Aug 26, 2015

                   आरक्षण यह अराजकता ?
     आरक्षण की आग, शुरूआत या खात्मा
                  आज गुजरात में जिस तरह से पटेल समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर हिंसात्मक प्रदर्शन कर रहा है, यह ना सिर्फ सामाजिक बल्कि संवैधानिक रूप से भी गलत है। किसी को अपनी बात रखने का संविधान अधिकार तो देता है किन्तु, जिस तरह इसका उपयोग किया जा रहा है यह देश के लिए खतरा हो सकता है।  
          गुजरात राज्य में आरक्षण की लपट अब आग मे तब्दील होती नज़र आ रही है। पटेल समुदाय लगातार आरक्षण की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहा है। पटेल समुदाय की यह लपट अहमदाबाद, सूरत, मेहसाणा, राजकोट और कई अन्य जिलों तक पहुंच चुकी है। अब यह धीरे-धीर आग में तब्दील हो रही है करीब 7 लोग अब तक पुलिस फायरिंग में अपनी जान गवां चुके हैं। हिंसा बढ़ने का यह भी एक कारण हो सकता है।  

           करीब 13 सालों के बाद गुजारत में कर्फ्यु लगाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के लोगों को शांति बनाये रखने की अपील की है,  किन्तु उससे भी कोई फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा है। आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि, पटेल समुदाय एकदम से आरक्षण मांग के लिए अफरातफरी करने लगा है। कहीं यह राजनीति की चिंगारी तो नहीं? आपको बता दे कि, यह वही पटेल समुदाय है जो गुजरात के 40 प्रतिशत औद्योगिक सेक्टर पर काबिज है। गुजरात की कुल आबादी 6.27 करोड़ है, जिसमें से 20 प्रतिशत की आबादी पटेल समुदाय की है। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि, 20 प्रतिशत पटेल समुदाय खुद को को ओबीसी में क्यों शामिल करवाना चाहती है।
          
आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है जिसे वंचित समाज पाना चाहता है और अगर उसे नहीं मिलता है तो वह इसका डट कर विरोध करता है। आरक्षण संबंधित कानूनों पर अगर नज़र ड़ाले तो भारत का संविधान नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। अनुच्छेद 14 में समानता के अधिकार की व्याख्या स्पष्ट की गयी है। संविधान में दो अलग-अलग भागों में आरक्षण और सकारात्मक विशेष उपायों से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं। संविधान का भाग सोलह, जिसमें अनुच्छेद 330 से लेकर अनुच्छेद 342 तक के प्रावधान शामिल हैं। जब आरक्षण संविधान लागू हुआ तो इसे अगले दस वर्ष तक जारी रहना था, लेकिन अब लगातार बढ़ते-बढ़ते इसकी समय-सीमा वर्ष 2020 तक बढ़ा दी गई है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान भी संविधान के भाग सोलह में किया गया है। आरक्षण से संबंधित दूसरे प्रकार के प्रावधान संविधान के भाग तीन में किए गए हैं। संविधान के इस भाग में नागरिकों के मौलिक अधिकारों के साथ अनुसूचित जातियों, जनजातियों और सामाजिक एंव शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश और नौकरियों में प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से विशेष प्रावधान करने की बात कही गई है। इन विशेष प्रावधानों की प्रकृति को समझना जरूरी है। इन विशेष प्रावधानों को आरक्षण कहना ठीक नहीं है। आरक्षण और विशेष प्रावधानों में अंतर है। जबकि विशेष प्रावधान सरकार के सकारात्मक सोच का प्रतिफल होते हैं। अधिकार कानून के माध्यम से हासिल किए जा सकते हैं, जबकि विशेष प्रावधान सरकार के विवेकाधीन होते हैं जिन्हें पाने के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद 15 (5) के अनुसार सरकार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों का सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान कर सकती है। ऐसा करना जरूरी नहीं है, पर अगर सरकार करना चाहे तो इसकी मनाही भी नहीं है। आंकड़ों और सर्वेक्षण के अभाव में जाति को ही सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन का आधार मान लिया गया है। इसलिए पिछड़े वर्ग के लिए किए गए प्रावधानों का लाभ उठाने की होड़ जातियों में लग गई। संविधान के अनुच्छेद 16(4) में व्यवस्था है कि, सरकार पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व देने के लिए विशेष प्रावधान कर सकती है, अगर इन वर्गों का इन नौकरियों में उचित प्रतिनिधित्व न हो।

