Dec 12, 2013



[आशीष शुक्ला] नई दिल्ली।

                 दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिलने और पार्टियों का एक-दूसरे को समर्थन न देने की स्थिति के बाद दिल्ली में नई सरकार के गठन को लेकर अनिश्चितता कायम है। वहीं, भाजपा और 'आप' एक-दूसरे को इस हालात के लिए जिम्मेदार भी ठहरा रहे हैं। ऐसी स्थिति में दिल्ली राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ती दिखाई दे रही है। इसबीच गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि उपराज्यपाल फैसला करने से पहले नई सरकार गठन के लिए सारे विकल्पों को तलाशेंगे।

वास्तविक स्थिति

दरअसल नई सरकार की गठन में आ रही अड़चन और इसके पीछे जो राजनीति दिखाई दे रही है वह यह कि विधानसभा परिणाम के बाद दोनों बड़ी पार्टियां भाजपा और 'आप' एक-दूसरे को इस हालात का जिम्मेदार तो ठहरा ही रहे हैं। साथ ही भाजपा 'आप' को सरकार न चलाने का अनुभव होने की बात कह रही है तो वहीं 'आप' भाजपा को कांग्रेस की तरह ही मान कर समर्थन देने से बच रही है। जबकि कांग्रेस हालात पर अपनी नजरें गड़ाए हुए है। दोनों पार्टी इस बात को लेकर आश्वस्त है कि यदि ऐसे हालात में नई सरकार का गठन नहीं होता है तो आगामी लोकसभा चुनाव के साथ ही फिर से दिल्ली विधानसभा का चुनाव हो ताकि वह पूर्ण बहुमत के साथ सरकार का बना सकें।
भाजपा के दिल्ली में पार्टी प्रभारी नितिन गडकरी ने कहा कि हमारे पास संख्या नहीं है। हम किसी विधायक को खरीदना नहीं चाहते हैं।' हर्षवर्धन ने कहा कि अगर गतिरोध जारी रहा तो भाजपा नये सिरे से चुनाव में जाने को तरजीह दे सकती है। उधर, अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वे विपक्ष में बैठना पसंद करेंगे और अगर हालात बने तो चुनाव का सामना करना पसंद करेंगे। जहां भाजपा और आप दोनों ने कहा कि वे न तो किसी को समर्थन देंगे और न ही किसी से समर्थन लेंगे। वहीं, निवर्तमान मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने केजरीवाल के उस बयान का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी न तो किसी से समर्थन लेगी और न ही किसी को समर्थन देगी।

भाजपा की रणनीति

वहीं, भाजपा ने अपनी रणनीति में यह साफ कर दिया है कि वे जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं करेंगे। पार्टी हाईकमानों के अनुसार कांग्रेस इस समय नजरें गड़ाए बैठी है। अगर भाजपा कुछ भी इस तरह की हरकत करती है तो वे भाजपा पर निशाना साधेगी। हां, ये भी साफ कर दिया गया है कि अगर कोई विधायक अपने मन से भाजपा को समर्थन करने आएंगे तो इसमें उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा।

आप की मजबूरी

दूसरी तरफ अगर, आप पर विचार किया जाए तो उनके पास सत्ता चलाने का कोई अनुभव नहीं है। विपक्ष में बैठना और सत्ता चलाना, दोनों बहुत-बहुत अलग है। आप के लिए विरोध करना आसान काम है, जबकि सत्ता चलाना फिलहाल मुश्किल, क्योंकि उसके पास अनुभव की कमी है। ऐसे में भाजपा यह चाहेगी कि आप बाहरी समर्थन ही सही, लेकिन कांग्रेस का साथ लेकर आप सत्ता संभाले, जिससे जनता को उनकी असली ताकत का पता चल सके।

किसे मिलेगा फायदा

अगर दिल्ली में विधानसभा चुनाव दोबारा होता है तो इस बात की पूरी संभावना है कि वह लोकसभा चुनाव के साथ-साथ ही होगी। ऐसे में पूरा समीकरण ही दूसरा रहेगा। आप के लिए दोबारा चुनाव जीतना कतई आसान नहीं होगा। हां, इतना जरूर है कि आप को इस बात का भरोसा है कि उन्हें कुछ अन्य मध्यवर्गीय वोटर ग्रुप जरूर वोट डालेंगे, लेकिन भाजपा के पास भी यह हथियार है कि वे वोटर से यह बात कहकर पूरा समर्थन मांग सकते हैं कि हम मजबूत पार्टी हैं और अगर आपने पहले ही पूरा समर्थन दिया होता तो ऐसी नौबत नहीं आती। हमने सरकार इसलिए नहीं बनाया, क्योंकि हम जोड़-तोड़ की राजनीति नहीं करना चाहते।

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