Apr 27, 2015

  राफेल पास या फेल

भारत विश्व स्तर पर अपनी छवि निखारने के लिए पूरे दम-खम से विश्व शक्तियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। अमेरिका, चीन, फ्रांस, जर्मनी, कनाड़ा और अन्य विकसित राष्ट्र भी इसे अब तवज्जो दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्व स्तर पर भारत की छवि को लेकर काफी गंभीर हैं। आर्थिक विकास को तवज्जो देते हुए मोदी सभी राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों से संबंध स्थापित करते हुए भारत के अंतर्राष्ट्रीय कद को बढ़ाने के इच्छुक हैं। यही कारण है कि अमीर और शक्तिशाली देश भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए कतारबद्ध हैं।

हाल में प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस, जर्मनी, कनाड़ा तीन देशों के 9 दिन के दौरे पर थे। उन्होंने वहां कई महत्वपूर्ण समझौते किये। परन्तु फ्रांस की दसाल्ट एविएशन कंपनी से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे से प्रधानमंत्री घिर गये। अरबों डॉलर का राफेल सौदा लागत संबंधी मतभेदों के कारण अटका पड़ा था। इसके तहत भारत को 126 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति की जानी थी।
आपको याद दिलाते चले रक्षा मंत्रालय ने यूपीए सरकार के दौरान 31 जनवरी 2012 को राफेल विमान खरीदने की घोषणा की थी। भारतीय वायु सेना ने कड़े मूल्यांकन के बाद दुनिया के छह जांबाज लड़ाकू विमानों में से यूरोफाइटर टाइफून और फ्रांस की कंपनी डशॉ के विमान राफेल पर मुहर लगाई थी। यह वही विमान सौदा है जिसे नरेंद्र मोदी ने मंजूरी दी है।

 राफेल विमान समझौते पर सियासी पारा तो गरमाना ही था। वीजेपी के दिग्गज नेता डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने इस सौदे को राष्ट्र हित में नहीं बताया था। स्वामी ने टीओआई की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था, कि यह लड़ाकू विमान कारगर नहीं है युद्ध में इनका प्रदर्शन लीबिया और मिस्र में बेहद खराब रहा है। गौरवतलब है कि स्वामी के चेतावनी के बावजूद मोदी सरकार ने 36 फ्रेंच लड़ाकू विमान खरीदने के समझौते को मंजूरी दी है। वहीं विशेषज्ञों मानें तो राफेल की रफ्तार 2200 से 2500 किमी प्रतिघंटा है। यह विमान ब्रहमोस जैसी 6 सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ले जाने में यह सक्षम है। 3 लेडर गाइडेड बम, 6 हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइल, 4700 किलो फ्यूल 3700 किमी तक की रेंज और करीब 5 हजार किलो लोडेड वजन ले जाने मे इस विमान को कारगर बताया है। यह विमान हवा में फ्यूल भरने के बाद लगातार दस घंटे तक उड़ने में सक्षम है। अहम बात यह भी है कि भारतीय वायुसेना के हर परीक्षण मे यह विमान खरा उतरा है।
  भारत का कुल रक्षा बजट 41 अरब डालर के आसपास है। जो अमेरिका, चीन, रूस जैसे देशों के मुकाबले काफी कम है। इस साल चीन का 142.2 अरब डॉलर का रक्षा व्यय भारत के रक्षा बजट के मुकाबले लगभग 104 अरब डॉलर अधिक है। चीन ने पिछले साल के 132 अरब डॉलर के मुकाबले 12 अरब डॉलर की बढ़ोतरी की है।
 नरेंद्र मोदी ने भारत में मेक इन इंडिया का प्रस्ताव पूरे विश्व के समक्ष रखा है। भारत के अर्थव्यवस्था के लिहाल से यह अच्छा कदम साबित हो सकता है।

 भारत के कुछ विदेशी समझौते लोगों को परेशान कर रहे हैं।  ईरान, कनाडा से परमाणु समझौते तक तो समझा जा सकता है, क्योंकि हम इससे अपने यहां परमाणु यंत्र का निर्माण करेंगे। एक तरफ मोदी मेक इन इंडिया प्रोग्राम की शुरूआत करते हैं और विश्व को भारत मे प्रोडक्टस् बनाने का न्योता देते हैं और फिर फ्रांस से विमानों की खरीद करते हैं। आखिर यह मेक इन इंड़िया का कौन सा फर्रमूला है।?

कहते हैं कि अपनी कमियों को छिपाने में ही भलाई होती है यह काफी हद तक सही भी है, जब हमारे दुश्मनों को पता होगा की हमारी क्षमता क्या है यह मिशाइल 200 किलोमीटर से ज्यादा तेज नहीं लड़ सकती और फिर हम उन्हीं से यह मिशाइल खरीदते हैं और विश्व में ड़का बजाते हैं कि हम बहुत सबल हैं। परन्तु सवाल यह उठता है, कि जो देश हमें मिशाइल, विमान, अन्य तरह की सामग्री बेंच रहा है क्या उसके पास युद्ध करने के लिए हमसे बेहतर यंत्र नहीं होगें?। दुर्भग्यवश अगर भविष्य मे कभी भारत को युद्ध करना ही पड़े तो क्या इनका इस्तेमाल महज एक खिलौनें से बढ़कर होगा युद्ध जीतना तो दूर की बात है उस स्थिति में अगर हम अपनी रक्षा कर ले जाएं तो यह बहुत बड़ी बात होगी। प्रधानमंत्री से देश यही उम्मीद लगाए बैठा है कि वह जो करेंगे राष्ट्र हित में होगा परन्तु कैसे?

भारत को अगर एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरना है तो उसे मेक इन इंड़िया पर काम करना ही पड़ेगा। भारत जब इसपर काम करने लगेगा तभी अपने आपको वह विश्व स्तर पर सिद्ध कर सकेगा। अमेरिका, रूस, जापानचायना, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा जैसे देश आज सिर्फ इस लिए विश्व शक्ति के रूप में जाने जाते हैं क्योंकि वह खुद अपने रक्षा यंत्रों को बनाते हैं। और जो उनके उपयोग से बच जाता है उसे वह भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे राष्ट्र को बेच देते हैं। अन्य देशों को बेंचने से वह अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करते हैं। अगर भारत को अपनी अर्थव्यवस्था और रक्षा सुधार करना है तो उसे भी इन्हीं देशों की तरह घर में रंक्षा यंत्र सहित अन्य उपयोगी वस्तुओं को मेक करना ही होगा। भारत आये दिन किसी न किसी देश से तमाम समझौते करता रहता है जिसके कारण देश के धन की बहुत खफत होती है। भारत की अर्थव्यवस्था को अगर मजबूत बनाना है तो खरीद फरोख को कम करना होगा और मेक इन इंड़िया पर कार्य करना ही होगा।


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