मै समझता हूं किसी भी देश के नागरिकों का धर्म राष्ट्रधर्म होना चाहिए और राष्ट्र के हित मे सदैव तत्पर रहना चाहिए।  देश की सवा सौ करोड़ जनता नरेंद्र मोदी से यही उम्मीद करती है, कि वह राष्ट्र हित के लिए कुछ भी करने के सदैव तैयार रहेंगे। जनता मोदी से यही उम्मीद करती है कि, वह देश के लिए जो विदेश नीति बनायेंगे वह देश के हित मे होगी।

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने कई विदेशी दौरे वह महत्वपूर्ण समझौते किए । हाल ही मे प्रधानमंत्री फ्रांस, जर्मनी, कनाडा देशों के दौरे पर थे। वहां उन्होंने फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान, जर्मनी से खुले व्यापार पर समझौता, कनाडा से 3000 टन यूरेनियम की खरीद, भारत में स्वास्थ्य संबंधी पांच अनुसंधानों के लिए दोनों देश ने 25 लाख डॉलर निवेश करने का समझौता हुआ। परन्तु यह समझौते क्या देश के सवा सौ नागरिकों को किसी तरह से लाभ देगा प्रधानमंत्री को यह कतई नहीं भूलना चाहिए। राष्ट्र के लिए मोदी की सोच की कोई मिसाल नहीं है यह उच्चस्तरिय है।
आज नरेंद्र मोदी की छवि देश के प्रति अच्छी प्रतीत होती है, अभी मौजूदा स्थित देख कर कहा जा सकता है, कि भारत को समझने वाला प्रधानमंत्री मिल गया है। भाजपा सरकार पर सदैव से यह आरोप लगते रहे हैं, कि भाजपा हिंदुत्व का समर्थन करती है और इस बाद की पुष्टि अपने विवादात्मक बयानो से आये दिन वीजेपी के नेता देते रहते हैं। अगर बीजेपी को लंबे समय तक सत्ता मे काबिज रहना है तो उसे राष्ट्र धर्म अपनाना पड़ेगा जिसकी कमी आज निरंतर देखी जा सकती है।
                                            ( यह लेखक के अपने विचार हैं)


Apr 16, 2015

Ashish kumar shukla 

आशीष कुमार शुक्ला 

नोएडा कार्यकारी संपादक 'लेबर निगरानी ब्यूरो'      


बाल मजदूरी पर एक विज्ञापन 

A.s Raja 





ताजमहल पर विशेष लेखन और युवाओं की 

राजनीति पर राय  

A.s Raja 





बढ़ते प्रदूषण पर एक सामाजिक विज्ञापन

आशीष शुक्ला राजा 


Apr 14, 2015

आज जिस तरह से सड़क दुर्घटनायें हमारे देश मे घटित हो रही हैं यह काफी गंभीर चिंता का विषय है। सड़क दुर्घटना के मामले मे भारत का तीसरा स्थान है विश्व स्तर पर ,,,,
जनसामाना के संपादकीय पृष्ठ के समस्त संसकरणों मे एक साथ प्रकाशित....लेख... A.s Raja 



Apr 6, 2015


Ashish kumar shukla 

आशीष कुमार शुक्ला 

नोएडा कार्यकारी संपादक 'लेबर निगरानी ब्यूरो'      

देैनिक दबंग दुनिया समचार पत्र के समस्त संसकरणों में प्रसारित शिक्षा पर आधारित लेख 






Apr 5, 2015


महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर एक लेख ...कैसे संभव महिला सशक्तिरण ASHISH SHUKLA RAJA



भारतीय शिक्षा किस तरह बहाल इस पर एक लेख - ASHISH SHUKLA RAJA


  

 धारा 370 पर आधारित लेख ASHISH SHUKLA RAJA 



       काले धन लाने की बीजेपी के कवायद का विशलेषण



अपने शब्दों मे पंडित नेहरू को बताने की एक कोशिश

ज्ञान और सत्य में अतर अध्यात्मिक लेख...  Ashish shukla Raja 


एक साक्षात्कार , .....कवि श्री सूर्य कुमार पाण्डें जी का 




   जम्मू-कश्मीर पर एक लेख ........Ashish shukla Raja 

एक पुरानी याद 
ऐसे हो जाती दोस्ती
अपना कोई लगे तो हो जाती दोस्ती.....
                                  ख्वाबो में हो जाती दोस्ती ........
राह चलते हो जाती दोस्ती .........
                                ऑंखो– ऑंखो में हो जाती दोस्ती ....
बातो बातो में हो जाती दोस्ती....
                                              कभी प्यार में बदल जाती दोस्ती....
तो कभी कॉंच सी टूट कर बिखर जाती दोस्ती ......
                                        जीवन के हर पहलू में साथ निभाती दोस्ती ...
बुरो को अच्छा बना देती दोस्ती ......
                                        राह चलना सिखा देती दोस्ती.......
फूलो की महक होती हैं दोस्ती .....
                                     सब रिस्तो से बडी होती अपनी दोस्ती.......
 ऐसे ही हो जाती दोस्ती .................


