भारत का राष्ट्रिय खेल हॉकी 
प्राचीनतम खेल है हॉकी। हॉकी में एक समय हमारे भारत की धाक थी, परंतु अब ऐसा नही है। आज भले ही हॉकी भारत देश का राष्ट्रीय
खेल हो परन्तु आज इस खेल में ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी स्पेन,
हॉलैड जैसी टीमों ने अपनी धाक जमा रखी है। प्रचीतंम लाठी (जटटक) व रबर
या कठोर प्लास्टक की गेंद से खेला जाने वाल एक मात्र खेल होने के कारण आज भी लोग इस
खेल बहुत चाव से खेलते हैं। 
खेल
की शुरुआत 
हॉकी खेल का उद्गम सदा से ही विवाद का विषय रहा
है। एक मत के अनुसार ईसा से दो हजार वर्ष पूर्व हॉकी का खेल फारस में खेला जाता था।
यह खेल  आधुनिक हॉकी से भिन्न था। कुछ समय बाद
यह खेल परिवर्तित होकर युनान  ( वर्तमान ग्रीस)
पहुंचा जहा यह इतना प्रचलित हुआ कि यह युनान की ओलंपिक प्रतियोगिता में खेला जाने लगा।
धीरे-धीरे रोमवासियो में भी इस खेल के प्रति 
इतना रुझान बढा की रोम के युनान  ओलंपिक
में इसे खेल जाने लगा। हॉकी की शुरुआत आरंभिक सभ्यताओ के युग से मानी जाती है। हॉकी
खेलने के अरबी, यहरदी, र्फारसी और रोमन
तरीके रहे और दक्षिण अमेरिका के एज़टेक इंडियनों द्वारा छडी से खेला जाने वाला एक खेल
के प्रमाण भी मिलते हैं।  आरंभिक खेलों हलिंग
और शिंटी जैसे खेलों के रूप में भी हॉकी को पहचाना गया है। मध्य काल में छडी से खेला
जाने वाला एक फॉसीसी खेल हॉकी  की उत्पति शायद
इसी से हुई है। 
19 वी शताब्दी के प्रारंभिक वषों में भारत में
इस खेल के विस्तार हुआ , जिसक श्रेय मुख्य रूप से ब्रिटेश
सेना को जाता है। आधुनिक युग में पहली बार ओलंपिक में हॉकी
29 अक्तूबर, 1908 में लंदन में खेली गई ।
इसमें छह टीमें थीं ।1924  में ओलपिंक में अंतर्राष्ट्रीय
कारणों से यह खेल शामिल नहीं हो सका। ओलंपिक से हॉकी के बाहर हो जाने के बाद जनवरी, 1924 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन) की स्थापना हुई। हॉकी का खेल एशिया में भारत में सबसे पहले खेला गया।
पहले दो एशियाई खेलों में भारत को खेलने
का अवसर नहीं मिल सका, किन्तु तीसरे एशियाई खेलों में भारत को
पहली बार ये अवसर हाथ लगा। हॉकी में भारत का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है।  भारत ने हॉकी में अब तक ओलंपिक में आठ स्वर्ण, एक और
दो कांस्य पदक जीते हैं।
भारत में हॉकी 
भारत में यह खेल सबसे पहले कलकत्ता में खेला गया
। भारत टीम का  सर्वप्रथम वहीं संगठन हुआ। 26 मई को सन् 1928 में भारतीय हाकी टीम प्रथम बार ओलिम्पिक
खेलों में सम्मिलित हुई और विजय प्राप्त की। 1932 में लॉस एंजेलिस ओलम्पिक में जब भारतीयों ने
मेज़बान टीम को 24-1 से हराया। तब से अब तक की सर्वाधिक अंतर
से जीत का कीर्तिमान भी स्थापित हो गया। 24 में से 9 गोल दी भाइयों ने किए, रूपसिंह ने 11 गोल दागे औरध्यानचंद ने शेष गोल
किए। 
1936 के बर्लिन ओलम्पिक में इन भाइयों के नेतृत्व में भारतीय
दल ने पुनः स्वर्ण 'पदक जीता' जब उन्होंने
जर्मनी को हराया। बर्लिन ओलम्पिक में ध्यानचंद असमय बाहर
हो गये और द्वितीय विश्व युद्ध ने भी इस विश्व स्पर्द्धा को बाधित कर दिया। आठ वर्ष
के बाद ओलम्पिक की पुनः वापसी पर भारत की विश्व हॉकी चैंपियन की स्थिति में कोई परिवर्तन
नहीं आया। एक असाधारण कार्य, जो विश्व में कोई भी अब तक दुहरा