          आज गुजरात में जिस तरह से पटेल समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर हिंसात्मक प्रदर्शन कर रहा है यह गलत है। किसी को भी अपनी बात रखने का संविधान में अधिकार तो है किन्तु, इसका गलता इस्तेमाल करना देश के लिए खतरा हो सकता है। आरक्षण जैसे गंभीर मुद्दे पर देश की किसी भी पार्टियों को राजनीति ना करके इसपर गहन विचार करने की आवश्यकता है। जब तक इसपर राजनीति होती रहेगी, तब तक जनता इसमें पिसती रहेगी। सुप्रीम कोर्ट को इसपर विचार करना चाहिए और अगर कोई पार्टी आरक्षण जैसे मुद्दे पर आपने वोट बैंक सेंकना चाहे तो उसपर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। जब तक ऐसी व्यवस्था नहीं हो जाती तब-तक ऐसी समस्यायें देश के सामने मुह बाकर खड़ी मिलेंगी।

       
   (यह लेखक के अपने विचार हैं, लेखक लेबर निगरानी ब्यूरो समाचार पत्र में कार्यकारी संपादक है)

Aug 23, 2015

गुज़ारिश

तीसरी गज़ल


गुज़ारिश है तुमसे इक़ बार मेरे इश़्क पर य़कीन तो करो
अब भूल भी जाओ मेरे बग़ैर गुज़ारी हुई रातें
आओ मेरे साथ नई रात की शुरूआत तो करो।
अफ़सोस है मुझको भी तुझसे दूर रहने का
भूल सारी बातें मुझ पर इक़बार यक़ीन तो करो।

गुजारिश है तुमसे ..........................

याद है मुझको गुलबदन तेरी बाहें
सारी गुज़री राते और वह तेरी मसूमियत भरी बातें
मैं ग़मगुस्सार नहीं हूं सच कहता हूं
पूछ अपने नफ़्स से मुझपर इक़बीर यकीन तो करो।

गुजारिश है तुमसे................................

दख़ल दे नहीं सकता कोई तेरे सिवा इस दिल में
कुर्बान है तेरे इश्क पर मेरी ज़िदगी कई
मुझे पता है तुमसे इज़हार नहीं कर पाऊंगा अपने इश़्क का ।
ग़र कर भी लिया दिया तो अंजाम क्या होगा मेरे इश़्क का
यही सोच मैं तुमसे अपने इश़्क का इज़हार नहीं करता हूं
इसमे कोई श़क नहीं कि, तुमसे ही इश़्क करता हूं
मै मारा गया हूं तेरे इश़्क में
सच है यह बात हंसी में सही
पर मेरे बात पर इक बार यक़ीन तो करों
गुज़ारिश है तुमसे.............................. 2
आशीष कुमार शुक्ला
Ashish kumar shukla

Aug 22, 2015

       आज फ़िर तुझसे मैं गुफ़्तगू करना चाहता हूं
                        दूसरी गज़ल

आज फ़िर तुझसे मै गुफ़्तगू करना चाहता हूं
फिर मिलकर तुझसे मैं इक गुऩाह करना चाहता हूं
श़क नहीं गुम़राह हूं मैं अपनी राहे मंज़िल से
कर तुझको हासिल मंजिंल मै अपनी पाना चाहता हूं।
आज फ़िर इक बार तुझसे.....................

ग़र इतऱाज (एतराज) है तुझे मेरे इस फ़ितरत से
तो इक मौका दे मुझे तुझसे गुफ़्तगू करने की
मुझे है पता तुझे नाराज़गी है मेरे इस फ़ासिले से
इक मौका दे मुझे मेरी इन गलतियों को सुधारने की
तुझसे अब मै यह फासिला मिटाना चाहता हूं।
आज फ़िर इकबार तुझसे...........

इन्त़िकाम ना ले मुझसे मेरी इन ख़ताओं की
वादा है तुझसे फ़साना हमारी यह मोहब्बत होगी
मै गुनहगार हूं तेरी इस तन्हाई का इसमे कोई श़क नहीं
मिलकर तुझसे मै यह गुनाह मिटाना चाहता हूं।
आज फ़िर इक़बार तुझसे....................

रिस्ता ना जाने क्या है मुझसे तेरी इन यादों का
ग़र परखना है तुझे मेरी यह मोहब्बत तो परख़
फ़लक तक जाना है तेरी इस मुहब्बत में 
तुझसे भी मै यह वायदा चाहता हूं।
आज फ़िर तुझसे मैं गुफ़्तगू करना चाहता हूं...2

 आशीष कुमार शुक्ला
Ashish kumar shukla 
मुख्य- उप संपादक ( लेेबर निगरानी ब्यूरो )

Aug 21, 2015


   पहली गज़ल




पहली बार गज़ल लिखने का प्रयास 

वक़्त की बेड़ियां जरा हटा कर तो देख.... 
अपने मासूम दिल को किसी से लगाकर तो देख
फिर भी ग़र मिले ना चैन तुझे.....
एक बार मुस्कुराकर तो देख..... 

