Sep 30, 2015




Ashish kumar shukla 
आशीष कुमार शुक्ला 
कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित लेख और भेटवा्रत



Sep 27, 2015

युवाओं की दिशा तय करने के लिए क्यों जरूरी सार्थक प्रयास।
सोशल मीडिया विशेष

आशीष कुमार शुक्ला
Laboure Nigrani Bureo 
Ashish kumar shukla 





सोशल साइटों पर जाति,  धर्म और राष्ट्रीयता को लेकर एक दूसरे की अलोचना लोग करते आये हैं, जो कि एक खतरनाक स्थिति की तरफ इशारा करती है। आलोचना अगर वैचारिक मतभेदों पर आधरित हो ठीक है पर अगर आलोचना का उद्देश्य किसी धर्म, वर्ग को नीचा दिखाना, उसे अपमानित करना है, तो निश्चित तौर पर ये चिंता का विषय है। अगर ऐसी ही हमारी युवा शक्ति पथ भ्रमित होती रही तो भारत को विकसित राष्ट्र बनने का सपना कैसे पूरा होगा? राष्ट्र को समर्थ और सशक्त कैसे बनाया जा सकेगा है।
 विकसित भारत का सपना तो तभी पूरा होगा जब युवा शक्ति संगठित होकर राष्ट्र के विकास में योगदान दें।  आज वर्तमान समय में तो युवा शक्ति का वो बिखरा स्वरुप प्रदर्शित हो रहा है जिसके मूल में राष्ट्रीय, जातीय और धार्मिक मुद्दे ज्यादा पनपते हैं।  युवा शक्ति के दम पर हम विकसित भारत का सपना देख रहे हैं, लेकिन आज इसकी बुनियाद ही खोखली होती जा रही है।  अतः यह आवश्यक है कि राह भटक रही हमारी युवा शक्ति को समय रहते नियंत्रित किया जाये अगर ये नियंत्रित न हुई तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ये विनाश का सबसे बड़ा कारक बनेगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि, किसी भी देश की शक्ति उस देश की युवा में निहित होती है।  क्योंकि वो युवा ही है जो देश के लिए बलिदान दे सकता है, देश की समस्याओं के बारे में चिंतन करके उसका समाधान निकालता है, जिसमे जोश भरा रहता है और प्रेरक इतिहास रचने में समर्थ होता है। अगर देश का युवा भ्रमित रहेगा तो वह राष्ट्र के लिए क्या सोच पाएगा। देश की युवाओं को ऐसे भ्रमित करने का, उनके दिमाग को कुंद करने का काम भारत में करीब पिछले 20-25 वर्षो से विदेशी ताकतों के द्वारा चलया जा रहा हमें अगर राष्ट्र का सही निर्माण करना है तो इन ताकतों से लड़ना ही होगा। तभी भारत एक शक्तशाली राष्ट्र के रूप में उभर पाएगा। 
  आज देश की युवा पीढी के पास न कोई आदर्श है न कोई राह। पथ भ्रमित करने वाली शिक्षा ने देश में मानसिक रूप से विकृत एक ऐसी फौज खडी कर दी है जिसमें राष्ट्र के प्रति सोचने की शक्ति शून्य हो चुकी है। उनके आदर्श विवेकानन्द के स्थान पर चल चित्रों के नायक-नायिकाऐ हो चुके है। अपने जीविकोर्पाजन में लगे इन युवाओं के पास देश की सेवा व चिन्ता के लिए एक भी पल नहीं है। यह विषय देश के समस्त उन विचारों के लिए चिन्तनीय है। जो भारत को भारत को प्रगति के पथ पर देखना चाहते है। इन सब के बीच में देश में पिछले कुछ वर्षो में ऐसी कोई शक्ति खडी नहीं हुई जिसने भारतीय युवाओं की दिशा तय करने के सार्थक प्रयास किए हो। 
दूषित होती संस्कृति के कारण हमारे परिवार संयुक्त परिवारों से बिखर कर टूट गये जहां नाना-नानी, दादा-दादी की प्रेरणा दायक कहानियां लुप्त हो गई  भारतीय शिक्षा प्रणाली केवल और केवल शारीरिक मानसिक व बौद्धिक रूप से शून्य युवाओं को खडा कर रही है। ऐसे में अगर आज का युवा दिशा भ्रमित हो रहा है तो इसका चिन्तन हम सबको करना होगा। केवल युवा शक्ति को इसका दोषी नहीं मान सकते क्या कभी हमारे समाज व सत्ता ने यह चिन्तन किया है कि युवाओं की दिशा क्या होगी, लक्ष्यविहिन युवा शक्ति पर भारत गर्व भी करे तो किस बात का क्योंकि उनके पास न तो एक सोच है, न विचार है और न ही कोई राह है। स्वामी विवेकानन्द कहा था कि बहती हुई नदी की धारा ही स्वच्छ, निर्मल तथा स्वास्थ्यप्रद रहती है। उसकी गति अविरूद्ध होने पर उसका जल दूषित व अस्वास्थ्यकार हो जाता है। नदी यदि समुद्र की ओर चलते-चलते बीच में अपनी गति खो बैठे तो वही पर आबंद्ध हो जाती है। प्रकृति के समान ही मानव जीवन समाज में भी एक सुनिश्चित लक्ष्य हो तो आगे बढने का प्रयास सफल तथा सार्थक होता है।