नहीं पाया है। अन्य टीमों के उभरने के संकेत सर्वप्रथम मेलबोर्न में दिखाई दिए,
जब भारत को पहली बार स्वर्ण पदक के लिए संधर्ष करना पड़ा। 
हॉकी ओलम्पिक में भारत का प्रदर्शन
हॉकी के खेल में भारत ने हमेशा विजय पाई है। इस स्वर्ण युग के दौरान
भारत ने 24 ओलम्पिक मैच खेले और सभी 24 मैचों
में जीत कर 178 गोल बनाए तथा केवल 7 गोल
छोड़े। भारत के पास 8 ओलम्पिक स्वर्ण पदकों का उत्कृष्ट रिकॉर्ड
है। भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग 1928-56 तक था जब भारतीय हॉकी
दल ने लगातार 6 ओलम्पिक स्वर्ण पदक प्राप्त किए। 1928
तक हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल बन गई थी और इसी वर्ष एमस्टर्डम ओलम्पिक
में भारतीय टीम पहली बार प्रतियोगिता में शामिल हुई। भारतीय टीम ने पांच मुक़ाबलों
में एक भी गोल दिए बगैर स्वर्ण पदक जीता। जयपाल सिंह की कप्तानी में टीम ने,
जिसमें महान खिलाड़ी ध्यानचंद भी शामिल थे
, अंतिम मुक़ाबले में हॉलैंड को आसानी से हराकर स्वर्ण पदक जीता।
भारतीय हॉकी संघ के इतिहास की शुरुआत ओलम्पिक में अपनी स्वर्ण गाथा शुरू करने के लिए की गई।
इस गाथा की शुरुआत एमस्टर्डम में 1928 में हुई और भारत लगातार
लॉस एंजेलस में 1932 के दौरान तथा बर्लिन में 1936 के दौरान जीतता गया और इस प्रकार उसने ओलम्पिक में स्वर्ण पदकों की हैटट्रिक
प्राप्त की।
खेलने
के नियम 
यह
खेल चौकोर मदैान पर 11 खिलाडियों वाले दो दलों के बीच खेला जाता है। यह मैदान 91.4
मीटर लंबा और 55 मीटर चौडा होताहै , इसके केंद्र
में एक केंद्रीय रेखा व 22.8 मीटर की दो अन्य रेखाएँ खिची होती हैं। गोल की चौडाई
3.66 मीटर व ऊँचाई 2.13 मीटर होती है। सामान्य खेल संयोजन
में पांच खिलाड़ी फॉरवर्ड, तीन हाफबैक, दो फुलबैक और एक गोलकीपर होते हैं। 
एक खेल में 35 मिनट के दो भाग होते
है, जिनमें 5 से 10 मिनट का अंतराल होता है । गोलकीपर 30 गज़ के घेरे (डी) में गेंद को पैर से मारने अथवा उसे पैरों या शरीर
की मदद से रोकने की इजाज़त होती है। अन्य सभी खिलाड़ी गेंद को केवल स्टिक से ही रोक
सकते हैं। मैदान के केंद्र से पास-बैक द्वारा, जिसमें एक खिलाड़ी अपनी टीम के अन्य खिलाड़ीयों की ओर गेंद फेंकता है,
गेंद पुनः उस तक पहुँचाई जाती है , खेल प्रारंभ
होता है। किसी को चोट लगने पर या तकनीकी कारण से खेल रुकने पर, दोनों दलों द्वारा क्रमशः एक-एक पेनल्टी करने पर या खिलाड़ीयों
के कपड़ों में गेंद के उलझने पर खेल को फिर से शुरू करने के लिए फ़ेस-ऑफ़ या बुली का प्रयोग किया जाता है। 
फ़ेसऑफ़ में दोनों टीमों के एक-एक
खिलाड़ी आमनेसामने खड़े होते है और गेंद उनके बीच मैदान पर होती है। एक के बाद एक ज़मीन
पर आघात करने के बाद दोनों खिलाड़ी एक-दूसरे की स्टिक को आपस
में तीन बार टकराते हैं, प्रत्येक खिलाड़ी गेंद को मारने का प्रयास
करता है और इस प्रकार खेल फिर से शुरू हो जाता है। गेंद के मैदान से बाहर जाने की दशा
में खेल को फिर से शुरू करने के विभिन्न तरिके हैं। गेंद से खेलते वक़्त हॉकी को कंधों
से ऊपर उठाना नियमों के विरुद्ध होता है। गेंद को हॉकी से रोकना उसी तरह की ग़लती है,
जैसे गेंद को शरीर या पैरों से रोकना। 
अंडरकटिंग के साथ ही विरोधी की हॉकी में अपनी हॉकी फंसाकर (हुकिंग) गेंद को तेज़ी से ऊपर उछालते