वक़्त बदलता ही रहता है  मौसम की तरह.. 
तू परेशान क्यों है इन सर्दियों से 
इक बार चादर से जिस्म को हटाकर तो देख

मासूमियत भरी तेरी निगाहों में 
एक कसक तो है
गुजर जाएंगे तेरे ये पल
किसी को इक बार गले लगाकर तो देख 

बेवज़ह तेरा मुस्कुराना तो ठीक है
पलकें उठाकर गिराना भी ठीक है
मिट जाएगीं तेरी कसक इक पल में
कभी मेरे साथ वक्त बिताकर तो देख........

गुरूर तुझे है तेरे हुश्न पर इसमें कोई श़क नहीं
बात सारी समझ आती है तेरे लब्जों की मुझे
हक़ीकत में मुस्कुराना सिखा दूंगा तुझको
मुझसे एक बार दिल लगाकर तो देख ..........

आशीष कुमार शुक्ला
Ashish kumar shukla 

Aug 17, 2015

 Ashish kumar shukla 
आशीष कुमार शुक्ला
नोएडा कार्यकारी संपादक लेबर निगरानी ब्यूरो
मेरे द्वारा डिजाइन किया गया अखबार शायद पहले वाले से कुछ बेहतर है। 

Ashish kumar shukla 

आशीष कुमार शुक्ला 

नोएडा कार्यकारी संपादक 'लेबर निगरानी ब्यूरो'      


विभिन्न अखबारों में प्रकाशित ''डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक'' लेख और माडिया शख्सियतों के साथ भेटवार्ता 





Aug 7, 2015

Ashish kumar shukla 

आशीष कुमार शुक्ला 

नोएडा कार्यकारी संपादक 'लेबर निगरानी ब्यूरो'                   

जनसामना समाचार पत्र में प्रकाशित एक लेख 


Aug 6, 2015


       उपयोगी है डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक
           व्यक्ति के शरीर से इनटिमेट यानी बॉडी सैंपल (शरीर के गुप्तांगों के नमूने) लेने के प्रावधान वाला डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक की चर्चा आज सुर्खियों मे तूल पकड़ रहा है। हलांकि भारत सरकार ने सबसे पहले ये विधेयक 2007 में पेश किया था। साल 2012 में एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई गई थी जिसे विधेयक में शामिल निजता के मुद्दे पर विचार करना था जो की नहीं हो पाया। आज फिर इस विधेयक पर धीरे- धीरे घमासान शुरु होता दिख रहा है। चूंकि सवाल लोगों के मानवाधिकार है।

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से नागरिकों को निजता का अधिकार है या नहीं?  सवाल पूछ कर लोगों को संसय में डाल दिया है। आज इसकी चर्चा इस लिए जोरो पर है क्योंकि संसद  के इस मानसून सत्र में डीएनए  प्रोफाइलिंग विधेयक पेश होने की बात कही जा रही है। सुप्रीम कोर्ट से अभी तक आधार कार्ड और आधार परियोजना का मुद्दा सुलझा नहीं और इसी बीच इस विधेयक का आना वाकई रोचक है। इस विधेयक में लोगों के शरीर से जांच के लिए नमूने लेने का प्रावधान है। इस कानून के जरिए व्यक्ति के (शरीर के गुप्तांगों के नमूने) की वीडियोग्राफी एंव फोटोग्राफी के साथ बाहरी परीक्षण और प्यूबिक हैयर्स से सैंपल्स लेने का भी प्रावधान शामिल है। ली गयी सभी जानकारी डीएनए प्रोफाइल राज्य सरकार के पास होगा। इसका इस्तेमाल किसी जाति, वर्ग, समुदाय के खिलाफ किया जा सकता है।

