जीवन सुख-दु:ख खेल है ।
दुःख तथा सुख किस प्रकार हमारे भाग्य की दिशा तय करते हैं ।हमारे पास दुःख का सामना करने के सरल उपाय हमेशा मौजूद होते हैं । कभी हम शराब पीते हैं तो कभी सिगरेट । जबकि कुछ ऐसे भी लोग हैं , जो मानसिक दबाव का मुकाबला व्यायाम ,सैर आदि उपायों द्वरा करते है ।हमारे सपनों पर अक्सर असफलता के बादल छाए रहने की कोशिश करते हैं । हम अपने सपनों तथा उद्देश्यों के लिए जोखिम उठाने की अपेक्षा अपने पास जो कुछ है , उससे चिपके रहना चाहते हैं।  परन्तु अगर हम परेशानियों/दुःखों को दोस्त के रुप में स्वीकार करे तो फिर परेशानिया हमारा साथ छोड़ सकती है ।  हम यह सोचते हैं कि कुछ भी करें उससे कोई फर्क नही पडता परन्तु ऐसा करके तो हमें सिर्फ दुःख ही प्राप्त हैं। यह सच्चाई हैं कि संबंधों में बंधे रहना दुखद तो हैं ।लेकिन यदि हम इससे बाहर निकलते है । तब अपने आप को अकेला व सबसे अभागा महसूस करते हैं । पुराने दुखद अनुभवो को याद करते है  ,फिर इस बारे में कुछ करने के लिए आतुर हो जाते हैं ।परन्तु जब  कुछ नही कर पाते,तब अपने आप को भावुकता की दहलीज पर पाते है,व भावुकता के चरम बिंदु को छूने के बाद ही हम परेशानियों का सामना करने में सामर्थ हो पाते है । जीवन में हम कभी न कभी स्वयं को  क्रुद्ध ,कुंठित तथा संकट में पड़ा हुआ अवश्य महसूस करते हैं ।हमें अपने ध्यान के केंद्र बिंदु में परिवर्तन लाना होगा । शारीरिक अवस्था में बदलाव भी महत्वपूर्ण होता है, जब कोई गुस्सा तनाव या अवसाद की स्थिति में होता है ,तब प्रायःवह धूम्रपान , मद्धपान आदि नकारात्मक क्रियाओं की तरफ मुड़ जाता है । परन्तु इस नकारात्मक  अवस्था से निकलनें का सहज उपाय है,हम प्रायः व्यायाम, करके संगीत सुनके इससे छुटकारा पा सकते हैं ।   हमारा क्रेंदित ध्यान हमारी भावनाओं को निश्चित करता हैं ,हमारी भावनाएं ,सोच और हमारे ख्याल हमारी भावनाओं को निश्चित करता है । जीवन तो बस दुःख सुख का एक हिस्सा हैं।
 
 
 
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