Sep 26, 2015

Exclusive Interview happu singh Bhabhi ji Ghar Pur Hai





भाभी जी घर पर हैंअब शायद ही कोई ऐसा हो जिसे  पता न हो, अजी सीरियल का नाम।  तुम तो भोत बड़ी चिरांद हो यार… अरे दादा, लाओ कछु न्यौछावर कर देयो ये चंद ऐसे डायलॉग हैं जो, बच्चे-बच्चे के जुबान पर हैं। उन्नाव से तालुकात रखने वाले भाभी जी घर पर हैंसीरियल में इन्ही डायलॉगों से लोगों के बीच अपनी (हप्पू सिंह दरोगा जी) के तौर पर विशेष पहचान बनाने वाले अभिनेता योगेश त्रिपाठी से आशीष कुमार शुक्ला से बातचीत के संपादित अंश।  
 
आपने अपनी शिक्षा दीक्षा का कहाँ से प्राप्त की?
           
           मैँ झांसी के हमीरपुर जिले के राठ कस्बे से तालुकात रखने वाला हूँ।  मेरे    
परिवार मेँ तकरीबन सभी सदस्य अध्यापक हैं। जिसके कारण घर पर भी पढ़ाई का माहौल हमेशा रहा। मैँने  बी.एससी  मैथमैटिक्स से ग्रेजुएशन किया लेकिन मेरी रुचि इन विषयों में  नहीँ थी। मै बचपन से ही एक्टर बनना चाहता था। पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं लखनऊ गया। और फिर वहां कई रंगमंच के कार्यक्रमों के साथ-साथ तमाम तरह के स्टेज शो का हिस्सा बना। मुझे हमेशा से आर्ट का शौक रहा है मैं हमेशा कुछ अलग करने की सोचता रहता था। अपने परिवार की तरह मैं अध्यापक बनकर नहीं रहना चाहता था। इसलिए मैंने एक्टिंग में आने का फैसला कर लिया।
लखनऊ से मुंबई तक का सफर कैसा रहा। ?

