अनूठा स्वदेशी खेल
खो-खो
खो–खो अत्यधिक तंदुरुस्ती, कौशल, गति, ऊर्जा और
प्रत्युत्पन्नमति की मांग करने वाला खेल है। यह पहला ऐसा खेल है जो किसी भी तरह की
सतह पर खेला जा सकता है। खो–खो ना सिर्फ प्रचीतम खेले मे से एक है बल्कि यह लोग के
दिलो जान पर बसने वाला एक मात्र खेल है।  
खेल का इतिहास 
खो-खो एक भारतीय मैदानी खेल है। इस खेल में मैदान के दोनो ओर दो
खम्भों के अतिरिक्त किसी अन्य साधन की जरूरत नहीं पडती। यह एक अनूठा स्वदेशी खेल
है, जो
युवाओं में ओज और स्वस्थ संघर्षशील जोश भरने वाला है। यह खेल पीछा करने वाले और
प्रतिरक्षक, दोनों
में अत्यधिक तंदुरुस्ती, कौशल, गति, ऊर्जा और प्रत्युत्पन्नमति की
मांग करता है। खो-खो किसी भी तरह की सतह पर खेला जा सकता है। खो-खो मैदानी खेलों के सबसे प्रचीनतम रुपों
में से एक जिसका उद्भव प्रागैतिहासिक भारत में माना जा सकता है। मुख्य रुप से आत्मरक्षा, आक्रमण व प्रत्याक्रमण के कौशल को विकसित करने
के लिए इसकी खोज हुई थी। इसके अतिरिक्त इस खेल के उदभव एंम विकास का कोई खास सबूत नही है। 
खेल का मैदान
खो-खो का क्रीड़ा
क्षेत्र आयताकार होता है। यह 29
X 16 मीटर होता है। मैदान के अंत में दो आयताकार
होते हैं। आयताकार की भुजा 16 मीटर और दूसरी भुजा 2.75 मी. होती है। इन
दोनों आयताकारों के मध्य में दो लकड़ी के स्तम् होते हैं। केन्द्रीय गली 23.50 मी. लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी
होती है। स्तम्भ या पोस्ट - मध्य लेन के अंत में दो स्तम्भ गाडे जाते है जो
भूमि से 1.20 से 1.25 सैंटीमीटर के बीच ऊँचे होते हैं। इनकी परिधि 30 सैंटीमीटर से अधिक
नहीं हो सकती। दोनों स्तम्भों के मध्य में केन्द्रीय गली होती है। यह 23.50 मी. लम्बी और
सैंटीमीटर चौड़ी होती है। प्रत्येक आयताकार 15 मी. लम्बा और 30 सैंटीमीटर चौड़ा
होता है वह केन्द्रीय लेन को समकोण (90°)
पर काटता है। यह स्वयं भी दो सर्द्धकों में
विभाजित होता है। इसे क्रॉस-लेन कहते हैं।  केन्द्र से गुजरती हुई क्रॉस-लेन और केन्द्रीय
लेन के समानांतर रेखा को स्तम्भ रेखा कहते हैं।  स्तम्भ रेखा का बाहरी क्षेत्र आयताकार कहलाता
है। केन्द्रीय लेन तथा बाहरी सीमा निश्चित करने वाली दोनों आयताकारों की रेखाओं से
7.85 मी. दूर दोनों पार्श्व रेखाओं को परिधियाँ कहते हैं।
खेलने के नियम 
क्रीड़ा क्षेत्र
को आकार में वर्णित अनुसार चिह्नित होना चाहिए। दौड़ने या चेज़र बनने का निर्णयटॉस द्वारा किया
जाता है। एक धावक (चेज़र) के अतिरिक्त अन्य सभी धावक
वर्गों में इस प्रकार बैंठेगे कि दो साथ-साथ बैठे धावकों का मुँह एक ओर नहीं होता
है। नौंवा धावक पीछा करने के लिए किसी एक स्तम्भ के पास खड़ा होता है। सक्रिय धावक के शरीर का कोई भी भाग केन्द्रीय
गली से स्पर्श नहीं करता वह स्तम्भों में अन्दर से केन्द्रीय रेखा पार नहीं कर
सकता। खो' बैठे हुए धावक के पीछे से समीप जा कर ऊँची और स्पष्ट आवाज़ में देनी चाहिए।
बैठा हुआ धावक बिना 'खो' प्राप्त किए नहीं उठ सकता और न ही वह अपनी टाँग
या भुजा फैला कर स्पर्श प्राप्त करने की कोशिश करता है। यदि कोई सक्रिय धावक उस वर्ग की केन्द्रीय गली
से बाहर चला जाए जिस पर कोई धावक बैठा है या यदि वह निष्क़्रिय धावक की पकड़ छोड़
देता है, तो सक्रिय धावक उसे खो नहीं देता। 
कोई सक्रिय धावक 'खो' देने के लिए वापिस
