“बहुत हुआ अब और नहीं”
आशीष शुक्ला
आज
जिस तरह से महिलाओं का शोषण किया जा रहा है, यह सिर्फ असहनिय नहीं है, बल्कि यह
हमारी संस्कृति, सभ्यता का खात्मा करने के लिए काफी है। महिला आजादी के बाद भी
स्वतंत्र नहीं है। ना सिर्फ बाहर उसका शोषण किया जाता है, बल्कि अब वह घर में भी
अपने आपको असुरक्षित समझती हैं। घर से निकलने के लिए कई बार सेचती है। उसे डर है
कि कही कोई हैवान उसकी इज्जत-आबरू को तार-तार ना कर दे। अब यह शर्मसार करने वाला
मुद्दा ही नहीं रहा बल्कि यह भारत सहित कई अन्य देशों की सबसे बड़ी समस्या बन चुका
है।
शास्त्रों में कहा गया है, कि जहाँ नारी की
पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है। जहां देवताओं का निवास होता है उस घर
में सुख-समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। इसलिए जरूरी है कि महिलाओं को सम्मान और
आदर प्राप्त हो, परन्तु आज ऐसा बिलकुल नहीं है। महिलाओं के साथ रोजाना बस और ट्रेन
में छेड़छाड़ जैसी शर्मनाक घटनाएं सामने आती
रहती हैं। दिल्ली 16 दिसबंर एक युवती से चलती बस में हुए गैंगरेप के बाद भारत में
महिलाओं के खिलाफ अपराध पर जोरदार राष्ट्रीय बहस हुई। परन्तु उसका क्या हुआ, आज
जिस तरह से महिलाओं की सुरंक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है, किसी से छिपा नहीं है।
महिलाओं की सुरंक्षा के लिए सरकार ने कई कानून बनाये परन्तु उनको सही से अमल में
नहीं लाया जा रहा। व्यापक तौर पर, भारत की वैश्विक छवि
(व्यापक गरीबी से लेकर तकनीक कुशलता और बॉलीवुड संस्कृति के जश्न तक) इसकी आधी
आबादी द्वारा प्रतिदिन झेले जाने वाले दबाव और धमकियों की व्याख्या से धूमिल हो
रही है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा का मुद्दा सिर्फ भारत तक केंद्रित नहीं है, बल्कि
पूरे विश्व की समस्या है। महिला थाने में दर्ज
होने वाले आपराधिक प्रकरणों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। दिल्ली
पुलिस की रिपोर्ट में बताया गया था कि अक्टूबर 2014 तक रेप के 1330 मामले, जबकि छेड़छाड़ के 2844 मामले
सामने आए थे। राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं के
खिलाफ अपराध में साल 2013 के मुकाबले 2014 में 18.3 फीसदी,
दुष्कर्म के मामले में 31.6 फीसदी, की वृद्धि हुई थी। 15
दिसंबर तक भारतीय दंड संहिता (आपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत साल 2014
में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के 14,687 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2013 में
यह आंकड़ा 12,410 था।
आंकड़ों में यह खुलासा हुआ है कि साल 2014 में दुष्कर्म के 2,069 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2013 में यह आंकड़ा 1,571 था। राजधानी में छेड़छाड़ के साल 2013 के 3,345 मामलों की तुलना में 2014 में 4179 मामले दर्ज किए गए। साल 2014 में उत्पीड़न के 1,282 मामले सामने आए थे, जबकि 2014 में यह आंकड़ा 879 था। साल 2014 में दहेज हत्या के 147 मामले सामने आए, जबकि 2013 में यह आंकड़ा 137 था। मौजूदा आंकड़े भारत में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार को बताने के लिए काफी हैं। महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए त्वरित निपटान अदालत समेत अन्य अदालातों का गठन करना भारत के संविधान के तहत राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस संबंध में त्वरित निपटान अदालत गठित करने में उच्च न्यायालयों की मदद करनी चाहिए। यदि महिलाएं अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं तो समाज का बना ताना-बाना टूट जाता है। यह एक मानवाधिकार का मुद्दा है, पुरुषों एवं महिलाओं को इस अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहिए। और इसका समाधान ढूंढने के लिए एक साथ खड़े होना चाहिए। हमें विश्व स्तर पर हाथ मिलाकर मानवीय मूल्यों को पुन: स्थापित करने के लिए और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार को रोकने के लिए मिलकर आवाज उठाने की आवश्यकता है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या कम करने के लिए समाज को मानसिकता बदलने की जरूरत भी है।
आंकड़ों में यह खुलासा हुआ है कि साल 2014 में दुष्कर्म के 2,069 मामले दर्ज किए गए, जबकि 2013 में यह आंकड़ा 1,571 था। राजधानी में छेड़छाड़ के साल 2013 के 3,345 मामलों की तुलना में 2014 में 4179 मामले दर्ज किए गए। साल 2014 में उत्पीड़न के 1,282 मामले सामने आए थे, जबकि 2014 में यह आंकड़ा 879 था। साल 2014 में दहेज हत्या के 147 मामले सामने आए, जबकि 2013 में यह आंकड़ा 137 था। मौजूदा आंकड़े भारत में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार को बताने के लिए काफी हैं। महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए त्वरित निपटान अदालत समेत अन्य अदालातों का गठन करना भारत के संविधान के तहत राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस संबंध में त्वरित निपटान अदालत गठित करने में उच्च न्यायालयों की मदद करनी चाहिए। यदि महिलाएं अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं तो समाज का बना ताना-बाना टूट जाता है। यह एक मानवाधिकार का मुद्दा है, पुरुषों एवं महिलाओं को इस अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहिए। और इसका समाधान ढूंढने के लिए एक साथ खड़े होना चाहिए। हमें विश्व स्तर पर हाथ मिलाकर मानवीय मूल्यों को पुन: स्थापित करने के लिए और महिलाओं के खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार को रोकने के लिए मिलकर आवाज उठाने की आवश्यकता है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की संख्या कम करने के लिए समाज को मानसिकता बदलने की जरूरत भी है।
(यह के अपने विचार
हैं,)
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