           लखनऊ में तकरीबन 5 साल रंगमंच के साथ जुड़कर अथक मेहनत की। रंगमंच, ड्रामा, स्टेज शो और तमाम तरह के अभिनय में मैने लगातार भाग लिया। यहां से मैनें एक्टिंग को जाना और काफी कुछ सीखा। रंगमंच से जुड़कर मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। फिर मुझे लगा की अब कुछ आगे बढ़ना चाहिए और मैं 16 जुलाई 2005 मुंबई आ गया।

मुंबई आने के बाद किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ा। ?
           मुंबई आने के बाद मुझे यह पता ही नहीँ चला, कि मेरे दो साल कैसे बीत गए। मैं लगातार प्रोडक्शन हाउसों का दिन-बा दिन चक्कर काटता रहा। ऑडिशन देता रहा ऑडिशन के लिए बहुत चक्कर खाने पढ़ते थे पता करना पड़ता था कि, कहाँ पर ऑडिशन हो रहा है कई बार तो ऐसा होता था कि, हमें घुसने को भी नहीँ मिलता था और तब हम अपनी फोटो और जानकारियाँ वहाँ की सिक्योरिटी गार्ड को देकर वापस चले आते थे। यह संघर्ष दो सालों तक चला इसके बाद मुझे एक विज्ञापन  क्लोर मेंट कबड्डी  करने का मौंका मिला यह विज्ञापन काफी ज्यादा चर्चित हुआ। इस विज्ञापन के बाद मेरी जिंदगी मेँ एक व्यापक बदलाव आया लोग मुझे कुछ हद तक जानने लगे थे, और उसके बाद मुझे कई जगहों से काम भी मिलने लगे थे मैँ कई तरह के विज्ञापन करता रहा लगातार मैने तकरीबन 40 से 50 विज्ञापन किये।
एक्टिंग के लिए आपको परिवार का कितना समर्थन मिला?

           चूंकि मेरे परिवार में सब अध्यापक हैं इसलिए पापा चाहते थे की मैं भी अध्यापक बनूं, लेकिन मैं अध्यापक नहीं बनना चाहता था कुछ अलग कर गुजरने की मेरी चाहत थी। शुरू में मुझे परिवार समर्थन बहुत कम मिला, लेकिन पापा ने मेरी मेहनत और लगन को देखते हुए मेरा पूरा स्पोर्ट करने लगे।  मैं असल जिंदगीं में अध्यापक तो नहीं बन सका,  लेकिन एक्टिंग के जरिए मैंने पापा के इस ख्वाब को भी पूरा कर दिया।  मुझे  याद है जब मैं बालिका वधू सीरियल मैँ एक अध्यापक का किरदार कर रहा था तब पापा काफी खुश हुए थे। तकरीबन छह महीने तक मैंने यह किरदार किया।

अपने आपको साबित करने का मौका कब मिला।?
         
      एक प्रोग्राम आता था एफ.आई.आर जिसके डायरेक्टर ने मुझे अपने अंदर के कला को प्रदर्शित करने का मौका दिया। मुझे प्रोग्राम में एक फनी डॉक्टर का रोल करने के लिए मिला। और मैंने बहुत अच्छा किया मेरे इस एक एपिसोड से वह काफी प्रभावित हुए और मुझे नियमित इस प्रोग्राम का हिस्सा बना लिया। मैं  इस प्रोग्राम में तरह- तरह का अभिनय करता रहा जिसे लोगों ने बेहद पसंद किया। इसके बाद मेरा प्रोडक्शन हाउस मेँ बाकायदा एग्रीमेंट हो गया और मैं प्रोडक्शन हाउस से जुड़ गया।   एफ.आई.आर  प्रोग्राम से मुझे एक नई पहचान मिली तकरीबन तीन चार सालों तक मैँ लगातार इस प्रोग्राम में काम करता रहा। इसके बाद मुझे भाभी जी घर पर हैं मेँ काम करने का ऑफर आया और मैं इस सीरियल से जुड़ गया।

