Aug 22, 2015

       आज फ़िर तुझसे मैं गुफ़्तगू करना चाहता हूं
                        दूसरी गज़ल

आज फ़िर तुझसे मै गुफ़्तगू करना चाहता हूं
फिर मिलकर तुझसे मैं इक गुऩाह करना चाहता हूं
श़क नहीं गुम़राह हूं मैं अपनी राहे मंज़िल से
कर तुझको हासिल मंजिंल मै अपनी पाना चाहता हूं।
आज फ़िर इक बार तुझसे.....................

ग़र इतऱाज (एतराज) है तुझे मेरे इस फ़ितरत से
तो इक मौका दे मुझे तुझसे गुफ़्तगू करने की
मुझे है पता तुझे नाराज़गी है मेरे इस फ़ासिले से
इक मौका दे मुझे मेरी इन गलतियों को सुधारने की
तुझसे अब मै यह फासिला मिटाना चाहता हूं।
आज फ़िर इकबार तुझसे...........

इन्त़िकाम ना ले मुझसे मेरी इन ख़ताओं की
वादा है तुझसे फ़साना हमारी यह मोहब्बत होगी
मै गुनहगार हूं तेरी इस तन्हाई का इसमे कोई श़क नहीं
मिलकर तुझसे मै यह गुनाह मिटाना चाहता हूं।
आज फ़िर इक़बार तुझसे....................

रिस्ता ना जाने क्या है मुझसे तेरी इन यादों का
ग़र परखना है तुझे मेरी यह मोहब्बत तो परख़
फ़लक तक जाना है तेरी इस मुहब्बत में 
तुझसे भी मै यह वायदा चाहता हूं।
आज फ़िर तुझसे मैं गुफ़्तगू करना चाहता हूं...2

 आशीष कुमार शुक्ला
Ashish kumar shukla 
मुख्य- उप संपादक ( लेेबर निगरानी ब्यूरो )

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