जम्मू-कश्मीर में धारा 370 क्यों…..?
आशीष शुक्ला
आए दिन धारा 370 सुर्खियों
टीवी चैनलों में रहता है। जब- जब भारत में चुनावी डंका बजाता है, तब-तब इसपर
जोरदार बहस छिड़ती है। सारी पार्टियां इसे हटवाने का दावा करती हैं, परन्तु चुनाव
खत्म होने के बाद इस पर बात करना भी मुनासिब नहीं समझती। अन्य सभी राज्यों में
लागू होने वाले कानून यहां लागू नहीं होते। धारा 370 भारतीय संघ के भीतर
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिलाती है। अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू- कश्मीर का अपना
अलग झंडा और प्रतीक चिन्ह है। यहां ना तो
केंद्र का कानून चलता है,
और ना ही भारत का संविधान । यही नहीं अगर कोई भारतीय नागरिक जम्मू-कश्मीर के किसी
लड़की से विवाह करता है, तो ना सिर्फ उस
लड़की की नागरिकता खत्म हो जाती है,
बल्कि लड़के को भी वहां की नागरिकता नहीं प्राप्त होती । परन्तु अगर कोई
पॉकिस्तानी नागरिक विवाह करता है तो, उसे
जम्मू-कश्मीर की नागरिकता प्राप्त हो जाती
है।
भारत सरकार केवल रक्षा, विदेश नीति, वित्त और संचार जैसे मामलों में यहां दखल दे सकती है। इसके अलावा संघ और
समवर्ती सूची के तहत आने वालों विषयों पर केंद्र सरकार कानून नहीं बना सकती। राज्य की नागरिकता, प्रॉपर्टी की ओनरशिप और अन्य सभी
मौलिक अधिकार राज्य के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इन मामलों में किसी तरह का
कानून बनाने से पहले भारतीय संसद को राज्य की अनुमति लेनी जरूरी है। अलग प्रॉपर्टी
ओनरशिप होने की वजह से किसी दूसरे राज्य का भारतीय नागरिक जम्मू-कश्मीर में जमीन
या अन्य प्रॉपर्टी नहीं खरीद सकता। आजादी के वक्त जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा
नहीं था। ऐसे में राज्य के पास दो विकल्प थे या तो वह भारत में शामिल हो जाएं या
फिर पाकिस्तान में । जम्मू कश्मीर की अधिकतर जनता पाक में शामिल होना चाहती थी
लेकिन तत्कालीन शासक हरि सिंह का झुकाव भारत की तरफ था। हरी सिंह ने भारत में राज्य का विलय करने की सोची और विलय करते वक्त उन्होंने "इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेंशन" नाम के दस्तावेज पर साइन
किए थे। जिसका खाका शेख अब्दुल्ला ने तैयार किया था। जिसके बाद भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा
दे दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा
चुनाव के दौरान अपनी सभाओं में धारा 370 को हटवाने की बात करते नजर आये थे। इससे
पहले भी कई पार्टियों ने इसे हटवाने के वायदे किये, परन्तु नाकाम रही। अभी तक प्रधानमंत्री
नरेंन्द्र मोदी इसे हटाने पर विचार तक नहीं कर पाए हैं। इतिहास के पन्ने पलटे जाएं
तो हम पाएंगे कि भाजपा का इसे हटाने का रुख 50 के दशक की शुरुआत से ही रहा है। तब
भाजपा 'भारतीय जन संघ' के नाम से जानी
जाती थी। 'भारतीय जन संघ' के संस्थापक
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 के खिलाफ लड़ाई लड़ने का बीड़ा उठाया था,
परन्तु वह नाकाम रहे। तब से अब तक भाजपा ने धारा 370 का लगातार विरोध किया है और
इसको निरस्त किए जाने की मांग पर अटल रही है। आश्चर्य की बात तो यह है कि, आज भाजपा
पूर्ण बहुमत पाने के बाद भी संसद में इसे हटवाने पर विचार तक नहीं कर रही है। वैसे
तो भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है, परन्तु जम्मू-कश्मीर में भारत का
संविधान लागू नहीं होता हैं। जिसके चलते यहां दोहरी नागरिकता का प्रावधान है। आजादी
के वक्त जम्मू-कश्मीर की अलग संविधान सभा ने वहां का संविधान बनाया था। अनुच्छेद 370(ए) में प्रदत्त अधिकारों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के
अनुमोदन के बाद 17 नवम्बर 1952 को भारत
के राष्ट्रपति ने अनुच्छेद-370 के राज्य में लागू होने का
आदेश दिया तब से लेकर अब तक यह लागू है। हालांकि अनुच्छेद 370 में समय के साथ-साथ कई बदलाव भी किए गए हैं। 1965 तक
वहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होता था। उनकी जगह सदर-ए-रियासत और
प्रधानमंत्री हुआ करता था। जिसे बाद में बदला गया। इसके अलावा पहले जम्मू-कश्मीर
में भारतीय नागरिक जाता तो उसे अपना साथ पहचान-पत्र रखना जरूरी था। जिसका बाद में
काफी विरोध हुआ। विरोध होने के बाद इस प्रावधान को हटा दिया गया। 1976 का शहरी भूमि कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। इसके तहत भारतीय
नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का
अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद
सकते हैं। भारतीय संविधान की अनुच्छेद 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने
का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती। तमाम
अटकलों और बिड़मनाओं के बावजूद, इस पर सरकार द्वारा कोई भी कदम ना उठाया जाना
चिंता की बात है। आज जम्मू-कश्मीर को इतनी अटकलों के बाद कैसे समृद्ध राज्य बनाया
जा सकता है, यह बात वहां की जनता और नागरिकों को यह खुद सोचना चाहिए। क्योंकि जब तक वहां पर भारत का
संपूर्ण संविधान, कानून नहीं लागू होगा तब तक भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं का
लाभ जो सरकार देश के लिए बनाती है उसके फायदे जम्मू-कश्मीर को कैसे मिलेंगे। मैं
सोचता हूं की आज भारत देश के अन्य नागरिकों को जितनी फिर्क हो रही है जम्मू-कश्मीर
की उससे कहीं ज्यादा वहां के निवासियों को होनी चाहिए। उन्हे चाहिए की वह अनुच्छेद
370 का खुल कर विरोध करें और जम्मू-कश्मीर को संपूर्ण भारतीय राज्य का दर्जा
दिलायें।
"यह लेखक के अपने विचार हैं"






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