आपको लगता है कि, “भाभी जी घर पर हैं” सीरियल से आपके जीवन मेँ एक व्यापक बदलाव आएगा और यह प्रोग्राम आपके जीवन मेँ मील का पत्थर साबित होगा?
भाभी जी घर पर हैं सीरियल से मुझे ना सिर्फ एक नई पहचान मिली है, बल्कि इसमें कोई शक नहीं है मेरे करियर के लिए यह बहुत अच्छा है, इससे पहले जब मैंने एफ.आई.आर में तकरीबन 700 एपिसोड किया तो मेरा रोल तरह- तरह का होता था, लेकिन जब से मैँ  “भाभी जी घर पर हैं” सीरियल में हप्पू सिंह (दरोगा जी)  का एक रोचक किरदार कर रहा हूँ, यह एक नियमित किरदार है इसलिए मैं काफी खुश हूं और लोग भी मेरे इस किरदार को खूब पसंद कर रहे हैं, दरोगा जी के इस किरदार को लोग इतना पसंद करेंगे मैंने सोचा भी नहीँ था।

हप्पू सिंह जी असल जिंदगी मेँ कैसे हैं।?

           मैँ वाकई एक मजेदार इंसान हूँ, लोगोँ को हंसाना और लोगोँ से अच्छा व्यवहार करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। असल जिंदगी मेँ मेरा व्यवहार बहुत सरल है लेकिन मैँ हप्पू सिंह की तरह बिलकुल ही दिखता।  मेँ काफी स्मार्ट हूँ और हप्पू सिंह की तरह लचर भी नहीं हूं यह किरदार मुझे करने मेँ बहुत मजा आ रहा है।

आप किस तरह के अभिनय को करना ज्यादा पसंद करते   
 हैँ?
           मैँ  ऐसा अभिनय करना चाहता हूं जो पूरी जिंदगी मेरे साथ रहे जिससे मेरी एक अलग पहचान बन सके। जैसे आज गुलशन ग्रोवर, परेश रावल, और कादर खान को लोग एक अलग एक्टर के रूप में मेँ देखते हैं मैं भी ऐसा दिखना चाहता हूं। मैँ चाहता हूँ कि मेरे अभिनय किसी एक किरदार तक सीमित न रहे। मैँ किसी एक किरदार को पसंद नहीं करता हूँ। तरह- तरह की किरदार को करना चाहता हूं। मैं हमेशा अपने अभिनय को लेकर गंभीर रहता हूं और अभिनय पर पूरा ध्यान देता हूं। मुझे परेश रावल, गुलशन ग्रोवर, कादर खान बहुत ही पसंद हैँ इनके रोल को मैँ बहुत ही गंभीरता से देखता हूँ, और पूरा मजा लेता हूँ मैँ इनसे काफी कुछ सीखता रहता हूँ।

आप अभिनय को किस नजरिए से देखते हैँ?

            अभिनय करना मतलब किसी दिए गये किरदार को अपनी असल जिंदगी में महसूस करना।  जब आप किरदार को सही तरह महसूस करते हैं तभी आप उसे उसी ढ़ग में उसे प्रदर्शित कर सकते हैं।  किरदार पर आपकी पूरी पकड़ होनी चाहिए। किसी भी किरदार को बेहद गंभीरता पूर्वक करना चाहिए। मैँ समझता हूँ एक्टिंग करना आसान बिलकुल नहीँ है, लेकिन यह कठिन भी नहीँ है। आप डायरेक्टर के ऊपर निर्भर रहें लेकिन अगर आपको कोई संकोच लगे तो उसे जरूर शेयर करें। एक्टिंग का मतलब होता है लोगोँ को अपने आप से जोड़ना आप जितने हद तक यह कर पाते हैं आप उतने अच्छे एक्टर हैं।

मुंबई मेँ हर चौथा व्यक्ति हीरो बनने के लिए जाता है, क्या आपको लगता है, कि यह मंजिल आसान है।? आप फिल्म जगत में कदम रखने वाले लोगों को क्या सुझाव देगें।
 
