Apr 3, 2015

ताज का राज.....?





आगरा का ताजमहल भारत की शान वह प्रेम का प्रतीक माना जाता है। दुनियां के सात अजूबों में शुमार, ताज सच मे खूबसूरती का एक अनोखा मंजर है। यमुना नदी के किनारे सफेद पत्थरों से निर्मित अलौकिक सुंदरता की तस्वीर 'ताजमहल' न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में अपनी पहचान रखता है। ताजमहल को लेकर विभिन्न लेखकों के विचार और तर्क आये दिन सामने आते रहते हैं । एक बार फिर-ताजमहल के पीछे का छुपा राज लोगों के सामने उजागर किया है। इतिहास के माने जाने विशेषज्ञ श्री पी.एन. ओक  ने। अपने शोध के जरिये ताजमहल पर आई अपनी किताब मे उन्होंने यह दावा किया है, कि ताजमहल शिव मंदिर है, जिसका असली नाम तेजो महालय है।
जब शाहज़हां और औरंगज़ेब का शासनकाल था तब किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है। ताजमहल शब्द के अंत में आये 'महल' मुस्लिम शब्द नहीं है। अफगानिस्तान से लेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है, जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो। शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आने वाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख 'ताज-ए-महलके नाम से किया है, जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकब़रा शब्द का प्रयोग किया है। यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है, तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं बनता। ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था। 'ताज' और 'महल' दोनों ही संस्कृत मूल के शब्द हैं।
 कुछ सभ्याताएं भी इससे मेल खाती हैं। और शिव मंदिर होने का दावा कराती हैं, जैसे कि, ताजमहल शिव मंदिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है। संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहज़हां के समय से भी पहले की थी, जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मक़बरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि किसी मक़बरे में जाने के लिये जूता उतारना अनिवार्य नहीं होता। संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। वास्तुकला की विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में 'तेज-लिंग' का वर्णन किया गया है। ताजमहल में 'तेज-लिंग' प्रतिष्ठित था इसीलिये उसका नाम तेजोमहालय पड़ा था।  
ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। ताज को शाहज़हां के द्वारा हथिया लेने के पहले वहाँ एक शिव लिंग पर बूंद-बूंद पानी टपकाने वाला घड़ा लटका करता था। ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी, कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके।
 इतिहास में शाहज़हां के मुमताज़ के प्रति विशेष आसक्ति का कोई विवरण नहीं मिलता । ताज की सुरक्षा के लिये उसके चारों ओर खाई खोद कर की गई है। किलों, मंदिरों तथा भवनों की सुरक्षा के लिये खाई बनाना हिंदुओं में सामान्य सुरक्षा व्यवस्था रही है। पीटर मुंडी ने लिखा है, कि शाहज़हां ने उन खाइयों को पाटने के लिये हजारों मजदूर लगवाये थे। यह भी ताज के शाहज़हां के समय से पहले के होने का एक लिखित प्रमाण है। ताज के दक्षिण में एक प्रचीन पशुशाला है। वहाँ पर तेजोमहालय के पालतू गायों को बांधा जाता था। मुस्लिम कब्र में गाय कोठा होना एक असंगत बात है। 
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं। प्रो. ओक. जोर देकर कहते हैं, कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान शिव की मूर्ति,त्रिशूल,कलश और ॐ आदि वस्तुएं प्रयोग की जाती हैं, ना की मुसलमानों मे।
शाहजहाँ के दरबारी लेखक "मुल्ला अब्दुल हमीद लाहौरी " ने अपने  "बादशाहनामा"  में मुग़ल शासक बादशाह का सम्पूर्ण वृतांत 1000  से ज़्यादा पृष्ठों मे लिखा है, जिसके खंड एक के पृष्ठ 402 और 403 पर इस बात का उल्लेख है किशाहजहाँ की बेगम मुमताज-उल-ज़मानी जिसे मृत्यु के बादबुरहानपुर मध्य प्रदेश में अस्थाई तौर पर दफना दिया गया था।
ताजमहल के बाहर पुरातत्व विभाग में रखे हुये शिलालेख में वर्णित है, कि शाहज़हां ने अपनी बेग़म मुमताज़ महल को दफ़नाने के लिये एक विशाल इमारत बनवाया जिसे बनाने में सन् 1631 से लेकर 1653 तक 22 वर्ष लगे। यह शिलालेख ऐतिहासिक घपले का नमूना है।  टॉवेर्नियर, जो कि एक फ्रांसीसी जौहरी थे, ने अपने यात्रा संस्मरण में उल्लेख किया है, कि शाहज़हां ने जानबूझ कर मुमताज़ को 'ताज-ए-मकान', पास दफ़नाया था, ताकि पूरे संसार में उसकी प्रशंसा हो। अंग्रेजी लेखक अभ्यागत पीटर मुंडी ने सन् 1632 में (अर्थात् मुमताज की मौत को जब केवल एक ही साल हुआ था) आगरा तथा उसके आसपास के विशेष ध्यान देने वाले स्थानों के विषय में लिखा है जिसमें के ताज-ए-महल के गुम्बद, वाटिकाओं तथा बाजारों का जिक्र आया है। इस तरह से वे ताजमहल के स्मरणीय स्थान होने की पुष्टि करते हैं। डी लॉएट नामक डच अफसर ने सूचीबद्ध किया है, कि मानसिंह का भवन ,जो कि आगरा से एक मील की दूरी पर स्थित है शाहज़हां के समय से भी पहले का एक उत्कृष्ट भवन है। ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है, कि ताजमहल के अन्दर मुमताज की कब्र पर सदैव बूँद-बूँद कर पानी टपकता रहता है, पूरे विश्व मे किसी कि भी कब्र पर बूँद-बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, हिंदू शिव मन्दिर में ही शिवलिंग पर बूँद-बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है। खैर ताज का राज क्या है यह पुख्ता और सही तरह से अभी बता पाना मुंकिन नहीं है। तमाम लेखकों द्वार दिये गये मत को गलत तभी साबित किया जा सकता है, जब ताजमहल मे बंद उन सभी कमरों को खुलवाया जाए, और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों को छानबीन करने दिया जाए। अगर ऐसा होगा तो शायद ताज का राज सबके सामने आ जाए।  खैर अभी यह देखना खासा रोचक होगा, कि क्या मौजूदा केंद्र सरकार इसपर दखल देना पसंद करेगी।

(यह लेख इतिहास वह लेखकों के द्वारा ताजमहल पर शोध और उनके दिये गये मतों के आधार पर लिखा गया है, लेखक खुद किसी बात की पुष्टी नहीं करता) 

A.s Raja

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