हुए खेल को ख़तरनाक बनाना भी ग़लत है। अंत में अवरोधन का नियम है।  एक खिलाड़ी को अपनी स्टिक या शरीर के किसी भी भाग
को अपने विरोधी और गेंद के बीच लाकर अवरोध खड़ा करने अथवा विरोधी व गंद के बीच दौड़कर
बाधा डालने की अनुमति नहीं होती है। अधिकतर ग़लतियों की सजा विरोधी दल को ,
जिस स्थान पर नियम तोड़ा गया,  वहाँ से एक फ़्री हिट के रूप में दी जाती है। खेल
के प्रत्येक भाग के लिए एक निर्णायक ( रेफ्री )होता है।
गेंद - हॉकी में इस्तेमाल होने वली यह गेंद मूलतः क्रिकेट
की गेंद थी,  लेकिन प्लास्टिक
की गेंद भी अनुमोदित है। इसकी परिधि लगभग 30 सेमी होती है।
हॉकी स्टिक- हॉकी स्टिक लगभग एक मीटर लंबी और
340 से 790 ग्राम होती है। स्टिक
का चपटा छोर ही गेंद को मारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
महिला हॉकी
विक्टोरियाई युग में खेलों में महिलाओं पर प्रतिबंध होने के बावजूद महिलाओं
में हॉकी की लोकप्रियता बहुत बढ़ी। यद्यपि 1895 से ही महिला टीमें
नियमित रूप से मैत्री प्रतियोगिताओं में भाग लेती रही , लेकिन
गंभीर अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की शुरुआत 1970 के दशक तक
नहीं हुई थी। 1974 में हॉकी का पहला महिला विश्व कप आयोजित किया
गया और 1980 में महिला हॉकी ओलम्पिक में शामिल की गई। 1927
में अंतर्राष्ट्रीय नियामक संस्था,  इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ विमॅन्स हॉकी
एसोसिएशन का निर्माण हुआ था। 1901 में अमेरिका में कांसटेंस एम.के.
एप्पेलबी द्वारा इस खेल की शुरुआत हुई और मैदानी हॉकी धीरे-धीरे यहाँ की महिलाओं में
लोकप्रिय मैदानी टीम खेल बन गई व विद्यालयों , महाविद्यालयों
तथा क्लबों में खेली जाने लगी।
खेल
के माने जाने खिलाड़ी वह पुरस्कार  
मेजर
ध्यानचंद जिन्होने हॉकी खेल के प्रति ना सिर्फ अपना सब कुछ
अप्रित कर दिया बल्कि भारत के लिए कई ऐसे रिकार्ड बनाये जो भारत के लिए एक सपना था।
उन्हें १९५६ में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान  पद्मभूषण से सम्मानित किया
गया था। उनका जन्म 29 अगस्त, 1905 इलाहाबाद, संयुक्त प्रांत,
ब्रिटिश भारत में हुआ था। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस
घोषित किया गया है । इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार
अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। कई
अन्य खिलाड़ी भी हैं ,जिन्होने हॉकी में अपना नाम किया
है जिनमें से धनराज पिल्ले , केडी सिंह बाबू , बलबीर सिंह, मनप्रीत आदि
प्रमुख किलाड़ी हैं।
कैरियर
भारत ने ओलंपिक हॉकी में लगातार छह बार स्वर्ण पदक (1928-1956) जीता है। घरेलू स्तर पर कई टूर्नामेंट भी आयोजित
किए जाते हैं। इसमेंध्यानचंद्र टूर्नामेंट भी शामिल हैं। भले ही भारतीय हॉकी की स्थिति
अभी कुछ ठीक न हो, लेकिन आने वाले दिनों इसकी तस्वीर बदल सकती
है। आज आप चाहें किसी भी खेल से क्यों न जुड़े हों, यदि आप चैम्पियन
हैं, तो आप पर पैसों की बरसात हो सकती हैं। इसका हालिया उदाहरण
है अभिनव बिंद्रा, जिनपर आज करोड़ों रुपये की बरसात हो रही है।
साथ ही, कई पुरस्कारों से भी नवाजा जा रहा है। मेहनत करके आप
इस खेल में अपना करियर आसानी से बना सकते हैं। 
 
 
 
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