           देखिए मैँ जहाँ तक जानता हूँ, कुछ भी नामुमकिन नहीँ होता, लेकिन यहाँ लगभग लाखों लोगोँ मेँ  एकत दो लोगोँ को ही मौका मिल पाता है।  मैंने अपने मेहनत और लगन के कारण यह मुकाम हासिल किया है। यहां सब कुछ दिखावा है, छलवा है जो दिखता है वह होता नहीँ और जो होता है वो दिखता नहीँ एक्टिंग मेँ आने के लिए आपको अपनी कमर कसनी पड़ेगी और यह निश्चय करना पड़ेगा कि, आप एक्टिंग के बगैर जी नहीँ सकते। अगर आपके अंदर एक्टिंग की एक आग जल रही है तभी इस दुनियां में कदम रखने की सोचें।  दूर से देखने में यह बहुत आसन लगात है लेकिन ऐसा नहीं है। लेकिन आगर आपके अंदर जुनून और कुछ कर गुजरने का  दृढ़ संकल्प हो तो सब कुछ संभव है।


Sep 16, 2015

विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित कुछ लेख 

आशीष कुमार शुक्ला 
Ashish kumar shukla 









ळेबर निगरानी ब्यूरो में प्रकाशित लेख



भ्रमित युवा शक्ति कैसे संभव राष्ट्र निर्माण
सोशल मीडिया विशेष
युवा शक्ति के दम पर हम भारत को विकशित राष्ट्र बनाने का सपना सजोग रहे हैं, लेकिन आज इसकी बुनियाद खोखली होती जा रही है। अतः यह आवश्यक है कि राह भटक रही हमारी युवा शक्ति को समय रहते नियंत्रित किया जाये अगर ये नियंत्रित न हुई तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ये विनाश का सबसे बड़ा कारक बनेगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि, किसी भी देश की शक्ति उस देश की युवा में निहित होती है।
आशीष कुमार शुक्ला
          अक्सर युवावर्ग में ऐसा देखा जाता है, कि वह सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा व्यस्त रहता है। दोस्तों से गप्पें लड़ाने में, लड़कियों को पटाने की कोशिश में, या फिर गेमिंग और ऐसी हरकतों में जिनसे उनके करियर या जिंदगी में कोई फायदा तो नहीं ही हो सकता। ऐसे चंद, बिरले ही युवा हैं, जिनकी सोशल मीडिया पर सक्रियता उनके लिए किसी तरह से लाभकारी साबित हुई हो, चाहे काम-काज या नौकरी के सिलसिले में या फिर निजी जीवन के किसी पहलू में। ऐसे उदाहरण कम ही मिलते हैं, जिनमें सोशल मीडिया के अधिकाधिक इस्तेमाल से किसी व्यक्ति का भला हुआ हो।  सोशल मीडिया पर दोस्ती बढ़ाकर लड़कियों को ठगे जाने के मामले रोज ही सामने आते हैं। दो-चार दिल सोशल मीडिया के जरिए भले ही आपस में जुड़ गए हों, लेकिन न जाने कितने ही दिल टूटने की खबरें अक्सर आती रहती हैं। कई मेट्रोमोलियल साइट्स पर अपना प्रोफाइल कुछ और बनाते हैं और होते कुछ और हैं। आये दिन इस प्रकार से ठगे जाने की शिकायतें आती रहती हैं। कई ऐसी घटनाएँ हैं जहाँ हम स्वयं को अच्छा और धनी दिखाने के चक्कर में लोगों की महँगी गाडि़यों के सामने अपनी सेल्फी लेकर डाल देते हैं और सामने वाले का नियत बदल जाता है तथा अपहरण और फिरौती जैसी घटनाएँ सामने आ जाती हैं। गुजरात की घटना प्रमाण है इसका। अतः युवावर्ग को सावधानी के साथ सोशल मीडिया का उपयोग करना चाहिए। अगर हम लंदन, न्यूयार्क या कनाडा छुट्टियाँ मनाने जा रहे हैं तो हमें इसे अपडेट करते समय भी सावधान रहना चाहिए। सोशल मीडिया के इस्तेमाल के कई आयाम हैं।  सोशल मीडिया ब्रांड प्रमोशन का जरिया बन गया है। पेज बनाकर उसे लाइक करने और करवाने की कोशिशें प्रमोशन के फंडे में शामिल हो गई हैं। राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के लिए भी सोशल मीडिया अपनी बात लोगों के सामने लाने का एक सशक्त औजार बन गया है और सिर्फ अपनी बात सामने रखने का ही नहीं, उस पर फीडबैक हासिल करने का भी ये एक बड़ा जरिया है, क्योंकि किसी पक्ष की ओर से कोई बात फेसबुक या ट्विटर पर कही जाती है तो जल्द से जल्द उस पर प्रतिक्रियाएँ आनी शुरु हो जाती हैं। वैसे कई बार स्वयं को असहाय अनुभव करने पर ये सोशल साइट्स हमारे सहयोगी सिद्ध होते हैं। युवाओं से मैं बतना चाहूँगा कि आज हम लाख प्रयास करें तब भी सोशल मीडिया से दूर नहीं रह सकते। रहना भी नहीं चाहिए। समय के साथ गतिशील रहना ही एक जागरूक युवा की पहचान है। बस हमें थोड़ा सावधान रहना चाहिए जिससे कि कोई हमें धोखा न दे सके। हमें ध्यान रखना चाहिए कि, सोशल मीडिया पर आकर्षक दिखने वाला प्रोफाइल कोई आवश्यक नहीं कि वास्तव में वैसा ही  हो। हमें सोशल साइट्स का उपयोग अपने या किसी और के जीवन का बंटाधार करने में नहीं, उसे सँवारने में लगाना चाहिए।

