Apr 4, 2015

जिंदगी दाव पर 
आशीष शुक्ला

इस दौड भाग भरी जिंदगी मे सडक दुर्घटना की स्थिति बत से बत्तर हो रही है, सरकार के नियम कानून बनाने के बाद भी सडक दुर्घटनायें नहीं रुक रही हैं। यातायात नियंत्रण का जिम्मा प्रशासन का है, परन्तु कुछ दायित्व नागरिकों के भी हैं जिसे वह अनदेखा कर रहे हैं। इन्ही गलतियों से रोज कोई-ना कोई सडक दुर्घटना का शिकार होता है। हमें यह ध्यान रखना होगा की जो नियम कानून बनाए गये हैं, हमारे सुरक्षा लिहाज से हैं अगर हम नियमों को फॉलो नहीं करेंगे तो, रोज किसी घर का चिराग बुझता रहेगा।
जब स्कूल से बच्चे निकलते हैं तो, यही डर रहता है कही वह किसा घटना का शिकार ना हो जाए।  ऐसा घटनाएं रोज आए दिन होती रहती हैं।  सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि घनी आबादी और व्यस्त बाजारों वाले क्षेत्र में नए स्कूलों को मान्यता न मिले। जिन क्षेत्रों में यातायात का दबाव ज्यादा बढ़ गया है वहां समयबद्ध तरीके से विद्यालयों को स्थानांतरित करने का आदेश दिया जाना चाहिए। असल समस्या यह है कि हमारी सरकारें किसी भी समस्या को विस्फोटक स्तर तक पहुंचने का इंतजार करती हैं। यदि ऐसी स्थिति आने से पहले ही सरकारें और उनका तंत्र चेत जाए तो लोगों की मुश्किल आसान हो जाएगी। दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा लोग भारत में मारे जाते हैं। हालांकि सड़क हादसों के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है।
अंतरराष्ट्रीय सड़क संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2008 में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक 1,19,860 मौतें भारत में हुईं। इसके बाद चीन (73,484) और अमेरिका (37,261) का नंबर था। योजना आयोग ने वर्ष 2000 में सड़क दुर्घटनाओं के मामले में एक कार्य समूह का गठन किया था। इसने तब सड़क दुर्घटनाओं की सामाजिक लागत 55 हजार करोड़ रुपये आंकी थी। तब यह देश के जीडीपी का करीब तीन प्रतिशत थी।  रोड ऐक्सिडेंट में होने वाली मौतों के मामले में भारत का रिकॉर्ड बेहद खराब है। वर्ष 2013 में 1.38 लाख लोगों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हुई थी। ज्यादातर हादसे ओवर स्पीड, लालबत्ती की अनदेखी, गाड़ी चलाते हुए मोबाइल पर बात करने और नशे में गाड़ी चलाने के कारण होते हैं। परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी से अधिक हादसे चालक की गलती से होते हैं, क्योंकि इनके लिए सख्त नियम नहीं हैं।  सड़क पर हमारा व्यवहार कहीं न कहीं हमारी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को भी दिखाता है।
अगर देश में सड़क दुर्घटनाएं रुक नहीं पा रहीं तो यह हमारे सिस्टम की बड़ी विफलता है। आज पूरा ट्रैफिक तंत्र भारी भ्रष्टाचार से ग्रस्त है। हमारे देश में बिना किसी खास टेस्ट के किसी का भी ड्राइविंग लाइसेंस बन जाता है। एक बार लाइसेंस बन जाने के बाद कोई भी सड़क पर उतर आता है।  वाहन चालकों को विधिवत प्रशिक्षण देने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। इसलिए जानकारी के अभाव में वे गलतियां कर बैठते हैं। गलतियां करने के बाद अक्सर वे रिश्वत देकर छूट जाते हैं। पुलिस दुर्घटनाओं के मामलों में बड़े लचर ढंग से साक्ष्य पेश करती है जिससे सजा दिए जाने की दर बेहद कम है। इससे दूसरों का मनोबल बढ़ता है।

हमारे देश में ट्रैफिक अभी भी प्राथमिकताओं में नहीं आया है। लेकिन विकास के जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं उसमें आने वाले समय में ट्रैफिक गवर्नेंस का एक अहम मुद्दा होगा। आज जरूरी है कि एक ईमानदार और सक्षम ट्रैफिक तंत्र विकसित किया जाए। मौजूदा कानूनों का ढंग से पालन हो और दोषियों को सजा मिले। साथ ही जनता को इस बारे में जागरूक करने का अभियान चलाया जाए। 
A.s Raja

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