पं आशीष शुक्ला राजा..27.2.014




Apr 4, 2015

जिंदगी दाव पर 
आशीष शुक्ला

इस दौड भाग भरी जिंदगी मे सडक दुर्घटना की स्थिति बत से बत्तर हो रही है, सरकार के नियम कानून बनाने के बाद भी सडक दुर्घटनायें नहीं रुक रही हैं। यातायात नियंत्रण का जिम्मा प्रशासन का है, परन्तु कुछ दायित्व नागरिकों के भी हैं जिसे वह अनदेखा कर रहे हैं। इन्ही गलतियों से रोज कोई-ना कोई सडक दुर्घटना का शिकार होता है। हमें यह ध्यान रखना होगा की जो नियम कानून बनाए गये हैं, हमारे सुरक्षा लिहाज से हैं अगर हम नियमों को फॉलो नहीं करेंगे तो, रोज किसी घर का चिराग बुझता रहेगा।
जब स्कूल से बच्चे निकलते हैं तो, यही डर रहता है कही वह किसा घटना का शिकार ना हो जाए।  ऐसा घटनाएं रोज आए दिन होती रहती हैं।  सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि घनी आबादी और व्यस्त बाजारों वाले क्षेत्र में नए स्कूलों को मान्यता न मिले। जिन क्षेत्रों में यातायात का दबाव ज्यादा बढ़ गया है वहां समयबद्ध तरीके से विद्यालयों को स्थानांतरित करने का आदेश दिया जाना चाहिए। असल समस्या यह है कि हमारी सरकारें किसी भी समस्या को विस्फोटक स्तर तक पहुंचने का इंतजार करती हैं। यदि ऐसी स्थिति आने से पहले ही सरकारें और उनका तंत्र चेत जाए तो लोगों की मुश्किल आसान हो जाएगी। दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा लोग भारत में मारे जाते हैं। हालांकि सड़क हादसों के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है।
अंतरराष्ट्रीय सड़क संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2008 में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक 1,19,860 मौतें भारत में हुईं। इसके बाद चीन (73,484) और अमेरिका (37,261) का नंबर था। योजना आयोग ने वर्ष 2000 में सड़क दुर्घटनाओं के मामले में एक कार्य समूह का गठन किया था। इसने तब सड़क दुर्घटनाओं की सामाजिक लागत 55 हजार करोड़ रुपये आंकी थी। तब यह देश के जीडीपी का करीब तीन प्रतिशत थी।  रोड ऐक्सिडेंट में होने वाली मौतों के मामले में भारत का रिकॉर्ड बेहद खराब है। वर्ष 2013 में 1.38 लाख लोगों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हुई थी। ज्यादातर हादसे ओवर स्पीड, लालबत्ती की अनदेखी, गाड़ी चलाते हुए मोबाइल पर बात करने और नशे में गाड़ी चलाने के कारण होते हैं। परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी से अधिक हादसे चालक की गलती से होते हैं, क्योंकि इनके लिए सख्त नियम नहीं हैं।  सड़क पर हमारा व्यवहार कहीं न कहीं हमारी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को भी दिखाता है।
अगर देश में सड़क दुर्घटनाएं रुक नहीं पा रहीं तो यह हमारे सिस्टम की बड़ी विफलता है। आज पूरा ट्रैफिक तंत्र भारी भ्रष्टाचार से ग्रस्त है। हमारे देश में बिना किसी खास टेस्ट के किसी का भी ड्राइविंग लाइसेंस बन जाता है। एक बार लाइसेंस बन जाने के बाद कोई भी सड़क पर उतर आता है।  वाहन चालकों को विधिवत प्रशिक्षण देने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। इसलिए जानकारी के अभाव में वे गलतियां कर बैठते हैं। गलतियां करने के बाद अक्सर वे रिश्वत देकर छूट जाते हैं। पुलिस दुर्घटनाओं के मामलों में बड़े लचर ढंग से साक्ष्य पेश करती है जिससे सजा दिए जाने की दर बेहद कम है। इससे दूसरों का मनोबल बढ़ता है।