नहीं आ सकता। नियम 4,
5 तथा 6 का उल्लघंन फाऊल होता है। इस पर सक्रिय धावक उस
दिशा के विपरीत जाने के लिए बाध्य किया जाएगा जिस दिशा में वह जा रहा रही थी।
निर्णायक की सीटी के संकेत के साथ सक्रिय धावक संकेतित दिशा की ओर चल देता है। यदि
इस तरह रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाता। सक्रिय धावक 'खो' देने के पश्चात
तुरंत 'खो' पाने वाले धावक का स्थान ग्रहण कर लेता है। खो देना और साथ बैठे धावक के लोना
एक साथ होना आवश्यक होता है। ठीक खो लेने के
पश्चात यदि सक्रिय धावक का पहला क़दम सैंटर लेन को छूता हो तो वह फाऊल नहीं है। 
यदि केंद्रीय लेन
को क्रॉस करे तो वह फाऊल है। दिशा लेने के
पश्चात सक्रिय धावक पुन: क्रॉस लाइन में आक्रमण कर सकता है और इस को फाऊल नहीं
माना जाता। सक्रिय धावक किसी एक स्तम्भ की ओर दिशा ग्रहण
करने के पश्चात स्तम्भ रेखा की उसी दिशा में जाएगा जब तक वह खो नहीं करता। सक्रिय
धावक केन्द्र गली से दूसरी ओर नहीं जाएगा जब तक कि वह स्तम्भ के चारों ओर बाहर से
न घूम ले। यदि कोई सक्रिय धावक स्तम्भ छोड़ देता है तो वह
स्तम्भ छोड़ने वाले स्थान की ओर वाली केन्द्रीय लेन पर रहते हुए दूसरे स्तम्भ की
दिशा में जाता है। धावक इस प्रकार बैठेंगे कि धावकों के मार्ग में
रुकावट न पहुँचे यदि ऐसी रुकावट से कोई रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना
जाता है। 
दिशा ग्रहण करने
वाले और मुँह मोड़ने वाले नियम आयताकार क्षेत्र में लागू न होंते है। पारी के दौरान सक्रिय धावक सीमा से बाहर जासकता
है परंतु सीमा से बाहर उसे दिशा लेने और मुँह मिड़ने के नियमों का पालन करना होता
है। कोई भी रनर बैठे हुए धावक को छू नहीं सकता। यदि
वह ऐसा करता है तो उसे चेतावनी दी जाती है। यदि वह फिर उस हरकत को दोहराता है तो
उसे मैदान से बाहर भेज दिया जाता है। अभिप्राय यह कि आऊट दिया जाता है। यदि रनर के दोनों पैर सीमा से बाहर हों तो वह
आऊट हो जाता है। यदि सक्रिय चेज़र बिना किसी नियम का उल्लंघन
किए रनर को छू लेता है तो रनर आऊट माना जाता है। 
मैच सम्बन्धी कुछ अन्य नियम
प्रत्येक टीम में
खिलाड़ियों की संख्या 9 होती है और 8 खिलाड़ी अतिरिक्त
होते हैं। प्रत्येक पारी में नौ-नौ मिनट छूने तथा दौड़ने का काम बारी-बारी से होता
है। प्रत्येक मैच में 4 पारियाँ होती है। दो पारियों छूने की और 2 पारियाँ दौड़ने की
होती हैं। रनर खेलने के क्रमानुसार स्कोर के पास अपने नाम दर्ज कराएंगे। पारी के
आरम्भ में पहले तीन खिलाड़ी सीमा के अन्दर होते है। इन तीनों के आऊट होने के पश्चात तीन और
खिलाड़ी 'खो' देने से पहले अन्दर आ जाएंगे। जो इस अवधि में प्रवेश न कर सकेंगे उन्हें आऊट
घोषित किया जाता है। अपनी बारी के बिना प्रविष्ट होने वाला खिलाड़ी भी आऊट घोषित
किया जाता है। यह प्रक्रिया पारी के अंत तक जारी रहता है।  
तीसरे रनर को
निकालने वाला सक्रिय धावक नए प्रविष्ट होने वाले रनर का पीछा नहीं करेगा, वह 'खो' देता। प्रत्येक
टीम खेल के मैदान के केवल एक पक्ष से ही अपने रनर प्रविष्ट करेगी। धावक तथा
प्रत्येक रनर समय से पहले भी अपनी पारी समाप्त कर सकते हैं। केवल धावक या रनर टीम
के कप्तान के अनुरोध पर ही अम्पायर खेल रोक कर पारी समाप्ति की घोषणा करेगा। एक
पारी के बाद 5 मिनट तथा दो पारियों के बीच 9 मिनट का ब्रेक होता है। 
धावक पक्ष को