             सोशल साइटों पर जाति, धर्म और राष्ट्रीयता को लेकर एक दूसरे की अलोचना करते आये हैं, जो कि एक खतरनाक स्थिति की तरफ इशारा करती है। आलोचना अगर वैचारिक मतभेदों पर आधरित हो ठीक है पर अगर आलोचना का उद्देश्य किसी धर्म, वर्ग को नीचा दिखाना, उसे अपमानित करना है, तो निश्चित तौर पर ये चिंता का विषय है। अगर ऐसी ही हमारी युवा शक्ति पथ भ्रमित होती रही तो विकसित भारत का हमारा सपना कैसे पूरा होगा? राष्ट्र को समर्थ और सशक्त कैसे बनाया जा सकेगा है।? विकसित भारत का सपना तो तभी पूरा होगा जब युवा शक्ति संगठित होकर राष्ट्र के विकास में योगदान दें।  आज वर्तमान समय में तो युवा शक्ति का वो बिखरा स्वरुप प्रदर्शित हो रहा है जिसके मूल में राष्ट्रीय, जातीय और धार्मिक मुद्दे ज्यादा पनपते हैं।  युवा शक्ति के दम पर हम विकसित भारत का सपना देख रहे हैं, लेकिन आज इसकी बुनियाद ही खोखली होती जा रही है।  अतः यह आवश्यक है कि राह भटक रही हमारी युवा शक्ति को समय रहते नियंत्रित किया जाये अगर ये नियंत्रित न हुई तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ये विनाश का सबसे बड़ा कारक बनेगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि, किसी भी देश की शक्ति उस देश की युवा में निहित होती है।  क्योंकि वो युवा ही है जो देश के लिए बलिदान दे सकता है, देश की समस्याओं के बारे में चिंतन करके उसका समाधान निकालता है, जिसमे जोश भरा रहता है और प्रेरक इतिहास रचने में समर्थ होता है। अगर देश का युवा भ्रमित रहेगा तो वह राष्ट्र के लिए क्या सोच पाएगा। देश की युवाओं को ऐसे भ्रमित करने का, उनके दिमाग को कुंद करने का काम भारत में करीब पिछले 20-25 वर्षो से विदेशी ताकतों के द्वारा चलया जा रहा हमें अगर राष्ट्र का सही निर्माण करना है तो इन ताकतों से लड़ना ही होगा । तभी भारत एक शक्तशाली राष्ट्र के रूप में उभर पाएगा।  (यह लेखक के अपने विचार हैं)
सोशल मीडिया पर युवाओं का बढ़ता क्रेज़  
सोशल मीडिया विशेष
आशीष कुमार शुक्ला     
सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं रह गया है, वह सामाजिक सोच और धार्मिक कट्टरता को भी स्पष्ट करने का माध्यम है। सोशल मीडिया सामाजिक कुण्ठाओं, धार्मिक विचारों पर अपना पक्ष तो रखता ही है, जिन देशों में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, वहाँ भी अपनी बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है।