      डीएनए प्रोफालिंग विधेयक को लेकर जो सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं, उनके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विधेयक को इस मानसून सत्र में ही पारित कराना चाहते हैं। किन्तु ललित मोदी प्रकरण को लेकर कॉग्रेंस लगतारा संसद में हंगामा कर रही है, ठीक उसी तरह जैसे एनडीए कॉग्रेंस के खिलाफ करती आयी है। आज कॉग्रेंस भी पूरे दमखम के साथ बीजेपी का पुरजोर विरोध कर रही है। हलांकि इससे निज़ात पाने और कॉग्रेंस को सबक सिखाने के लिए लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कॉग्रेंस के 25 सांसदो को नीलंबित कर दिया, किंतु इससे भी कॉग्रेंस के जोश में कोई कमी नहीं आयी है और अब वह पहले से भी ज्यादा विरोध करने लगी है।
भारतीय राजनीति मे यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी कई बार ऐसा होता रहा है। किंतु जनता का एक सवाल बीजेपी और कॉग्रेंस से है कि, आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा। इस विषय पर दोनों पार्टियों को सोचने की जरूरत है। हलांकि केंद्रीय ग्रहमंत्री राजनाथ सिंह ने यह साफ कर दिया है कि, कॉग्रेंस बदला ले रही है।
  
   देश की जनता राजनेताओं से सिर्फ राजनीति की उम्मीद नहीं करती उनसे कुछ अच्छे कार्यों की उम्मीद भी रखती है। इस मुद्दे पर दोनों पार्टियों को सुधार करना चाहिए। अभी बीजेपी इस बात को समझ तो रही है, किन्तु अगर कॉग्रेंस ने इस सत्र में मौका नहीं दिया तो प्रधानमंत्री का यह विधेयक पारित नहीं हो पाएगा।

           अब हम चर्चा करते हैं प्रधानमंत्री के इस विधेयक की, अगर यह विधेयक आ जाता है तो इससे डीएनए प्रोफाइलिंग करने वाली कंपनियों का कारोबार हजारों गुना बढ़ेगा। करोड़ों लोगों के डीएनए प्रोफाइल भी मिलेंगे, जो शोध में काम आ सकते हैं। इसका इस्तेमाल आपराधिक मामलों के निपटारे में ही नहीं बल्कि दीवानी मामलों के लिए भी किया जाएगा। डीएनए प्रोफाइल जानकारी का प्रयोग जंनसंख्या नियंत्रित करने के प्रयासों में भी किया जाएगा।
   सरकार इस विधेयक का मुख्य लक्ष्य आपराधिक मामलों पर शिकंजा कसने के लिए बता रही है। कई मायने में अपराधियों को नियंत्रित करने, और उनका ट्रैक रिकॉर्ड रखने और उनसे संबंधित सारी जानकारियों को एक जगह जमा करने का इस प्रस्तावित विधेयक का मुख्य लक्ष्य बताया जा रहा। यही नहीं फोरेंसिक प्रक्रिया केवल सजायाफ्ता के लिए ही नहीं बल्कि, विचाराधीन कैदियों पर भी अपनाई जाएगी।  इस विधेयक के लिए 2012 मे जो उच्च स्तरीय समीक्षा कमेटी बनाई गई थी, उनमें दो सदस्यों ने इन तमाम प्रावधानों पर जमकर आपत्त‌ि जताई थी। किन्तु उनकी इन आपत्त‌ियों को कोई जगह नहीं दी गयी।

           इस विधेयक में डीएनए प्रोफाइल तो तैयार कर दिया जाएगा किन्तु आज कोई भी जानकारियां सुरंक्षित नहीं है, फिर इस महौल में व्यक्तियों की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारियों का गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है। विरोधियों के विरोध का यह भी एक कारण माना जा सकता है। साहित्य में एक शब्द का इस्तेमाल होता है जिसे 'फंक्शन क्रीप' कहते हैं। इसका मतलब होता एक मकसद से इकट्ठा किए गए चिजों का दूसरे मकसद के लिए प्रयोग करना। विधेयक के मुताबिक डीएनए प्रोफाइल को रखने के लिए डीएनए बैंक बनाए जाएंगे। यही नहीं डीएनए प्रोफाइल का इस्तेमाल 'पूरी आबादी के आकड़े का डेटा बैंक' बनाने के लिए भी किया जा सकता। विधेयक में डीएनए प्रोफाइल, डेटाबेस, और डेटा बैंक तैयार करने का जिर्क है, किन्तु एक बार मकसद पूरा होनें पर डीएनए प्रोफाइल को खत्म करने की बात कहीं नहीं है।  वैसे इस विधेयक का विरोध कर रहे लोगों का कहना कि, डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक लाने से पहले सरकार को एक निजता विधेयक लाना चाहिए। कई मायने में यह विधेयक कारगर माना जा रहा है, किन्तु मौजूदा विधेयक में डीएनए बोर्ड के अधिकार असीमित हैं। जबकि इस मामले में अंतिम अधिकार अगर न्यायपालिका या विधायिका के पास हो तो यह विधेयक काफी उपयोगी साबित हो सकता है। अब इस घमासान में यह देखना काफी रोचक होगा कि,क्या यह विधेयक सदन में पारित होता है।