उपयोगी है डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक
           व्यक्ति के शरीर से इनटिमेट यानी बॉडी सैंपल
(शरीर के गुप्तांगों के नमूने) लेने के प्रावधान वाला डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक की चर्चा आज सुर्खियों मे तूल पकड़ रहा है। हलांकि भारत सरकार
ने सबसे पहले ये विधेयक 2007 में पेश किया था। साल 2012 में एक विशेषज्ञ कमेटी बनाई गई थी जिसे विधेयक में शामिल निजता के मुद्दे
पर विचार करना था जो की नहीं हो पाया। आज फिर इस विधेयक पर धीरे- धीरे
घमासान शुरु होता दिख रहा है। चूंकि सवाल लोगों के मानवाधिकार है। 
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार
ने सुप्रीम कोर्ट से नागरिकों को निजता का अधिकार है या नहीं?  सवाल पूछ कर लोगों को संसय में डाल दिया है। आज
इसकी चर्चा इस लिए जोरो पर है क्योंकि संसद  के इस मानसून सत्र में डीएनए  प्रोफाइलिंग विधेयक पेश होने की बात कही जा रही है। सुप्रीम कोर्ट से अभी
तक आधार कार्ड और आधार परियोजना का मुद्दा सुलझा नहीं और इसी बीच इस विधेयक का आना
वाकई रोचक है। इस विधेयक में लोगों के शरीर से जांच के लिए नमूने लेने का प्रावधान
है। इस कानून के जरिए व्यक्ति के (शरीर के गुप्तांगों के नमूने) की वीडियोग्राफी
एंव फोटोग्राफी के साथ बाहरी परीक्षण और प्यूबिक हैयर्स से सैंपल्स लेने का भी प्रावधान
शामिल है। ली गयी सभी जानकारी डीएनए प्रोफाइल राज्य सरकार के पास होगा। इसका
इस्तेमाल किसी जाति, वर्ग, समुदाय के खिलाफ किया जा सकता है।
      डीएनए प्रोफालिंग विधेयक को लेकर जो सूचनाएं प्राप्त
हो रही हैं, उनके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विधेयक को इस मानसून सत्र में
ही पारित कराना चाहते हैं। किन्तु ललित मोदी प्रकरण को लेकर कॉग्रेंस लगतारा संसद
में हंगामा कर रही है, ठीक उसी तरह जैसे एनडीए कॉग्रेंस के खिलाफ करती आयी है। आज
कॉग्रेंस भी पूरे दमखम के साथ बीजेपी का पुरजोर विरोध कर रही है। हलांकि इससे
निज़ात पाने और कॉग्रेंस को सबक सिखाने के लिए लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने
कॉग्रेंस के 25 सांसदो को नीलंबित कर दिया, किंतु इससे भी कॉग्रेंस के जोश में कोई
कमी नहीं आयी है और अब वह पहले से भी ज्यादा विरोध करने लगी है।
भारतीय
राजनीति मे यह पहली बार नहीं है इससे पहले भी कई बार ऐसा होता रहा है। किंतु जनता
का एक सवाल बीजेपी और कॉग्रेंस से है कि, आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा। इस विषय पर
दोनों पार्टियों को सोचने की जरूरत है। हलांकि केंद्रीय ग्रहमंत्री राजनाथ सिंह ने
यह साफ कर दिया है कि, कॉग्रेंस बदला ले रही है। 
   देश की
जनता राजनेताओं से सिर्फ राजनीति की उम्मीद नहीं करती उनसे कुछ अच्छे कार्यों की उम्मीद
भी रखती है। इस मुद्दे पर दोनों पार्टियों को सुधार करना चाहिए। अभी बीजेपी इस बात
को समझ तो रही है, किन्तु अगर कॉग्रेंस ने इस सत्र में मौका नहीं दिया तो
प्रधानमंत्री का यह विधेयक पारित नहीं हो पाएगा। 
           अब हम चर्चा करते हैं प्रधानमंत्री के
इस विधेयक की, अगर यह विधेयक आ जाता है तो इससे डीएनए प्रोफाइलिंग करने वाली
कंपनियों का कारोबार हजारों गुना बढ़ेगा। करोड़ों लोगों के डीएनए प्रोफाइल भी
मिलेंगे, जो शोध में काम आ सकते हैं। इसका इस्तेमाल आपराधिक मामलों के निपटारे में ही
नहीं बल्कि दीवानी मामलों के लिए भी किया जाएगा। डीएनए प्रोफाइल जानकारी का प्रयोग
जंनसंख्या नियंत्रित करने के प्रयासों में भी किया जाएगा। 
   सरकार इस विधेयक का मुख्य लक्ष्य आपराधिक
मामलों पर शिकंजा कसने के लिए बता रही है। कई मायने में अपराधियों को नियंत्रित
करने, और उनका ट्रैक रिकॉर्ड रखने और उनसे संबंधित सारी जानकारियों को एक जगह
जमा करने का इस प्रस्तावित विधेयक का मुख्य लक्ष्य बताया जा रहा। यही नहीं
फोरेंसिक प्रक्रिया केवल सजायाफ्ता के लिए ही नहीं बल्कि, विचाराधीन कैदियों पर भी
अपनाई जाएगी।  इस विधेयक के लिए 2012 मे जो उच्च स्तरीय
समीक्षा कमेटी बनाई गई थी, उनमें दो सदस्यों ने इन तमाम
प्रावधानों पर जमकर आपत्ति जताई थी। किन्तु उनकी इन आपत्तियों को कोई जगह नहीं दी
गयी।
           इस
विधेयक में डीएनए प्रोफाइल तो तैयार कर दिया जाएगा किन्तु आज कोई भी जानकारियां
सुरंक्षित नहीं है, फिर इस महौल में व्यक्तियों की निजी जिंदगी से जुड़ी
जानकारियों का गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है। विरोधियों के विरोध का यह भी एक
कारण माना जा सकता है। साहित्य में एक शब्द का इस्तेमाल होता है जिसे 'फंक्शन
क्रीप' कहते हैं। इसका मतलब होता एक मकसद से इकट्ठा किए गए
चिजों का दूसरे मकसद के लिए प्रयोग करना। विधेयक के मुताबिक डीएनए प्रोफाइल को रखने
के लिए डीएनए बैंक बनाए जाएंगे। यही नहीं डीएनए प्रोफाइल
का इस्तेमाल 'पूरी आबादी के आकड़े का डेटा बैंक' बनाने के लिए भी किया जा सकता। विधेयक में डीएनए प्रोफाइल,
डेटाबेस, और डेटा बैंक तैयार करने का जिर्क है,
किन्तु एक बार मकसद पूरा होनें पर डीएनए प्रोफाइल को खत्म करने की बात कहीं नहीं
है।  वैसे इस विधेयक का विरोध कर
रहे लोगों का कहना कि, डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक लाने से पहले सरकार को एक निजता विधेयक
लाना चाहिए। कई मायने में यह विधेयक कारगर माना जा रहा है, किन्तु मौजूदा विधेयक
में डीएनए बोर्ड के अधिकार असीमित हैं। जबकि इस मामले में अंतिम अधिकार अगर
न्यायपालिका या विधायिका के पास हो तो यह विधेयक काफी उपयोगी साबित हो सकता है। अब
इस घमासान में यह देखना काफी रोचक होगा कि,क्या यह विधेयक सदन में पारित होता है।    
 

 
 
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