            आज का दौर युवाशक्ति का दौर है। भारत में इस समय 65 प्रतिशत के करीब युवा हैं।  इन युवाओं को बड़ी ही सक्रियता से जोड़ने का काम सोशल मीडिया कर रहा है। युवा वर्ग में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का क्रेज दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा है। युवाओं के इसी क्रेज़ के कारण आज सोशल नेटवर्किंग दुनिया भर में इंटरनेट पर होने वाली नंबर वन गतिविधि बन गया है। आज  सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं की जिंदगी का एक अहम हिस्सा अगर ऐसा कहें तो सायद र्निविवाद होगा। यह सही है, कि इसके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के देश और दुनिया के हर कोने तक पहुँचा सकते हैं, परन्तु इससे बढ़ते अपराध पर हमें चिंतन करनी की आवश्यकता है। आज लगातार फेसबुक के जरिए लोग धोखा खा रहे हैं,
         एक अध्ययन में यह दावा किया गया है, कि युवा वर्ग सोशल साइट्स में फेसबुक को सबसे ज्‍यादा पसंद करते हैं। यह मै नहीं कह रहा यह निर्यातक कंपनी टीसीएस की ओर से कराये गये सर्वे में युवाओं की सोशल साइट्स के बारे में प्रतिक्रिया जानने के बाद बताया गया, कि फेसबुक को सबसे ज्‍यादा युवा पसंद करते हैं। सर्वे से पता चला है कि फेसबुक के बाद युवाओं को गूगल प्‍लस और टि्वटर में सबसे ज्यादा रुची है।  यह सर्वे 14 शहरों में कक्षा आठ से कक्षा 12 तक के 12,365 विद्यार्थियों से लिया गया है।  सर्वेक्षण में शामिल लगभग 90 प्रतिशत विद्यार्थी करीब फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं और उन्‍हें फेसबुक काफी पसंद है, जबकि 65 प्रतिशत ने गूगल प्लस तथा 44.1 प्रतिशत ट्वीटर का खूब इस्तेमाल करते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार इसमें शामिल 45.5 प्रतिशत विद्यार्थियों का कहना है वे अपने स्कूली काम को निपटाने के लिए भी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का इस्तेमाल करते हैं। 
           भारत सहित दुनियां के विभिन्न देशों में सोशल मीडिया ने सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि कई सामाजिक व गैर-सरकारी संगठन भी अपने अभियानों को मजबूती दी है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स राजनैतिक पहलुओं को भी समझने और राजनैतिक विचारधाराओं को समझने में भी अमह भूमिका का निर्वहन कर रहा है। सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं रह गया है, वह सामाजिक सोच और धार्मिक कट्टरता को भी स्पष्ट करने का माध्यम है। सोशल मीडिया सामाजिक कुण्ठाओं, धार्मिक विचारों पर अपना पक्ष तो रखता ही है, जिन देशों में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, वहाँ भी अपनी बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है। आपको बता दें आज दुनिया का हर छठा व्यक्ति सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा हैं। वर्तमान में यह सोशल मीडिया लोगों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया हैं। हम अगर किसी से नाराज हैं, किसी की बातों का प्रत्यक्ष प्रत्युत्तर नहीं दे पाते हैं, किसी ने आपको प्रसन्नता दी, किसी ने आपका दिल तोड़ा, कुछ अच्छा या बुरा खाए, किए, आज का युवा हर अगले मिनट अपना स्टेटस अपडेट करता रहता है।  