हमारे देश में ट्रैफिक अभी भी प्राथमिकताओं में नहीं आया है। लेकिन विकास के जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं उसमें आने वाले समय में ट्रैफिक गवर्नेंस का एक अहम मुद्दा होगा। आज जरूरी है कि एक ईमानदार और सक्षम ट्रैफिक तंत्र विकसित किया जाए। मौजूदा कानूनों का ढंग से पालन हो और दोषियों को सजा मिले। साथ ही जनता को इस बारे में जागरूक करने का अभियान चलाया जाए। 
A.s Raja

Apr 3, 2015

ताज का राज.....?





आगरा का ताजमहल भारत की शान वह प्रेम का प्रतीक माना जाता है। दुनियां के सात अजूबों में शुमार, ताज सच मे खूबसूरती का एक अनोखा मंजर है। यमुना नदी के किनारे सफेद पत्थरों से निर्मित अलौकिक सुंदरता की तस्वीर 'ताजमहल' न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी पहचान रखता है। ताजमहल को लेकर विभिन्न लेखकों के विचार और तर्क आये दिन सामने आते रहते हैं । एक बार फिर-ताजमहल के पीछे का छुपा राज लोगों के सामने उजागर किया है। इतिहास के माने जाने विशेषज्ञ श्री पी.एन. ओक  ने। अपने शोध के जरिये ताजमहल पर आई अपनी किताब मे उन्होंने यह दावा किया है, कि ताजमहल शिव मंदिर है, जिसका असली नाम तेजो महालय है।
जब शाहज़हां और औरंगज़ेब का शासनकाल था तब किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है। ताजमहल शब्द के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द नहीं है। अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है, जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो। शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महलके नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का प्रयोग किया है। यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है, तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं बनता। ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।
 कुछ सभ्याताएं भी इससे मेल खाती हैं। और शिव मंदिर होने का दावा कराती हैं, जैसे कि, ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है। संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के समय से भी पहले की थी, जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता। संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 'तेज-लिंग' का वर्णन किया गया है। ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था।  
ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद-बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था। ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी, कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके।
 इतिहास में शाहज़हां के मुमताज़ के प्रति विशेष आसक्ति का कोई विवरण नहीं मिलता । ताज की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर खाई खोद कर की गई है। किलों, मंदिरों तथा भवनों की सुरक्षा के लिये खाई बनाना हिंदुओं में सामान्य सुरक्षा व्यवस्था रही है। पीटर मुंडी ने लिखा है, कि शाहज़हां ने उन खाइयों को पाटने के लिये हजारों मजदूर लगवाये थे। यह भी ताज के शाहज़हां के समय से पहले के होने का एक लिखित प्रमाण है। ताज के दक्षिण में एक प्रचीन पशुशाला है। वहाँ पर तेजोमहालय के पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है। 
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं। प्रो. ओक. जोर देकर कहते हैं, कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं, ना की मुसलमानों मे।
शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने  "बादशाहनामा"  में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000  से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है, जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है किशाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बादबुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था।
ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है, कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है।  टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी थे, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया है, कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान', पास दफ़नाया था, ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। अंग्रेजी लेखक अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं। डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है, कि मानसिंह का भवन ,जो कि आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है शाहज़हां के समय से भी पहले का एक उत्कृष्ट भवन है। ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है, कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद-बूँद कर पानी टपकता रहता है, पूरे विश्व मे किसी कि भी कब्र पर बूँद-बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद-बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है। खैर ताज का राज क्या है यह पुख्ता और सही तरह से अभी बता पाना मुंकिन नहीं है। तमाम लेखकों द्वार दिये गये मत को गलत तभी साबित किया जा सकता है, जब ताजमहल मे बंद उन सभी कमरों को खुलवाया जाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दिया जाए। अगर ऐसा होगा तो शायद ताज का राज सबके सामने आ जाए।  खैर अभी यह देखना खासा रोचक होगा, कि क्या मौजूदा केंद्र सरकार इसपर दखल देना पसंद करेगी।

(यह लेख इतिहास वह लेखकों के द्वारा ताजमहल पर शोध और उनके दिये गये मतों के आधार पर लिखा गया है, लेखक खुद किसी बात की पुष्टी नहीं करता) 

