पहली गज़ल
पहली बार गज़ल लिखने का प्रयास 
वक़्त की बेड़ियां जरा हटा कर तो देख....
अपने मासूम दिल को किसी से लगाकर तो देख
फिर भी ग़र मिले ना चैन तुझे.....
एक बार मुस्कुराकर तो देख.....
वक़्त बदलता ही रहता है मौसम की तरह..
तू परेशान क्यों है इन सर्दियों से
इक बार चादर से जिस्म को हटाकर तो देख
मासूमियत भरी तेरी निगाहों में
एक कसक तो है
गुजर जाएंगे तेरे ये पल
किसी को इक बार गले लगाकर तो देख
बेवज़ह तेरा मुस्कुराना तो ठीक है
पलकें उठाकर गिराना भी ठीक है
मिट जाएगीं तेरी कसक इक पल में
कभी मेरे साथ वक्त बिताकर तो देख........
गुरूर तुझे है तेरे हुश्न पर इसमें कोई श़क नहीं
बात सारी समझ आती है तेरे लब्जों की मुझे
हक़ीकत में मुस्कुराना सिखा दूंगा तुझको
मुझसे एक बार दिल लगाकर तो देख ..........
आशीष कुमार शुक्ला
Ashish kumar shukla
वक़्त की बेड़ियां जरा हटा कर तो देख....
अपने मासूम दिल को किसी से लगाकर तो देख
फिर भी ग़र मिले ना चैन तुझे.....
एक बार मुस्कुराकर तो देख.....
वक़्त बदलता ही रहता है मौसम की तरह..
तू परेशान क्यों है इन सर्दियों से
इक बार चादर से जिस्म को हटाकर तो देख
मासूमियत भरी तेरी निगाहों में
एक कसक तो है
गुजर जाएंगे तेरे ये पल
किसी को इक बार गले लगाकर तो देख
बेवज़ह तेरा मुस्कुराना तो ठीक है
पलकें उठाकर गिराना भी ठीक है
मिट जाएगीं तेरी कसक इक पल में
कभी मेरे साथ वक्त बिताकर तो देख........
गुरूर तुझे है तेरे हुश्न पर इसमें कोई श़क नहीं
बात सारी समझ आती है तेरे लब्जों की मुझे
हक़ीकत में मुस्कुराना सिखा दूंगा तुझको
मुझसे एक बार दिल लगाकर तो देख ..........
आशीष कुमार शुक्ला
Ashish kumar shukla
 
 
 
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