Sep 16, 2015

सोशल मीडिया पर युवाओं का बढ़ता क्रेज़  
सोशल मीडिया विशेष
आशीष कुमार शुक्ला     
सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं रह गया है, वह सामाजिक सोच और धार्मिक कट्टरता को भी स्पष्ट करने का माध्यम है। सोशल मीडिया सामाजिक कुण्ठाओं, धार्मिक विचारों पर अपना पक्ष तो रखता ही है, जिन देशों में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, वहाँ भी अपनी बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है।
            आज का दौर युवाशक्ति का दौर है। भारत में इस समय 65 प्रतिशत के करीब युवा हैं।  इन युवाओं को बड़ी ही सक्रियता से जोड़ने का काम सोशल मीडिया कर रहा है। युवा वर्ग में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का क्रेज दिन-पर-दिन बढ़ता जा रहा है। युवाओं के इसी क्रेज़ के कारण आज सोशल नेटवर्किंग दुनिया भर में इंटरनेट पर होने वाली नंबर वन गतिविधि बन गया है। आज  सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं की जिंदगी का एक अहम हिस्सा अगर ऐसा कहें तो सायद र्निविवाद होगा। यह सही है, कि इसके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के देश और दुनिया के हर कोने तक पहुँचा सकते हैं, परन्तु इससे बढ़ते अपराध पर हमें चिंतन करनी की आवश्यकता है। आज लगातार फेसबुक के जरिए लोग धोखा खा रहे हैं,
         एक अध्ययन में यह दावा किया गया है, कि युवा वर्ग सोशल साइट्स में फेसबुक को सबसे ज्‍यादा पसंद करते हैं। यह मै नहीं कह रहा यह निर्यातक कंपनी टीसीएस की ओर से कराये गये सर्वे में युवाओं की सोशल साइट्स के बारे में प्रतिक्रिया जानने के बाद बताया गया, कि फेसबुक को सबसे ज्‍यादा युवा पसंद करते हैं। सर्वे से पता चला है कि फेसबुक के बाद युवाओं को गूगल प्‍लस और टि्वटर में सबसे ज्यादा रुची है।  यह सर्वे 14 शहरों में कक्षा आठ से कक्षा 12 तक के 12,365 विद्यार्थियों से लिया गया है।  सर्वेक्षण में शामिल लगभग 90 प्रतिशत विद्यार्थी करीब फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं और उन्‍हें फेसबुक काफी पसंद है, जबकि 65 प्रतिशत ने गूगल प्लस तथा 44.1 प्रतिशत ट्वीटर का खूब इस्तेमाल करते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार इसमें शामिल 45.5 प्रतिशत विद्यार्थियों का कहना है वे अपने स्कूली काम को निपटाने के लिए भी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट का इस्तेमाल करते हैं। 
           भारत सहित दुनियां के विभिन्न देशों में सोशल मीडिया ने सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर ही नहीं, बल्कि कई सामाजिक व गैर-सरकारी संगठन भी अपने अभियानों को मजबूती दी है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स राजनैतिक पहलुओं को भी समझने और राजनैतिक विचारधाराओं को समझने में भी अमह भूमिका का निर्वहन कर रहा है। सोशल मीडिया सिर्फ अपना चेहरा दिखाने का माध्यम नहीं रह गया है, वह सामाजिक सोच और धार्मिक कट्टरता को भी स्पष्ट करने का माध्यम है। सोशल मीडिया सामाजिक कुण्ठाओं, धार्मिक विचारों पर अपना पक्ष तो रखता ही है, जिन देशों में लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है, वहाँ भी अपनी बात कहने के लिए लोगों ने सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण भी किया है। आपको बता दें आज दुनिया का हर छठा व्यक्ति सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा हैं। वर्तमान में यह सोशल मीडिया लोगों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति का माध्यम बन गया हैं। हम अगर किसी से नाराज हैं, किसी की बातों का प्रत्यक्ष प्रत्युत्तर नहीं दे पाते हैं, किसी ने आपको प्रसन्नता दी, किसी ने आपका दिल तोड़ा, कुछ अच्छा या बुरा खाए, किए, आज का युवा हर अगले मिनट अपना स्टेटस अपडेट करता रहता है।  सोशल साइट्स आज मन की भावनाओं को व्यक्त करने के एक सशक्त माध्यम के साथ-साथ मन को जोड़ने का एक साधन है।  अभिव्यक्ति के इन्हीं माध्यमों को दस्तावेज के तौर पर देखें तो लोगों की बेबाक एवं अवाक् टिप्पणियों से शब्दों का महत्त्व और मायने साफ हो जाता है।  अगर कहा जाए कि, युवाओं के जीवन में सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। तो शायद निर्विवाद होगा। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा जारी आंकड़ों की माने तो भारत के शहरी इलाकों में प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति सोशल मीडिया का किसी-न-किसी रूप में प्रयोग करता है। इसी रिपोर्ट में 35 प्रमुख शहरों के आंकड़ों के आधार पर यह भी बताया गया कि 77 प्रतिशत उपयोगकर्ता सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। भारत में 25 साल से अधिक आयु की आबादी 50 प्रतिशत और 35 साल से कम आयु की 65 प्रतिशत है के आस-पास है।  इससे देखते हुए आँकड़े बताते हैं, कि भारत में सोशल मीडिया पर प्रतिदिन करीब 30 मिनट समय लोगों द्वारा व्यतीत किया जा रहा है।  इनमें अधिकतम कालेज जाने वाले विद्यार्थी (82 प्रतिशत) और युवा (84 प्रतिशत) पीढ़ी के लोग शामिल हैं। सोशल साइट्स स्कूली दिनों के साथियों से मिलवाता है, तो आज देश-दुनिया के कोने में रहने वाले मित्र भी एक-दूसरे को फेसबुक पर ढूँढ़ रहे हैं। सोशल मीडिया के द्वारा जिनसे वास्तविक जीवन में मुलाकातें भले ही न पाये पर सोशल साइट्स पर हमेशा जुड़े रहते हैं।  जिस तरीके से इंटरनेट पर मेल और चैटिंग की सुविधा ने पारंपरिक डाक व्यवस्था और टेलीफोन को किनारे कर दिया है, उसी तरीके से अब इंटरनेट आधारित सोशल मीडिया भी पारंपरिक सामाजिक व्यवहार में कई तरह के बदलाव लाता दिख रहा है। इस सिलसिले में सबसे बड़ा मुद्दा है समय का। हम सोशल साइट्स पर वास्तविकता को छुपाना चाहते हैं, अपनी कल्पनाओं को दिखाने में लगे रहते हैं। देश में कई ऐसी घटनाएँ सामने आयी हैं, कि एक 35-40 साल का युवा 20-22 साल अपनी उम्र डालकर तथा कोई स्मार्ट सा फोटो डाल कर अपना प्रोफाइल बनाता है। उसकी प्रस्तुत करने की बेजोड़ क्षमता से आकर्षित होकर कई टीन एजर लड़कियाँ मित्र बना लेती हैं। बात में मिलना-मिलाना, शादी का झाँसा और फिर शारीरिक संबंध भी स्थापित हो जाता है। और अंत में उनके साथ एक बड़ा धोखा होता है। इस लिए मैं सलाह देना चाहता हूं, कि वह सोशल मीडिया का प्रयोग बेहद सावधानी पूर्वक करें और किसी भी तरह के लुभावन से दूरी बनाये रखें अगर आप ऐसा करने में कामयाब होते हैं तो यह निश्चित ही आपके स्वाथ्य के लिए अच्छा रहेगा। 

   (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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