Sep 27, 2015

युवाओं की दिशा तय करने के लिए क्यों जरूरी सार्थक प्रयास।
सोशल मीडिया विशेष

आशीष कुमार शुक्ला
Laboure Nigrani Bureo 
Ashish kumar shukla 





सोशल साइटों पर जाति,  धर्म और राष्ट्रीयता को लेकर एक दूसरे की अलोचना लोग करते आये हैं, जो कि एक खतरनाक स्थिति की तरफ इशारा करती है। आलोचना अगर वैचारिक मतभेदों पर आधरित हो ठीक है पर अगर आलोचना का उद्देश्य किसी धर्म, वर्ग को नीचा दिखाना, उसे अपमानित करना है, तो निश्चित तौर पर ये चिंता का विषय है। अगर ऐसी ही हमारी युवा शक्ति पथ भ्रमित होती रही तो भारत को विकसित राष्ट्र बनने का सपना कैसे पूरा होगा? राष्ट्र को समर्थ और सशक्त कैसे बनाया जा सकेगा है।
 विकसित भारत का सपना तो तभी पूरा होगा जब युवा शक्ति संगठित होकर राष्ट्र के विकास में योगदान दें।  आज वर्तमान समय में तो युवा शक्ति का वो बिखरा स्वरुप प्रदर्शित हो रहा है जिसके मूल में राष्ट्रीय, जातीय और धार्मिक मुद्दे ज्यादा पनपते हैं।  युवा शक्ति के दम पर हम विकसित भारत का सपना देख रहे हैं, लेकिन आज इसकी बुनियाद ही खोखली होती जा रही है।  अतः यह आवश्यक है कि राह भटक रही हमारी युवा शक्ति को समय रहते नियंत्रित किया जाये अगर ये नियंत्रित न हुई तो लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ये विनाश का सबसे बड़ा कारक बनेगी। हमें नहीं भूलना चाहिए कि, किसी भी देश की शक्ति उस देश की युवा में निहित होती है।  क्योंकि वो युवा ही है जो देश के लिए बलिदान दे सकता है, देश की समस्याओं के बारे में चिंतन करके उसका समाधान निकालता है, जिसमे जोश भरा रहता है और प्रेरक इतिहास रचने में समर्थ होता है। अगर देश का युवा भ्रमित रहेगा तो वह राष्ट्र के लिए क्या सोच पाएगा। देश की युवाओं को ऐसे भ्रमित करने का, उनके दिमाग को कुंद करने का काम भारत में करीब पिछले 20-25 वर्षो से विदेशी ताकतों के द्वारा चलया जा रहा हमें अगर राष्ट्र का सही निर्माण करना है तो इन ताकतों से लड़ना ही होगा। तभी भारत एक शक्तशाली राष्ट्र के रूप में उभर पाएगा। 
  आज देश की युवा पीढी के पास न कोई आदर्श है न कोई राह। पथ भ्रमित करने वाली शिक्षा ने देश में मानसिक रूप से विकृत एक ऐसी फौज खडी कर दी है जिसमें राष्ट्र के प्रति सोचने की शक्ति शून्य हो चुकी है। उनके आदर्श विवेकानन्द के स्थान पर चल चित्रों के नायक-नायिकाऐ हो चुके है। अपने जीविकोर्पाजन में लगे इन युवाओं के पास देश की सेवा व चिन्ता के लिए एक भी पल नहीं है। यह विषय देश के समस्त उन विचारों के लिए चिन्तनीय है। जो भारत को भारत को प्रगति के पथ पर देखना चाहते है। इन सब के बीच में देश में पिछले कुछ वर्षो में ऐसी कोई शक्ति खडी नहीं हुई जिसने भारतीय युवाओं की दिशा तय करने के सार्थक प्रयास किए हो। 
दूषित होती संस्कृति के कारण हमारे परिवार संयुक्त परिवारों से बिखर कर टूट गये जहां नाना-नानी, दादा-दादी की प्रेरणा दायक कहानियां लुप्त हो गई  भारतीय शिक्षा प्रणाली केवल और केवल शारीरिक मानसिक व बौद्धिक रूप से शून्य युवाओं को खडा कर रही है। ऐसे में अगर आज का युवा दिशा भ्रमित हो रहा है तो इसका चिन्तन हम सबको करना होगा। केवल युवा शक्ति को इसका दोषी नहीं मान सकते क्या कभी हमारे समाज व सत्ता ने यह चिन्तन किया है कि युवाओं की दिशा क्या होगी, लक्ष्यविहिन युवा शक्ति पर भारत गर्व भी करे तो किस बात का क्योंकि उनके पास न तो एक सोच है, न विचार है और न ही कोई राह है। स्वामी विवेकानन्द कहा था कि बहती हुई नदी की धारा ही स्वच्छ, निर्मल तथा स्वास्थ्यप्रद रहती है। उसकी गति अविरूद्ध होने पर उसका जल दूषित व अस्वास्थ्यकार हो जाता है। नदी यदि समुद्र की ओर चलते-चलते बीच में अपनी गति खो बैठे तो वही पर आबंद्ध हो जाती है। प्रकृति के समान ही मानव जीवन समाज में भी एक सुनिश्चित लक्ष्य हो तो आगे बढने का प्रयास सफल तथा सार्थक होता है।


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