सोशल साइट्स आज मन की भावनाओं को व्यक्त करने के एक सशक्त माध्यम के साथ-साथ मन को जोड़ने का एक साधन है।  अभिव्यक्ति के इन्हीं माध्यमों को दस्तावेज के तौर पर देखें तो लोगों की बेबाक एवं अवाक् टिप्पणियों से शब्दों का महत्त्व और मायने साफ हो जाता है।  अगर कहा जाए कि, युवाओं के जीवन में सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। तो शायद निर्विवाद होगा। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा जारी आंकड़ों की माने तो भारत के शहरी इलाकों में प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति सोशल मीडिया का किसी-न-किसी रूप में प्रयोग करता है। इसी रिपोर्ट में 35 प्रमुख शहरों के आंकड़ों के आधार पर यह भी बताया गया कि 77 प्रतिशत उपयोगकर्ता सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। भारत में 25 साल से अधिक आयु की आबादी 50 प्रतिशत और 35 साल से कम आयु की 65 प्रतिशत है के आस-पास है।  इससे देखते हुए आँकड़े बताते हैं, कि भारत में सोशल मीडिया पर प्रतिदिन करीब 30 मिनट समय लोगों द्वारा व्यतीत किया जा रहा है।  इनमें अधिकतम कालेज जाने वाले विद्यार्थी (82 प्रतिशत) और युवा (84 प्रतिशत) पीढ़ी के लोग शामिल हैं। सोशल साइट्स स्कूली दिनों के साथियों से मिलवाता है, तो आज देश-दुनिया के कोने में रहने वाले मित्र भी एक-दूसरे को फेसबुक पर ढूँढ़ रहे हैं। सोशल मीडिया के द्वारा जिनसे वास्तविक जीवन में मुलाकातें भले ही न पाये पर सोशल साइट्स पर हमेशा जुड़े रहते हैं।  जिस तरीके से इंटरनेट पर मेल और चैटिंग की सुविधा ने पारंपरिक डाक व्यवस्था और टेलीफोन को किनारे कर दिया है, उसी तरीके से अब इंटरनेट आधारित सोशल मीडिया भी पारंपरिक सामाजिक व्यवहार में कई तरह के बदलाव लाता दिख रहा है। इस सिलसिले में सबसे बड़ा मुद्दा है समय का। हम सोशल साइट्स पर वास्तविकता को छुपाना चाहते हैं, अपनी कल्पनाओं को दिखाने में लगे रहते हैं। देश में कई ऐसी घटनाएँ सामने आयी हैं, कि एक 35-40 साल का युवा 20-22 साल अपनी उम्र डालकर तथा कोई स्मार्ट सा फोटो डाल कर अपना प्रोफाइल बनाता है। उसकी प्रस्तुत करने की बेजोड़ क्षमता से आकर्षित होकर कई टीन एजर लड़कियाँ मित्र बना लेती हैं। बात में मिलना-मिलाना, शादी का झाँसा और फिर शारीरिक संबंध भी स्थापित हो जाता है। और अंत में उनके साथ एक बड़ा धोखा होता है। इस लिए मैं सलाह देना चाहता हूं, कि वह सोशल मीडिया का प्रयोग बेहद सावधानी पूर्वक करें और किसी भी तरह के लुभावन से दूरी बनाये रखें अगर आप ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो यह निश्चित ही आपके स्वाथ्य के लिए अच्छा रहेगा। 

   (यह लेखक के अपने विचार हैं)