भ्रूण हत्यायें क्यों.....?
आशीष शुक्ला
इस आधुनिक युग में, पढ़े-
लिखे समाज में आज भी जन्म से पहले लड़कियों को मारने की प्रथा भारत में जिस तरह से
विद्यमान है यह काफी शर्म की बात है। आखिर क्यों लोग आज लड़के और लड़कियों में
भेद-भाव करते हैं, क्या लड़कियों को जीने का अधिकार नहीं है।
आखिर कब तक लड़कियों की गर्भ में हत्या होती रहेंगी। लड़कों के मुकाबले लड़कियों
की संख्या तेजी से घट रही है जो गंभीर चिंता का विषय है। 1981 की जनगणना में
लड़कियों की संख्या 1000 लड़कों के मुकाबले 960 थी परंतु 2011 के जनगणना में यह गिरकर 939 हो गई है।
“कन्या जिसे लक्ष्मी का स्वारूप माना जाता है, आखिर उन्हें ही लोग अपने हाथों से खत्म करनें पर क्यों तुले हैं”?
महिलाओं और पुरुषों
के बीच भेदभाव यानी माँ के गर्भ में बच्चे की लैंगिक जाँच कराने की तकनीक आने के
बाद ही भ्रूण हत्यायें होनी शुरू हुई। लड़कियों को जन्म से पहले मारने की प्रथा
धीरे-धीरे उन जगहों पर भी प्रचलित हो रही है जो अब तक इससे बचे हुए थे। पहले यह
कुछ ही शहरों तक सीमित था परन्तु अब इसका विस्तार हो चुका है। हरियाणा, दिल्ली,
और गुजरात में लिंगानुपात सबसे कम है। इस परंपरा के वाहक अशिक्षित व
निम्न व मध्यम वर्ग ही नहीं है बल्कि उच्च
शिक्षित समाज भी हैं। भारत के सबसे समृद्ध राज्यों पंजाब, 2001
की जनगणना के अनुसार एक हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या 798,
हरियाणा में 819 और गुजरात में 883 थी, परन्तु कुछ राज्यों में अनुपात
में सुधार हुआ है। छत्तीसगढ़ राज्य में 1000 पुरूषों के मुकबले 991 है, 2001 में यह 989 था। कुछ अन्य राज्यों ने इस प्रवृत्ति को गंभीरता से
लिया और इसे रोकने के लिए अनेक कदम उठाए है। भारत में पिछले चार दशकों से सात साल
से कम आयु के बच्चों के लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 1981 में एक
हजार बालकों पर 962 बालिकाएँ थी। वर्ष
2001 में यह अनुपात घटकर 927 हो गया था, परन्तु 2011 के जनसंख्या में कुछ
हद तक सुधरा है। अब 1000 परूषों के मुकाबले 939 लड़कियां हैं। वर्तमान समय में इस
समस्या को दूर करने के लिए सामाजिक जागरूकता बढाने के लिए साथ-साथ प्रसव से पूर्व
तकनीकी जांच अधिनियम को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। जीवन बचाने वाली
आधुनिक प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग रोकने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। उन्नत
कहलाने वाले राजों में ही नहीं बल्कि प्रगतिशील समाज में भी लिंगानुपात की स्थिति
चिंताजनक है। स्वास्थ्य विभाग को इस पर सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। प्रसूति
पूर्व जांच तकनीक अधिनियम 1994 को सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। हो रहे इस
अत्याचार के विरुद्ध देश के प्रत्येक नागरिकों को आगे आने की जरूरत है। बालिकाओं
के सशक्तिकरण में हर प्रकार का सहयोग देने की जरूरत है। लड़कियों के प्रति इस
नकारात्मक स्वभाव के गंभीर सामाजिक और अन्य प्रभाव हो सकते हैं। गर्भपात कराने से
औरतों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। यदि महिलाओं की संख्या यूँ ही घटती रही
तो, महिलाओं के खिलाफ हिंसात्मक घटनाऐं बढ़ जाएंगी। भ्रण हत्या जैसे अक्षमीय अपराध
को लेकर सरकार पहले से कुछ हद गंभीर है, परन्तु जितना होना
चाहिए उतना नहीं। अगर यह अपराध ऐसे ही होते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब विवाह के
लिए उसका अपहरण किया जाएगा, उसकी इज्ज़त को तार-तार किया
जाएगा, उसे ज़बरदस्ती एक से अधिक पुरूषों की पत्नी बनना
पड़ेगा। केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों ने अब तक महिलाओं के विकास के लिए किसी खास
योजना की घोषणा नहीं की है लेकिन महिला उत्थान के लिए काम कर रहें संगठनों ने पहले
से ज्यादा गंभीरता दिखाई है। सरकार पर दवाब लगातार बढ़ रहा है जिससे कुछ ठोस नतीजा
निकलने की उम्मीद की जा सकती है, परन्तु क्या मौजूदा सरकार
इस शर्मसार करने वाले अपराध पर रोक लगा पाएगी? यह भविष्य
बताएगा। हलांकि मौजूदा सरकार जिस तरह से कार्य कर रहे है इससे कुछ ठोस कदम उठाये
जाने की उम्मीद की जा सकती है। अगर महिलाओं के खिलाफ नकारात्मक रुझान को खत्म करना
है तो उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना जरूरी है। जब तक वह आत्मनिर्भर नहीं
होगीं तब तक ऐसे अपराधों को खत्म कर पाना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है।

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