A.s Raja

युवा कितना सजग है.....?                                                                   4-4-2015

सोशल और समाजिक मुद्दों पर युवाओं की राय

आशीष शुक्ला 
गोण्ड़ा - युवा किसी देश का भविष्य है, वह देश के विकास मे पूरी तरह से समलित है, भारत युवाओं का देश है । आज राजनीति मे तरह-तरह के फेरबदल हो रहे हैं, इसपर हमारे देश के युवाओं की सोच क्या है?  इनके विचारों को जानने की कोशिस कर रहे हैं, आशीष शुक्ला।  इनकी युवाओं से बात-चीत के कुछ संपादित अंश—

1 आप देश की राजनीति को किस नजरिये से देखते हैं.....?
राजनीति किसी देश का महत्वपूर्ण अंग है, ऐसा कहा जाए तो गलत नहीं होगा। जाहां तक मै राजनीति को समझता हूं, आज इसकी तस्वीर कुछ धूमिल सी मालूम पड़ती है, सिर्फ चारो तरफ सरकार बनाने की होड है, जन्ता की फिर्क करना राजनेता जैसे भूल गये हैं।

                                  - रवि शुक्ला छात्र साकेत विश्वविद्यालय



2 क्या सरकार के वायदे पूरे होगें.....?

मुझे लगता है कि कुछ वायदे पूरे हो रहे हैं और आगे भी होगें, भारत की राजनीति मे पहली बार इतना बडा उलट-फेर हुआ है।  2014 मे भाजपा सबसे बडी पर्ट्री के रूप मे आई है। हम सबको प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से बहुत उम्मीद है, वह जरूर हमारे लिए अच्छा सोचते होगे।

                             विष्णु त्रिपाठी छात्र साकेत विश्वविद्यालय 

3 आप अपने सासंद के काम से संतुष्ठ हैं.....?
चुनाव के समय हमे बहुत से लोग मिलते हैं और  ग्रामीण निर्माण के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दिये जाते हैं, परन्तु जब वह चुना जीत जाते हैं, तो सभी वायदे भूल जाते हैं, कुछ ऐसा यहां भी है। परन्तु और जगहों से स्थिति याहां अच्छी है, ज्यादा काम नहीं हो रहा परन्तु कुछ काम सासंद जी ने अवश्य करना शुरू कर दिया है।

                               ---  सतीश शुक्ला छात्र गांधी विद्यालय

4 आज की राजनीति मे आप क्या बदलाव देख रहे हैं.....?
राजनीति मे सदैव तरह के बदलाव होते रहे हैं, आज भी गतिवत हो रहे हैं। पहले  की राजनीति मे और अब मे बहुत अंतर है। पहले राजनेता जन्ता की भलाई के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे, परन्तु आज सभी नेता अपनी जेब भरने मे लगे हैं। आज के नेता लालची स्वभाव के हैं, उन्हें जैसे जन्ता से कोई मतलब ही ना हो।

                               शुभम त्रिपाठी छात्र गांधी विद्यालय

5 देश के प्रधानंत्री के बारे मे आप क्या सोचते हो.....?
सत्ता की चाह और वोट बैंक की राजनीति अब आम मालूम पडती है। जहां तक भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी का ख्याल है, उनकी छवि एक साफ-सुथरे नेता की है। गरीबी की भयानक दल-दल से वह निकले हैं, और अपने आपको देश के समक्ष प्रस्तुत किया है। हमे उम्मीद है, कि वह गरीबी, बेरोजगारी को समझते हुए भारत को इस तरह की बड़ी समस्याओं से मुक्त कराने की पूरी कोशिस करेंगे।
       
                                                 अंशुमान शुक्ला छात्र गांधी विद्यालय

6 नेताओं के बारे मे क्या सोचते हैं आप .....?
नेता हमारे देश की सत्ता को चलाता है। जन्ता की परेशानियों को सुनना और उस पर गौर करना नेताओं का काम होता है। परन्तु आज ऐसा बहुत कम ही हो रहा है, उनके पास जब हम मिलने के लिए जाते हैं, तो मिलने नहीं दिया जाता, जिसके चलते हम आये दिन तमाम परेशानियों का सामना करते हैं। पहले और अब के नेताओं मे जमीन आसमान का अंतर नजर आता है।


                                       मुकेश शुक्ला छात्र गांधी विद्यालय