प्रत्येक रनर के आऊट होने पर एक अंक मिलता है। सभी रनरों के समय से पहले आऊट हो
जाने पर उनके विरुद्ध एक 'लोना' दे दिया जाता है। इसके पश्चात वह टीम उसी क्रम
से अपने रनर भेजती है। लोना प्राप्त करने के लिए कोई अतिरिक्त अंक नहीं दिया जाता
है। पारी क समय समाप्त होने तक इसी ढंग से खेल जारी रहेगी। पारी के दौरान रनरों के
क्रम में परिवर्तन नहीं किया जा सकता ।
मैच के लिए आला अधिकारी 
मैच मे दो अम्पायर होते है वह एक –
एक  रैफरी , टाइम-कीपर , स्कोरर
, होता है  
अम्पायर - अम्पायर लॉबी से बाहर खड़ा होगा और
केन्द्रीय गली द्वारा विभाजित अपने स्थान से खेल की देख रेख करेता है। वह अपने
अर्द्धक में सभी निर्णय देता है। वह निर्णय देने में दूसरे अर्द्धक के अम्पायर की
सहायता कर सकता है।
रैफरी - वह अम्पायरों की उनके कर्त्तव्य पालन में
सहायता करता है और उनमें मत भेद होने की दिशा में अपना फैसला देता है। वह खेल में
बाधा पहुँचाने वाले, असभ्य व्यवहार करने वाले नियमों का उल्लंघन
करने वाले खिलाड़ियों को दण्ड भी देता है।
टाइम-कीपर - टाइप-कीपर का काम समय का रिकार्ड रखना है। वह
सीटी बजाकर पारी के आरम्भ या समाप्ति का संकेत देता है ।  
स्कोरर -  इस बात का ध्यान रखता है कि खिलाड़ी
निश्चित क्रम से मैदान में उतरते हैं। वह आऊट हुए रनरों का रिकार्ड रखता है। प्रत्येक
पारी के में वह स्कोर शीट पर अंक दर्ज करता है और धावकों का स्कोर तैयार करता है।
मैच के अंत में वह परिणाम तैयार करता है और रैफरी
 को सुनाने के लिए देता है।
भारत मे होने वाले खो–खो की स्पृर्धाये
राष्ट्रीय स्पर्धा, राष्ट्रीय कुमार स्पर्धा, राष्ट्रीय
निम्नस्तरीय कुमार स्पर्धा, आंतरशालेय (उच्च्माध्यमिक) स्पर्धा, आंतरशालेय (माध्यमिक) स्पर्धा, आंतरशालेय प्राथमिक स्पर्धा,
राष्ट्रीय महिला स्पर्धा, आंतर्विद्यापीठ स्पर्धा यह तमाम स्पृर्धाये जो भारत मे
होती है। 
खेल के प्रमुख खिलाडी
भारत से पनपा यह खेल आज भारत में काफी लोकप्रियता से खेला
जाता है। इस खेल मे कई खिलाड़ियो ने अपना वह अपने देश राज्य का नाम बखोबी रोशन
किया है। रीती अब्रहम, 1997 आलम्पिक मे सबसे लम्बी छलाग लगाने वाली राष्ट्रय
खिलाड़ी रह चुकी है इसके लिए इन्हे अर्जुन खेल पुरस्कार से नवाजा गया था। इसके
अलावा अन्य कई खिलाडियो को भी इस पुरस्कार से नवाजा जा चुका है जिनमे से सुधीर
पर्व, सुसमा सरोलकर, हेमेंत ठकालकर, वीना पर्व, सुरेखा द्रविड आदि। 
कैरियर
खेल के मनोरंजन वाले
पहलू, मास मीडिया के प्रसार और अवकाश के लिए समय
बढ़ने के साथ-साथ खेलों में व्यावसायिकता बढ़ी है। इसकी वजह से कुछ-कुछ संघर्ष के
हालात भी पैदा हुए हैं,
जहां भुगतान का चेक मनोरंजक पहलुओं से ज्यादा अहम हो जाता है या
जहां खेलों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफेदार और लोकप्रिय बनाने की कोशिश की जाती है
और इस तरह कुछ महत्वपूर्ण परंपराएं लुप्त होती जाती हैं।
खेल को खेलने से आप भी
एक सेलिब्रिटी की हैसियत हासिल कर लेते है। आप जब खेलते है तो ना सिर्फ अपना ब्लकि
अपने देश का नाम भी रोशन करते है। खो–खो मे करियर बनाना काफी आसान तो नही है पर
मुशकिल भी नही है आप इस खेल मे अपने आपको एक बार अवश्य अजमाये आपको पता भी नही
होगा की आप कब एक अच्छे खिलाड़ी बन गये। 
 
 
 
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