पहलवानो की कबड़्डी 
हुर कबड्डी, कबड्डी कबड्डी, कबड्डी, यह शब्द शायद आपको सुना–
सुना सा लग रहा होगा, जी आप बिलकुल सही सोच रहे है, जनाब़ आपने जरुर शुना होगा यह
शब्द हमारे पुराने खेल कबड्डी से है। पुराने समय में लोग इस खेल को ज्यादा ही
महत्वता देते थें, परन्तु आज इसकी तसवीर फीकी पड़ती नजर आ रही है लोगो के बीच घटती
रही कबड्डी का महत्व कही न कही एक बड़ी चिंता का विषय है।
कब हुई खेल की शुरुआत 
कबड्डी भारत का प्रसिद्ध एवं प्राचीन जन
खेल है।  जिसे ग्रामों और नगरों में
आबालवृद्ध प्राय: अपनी अवस्था के लोगों की टोलियाँ बनाकर खेलते हैं। द्यपि कोई औपचारिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है, पर इस खेल
का उद्भव प्रागैतिहासिक काल से माना जा सकता है, जब मनुष्य में आत्मरक्षा या शिकार
के लिए प्रतिवर्ती क्रियाएँ विकसित हुईं। इस बात का उल्लेख एक ताम्रपत्र में है कि
भगवान कृष्ण और उनके
साथियों द्वारा कबड्डी से मिलता-जुलता एक खेल खेला जाता था। महाभारत में
कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान एक रोचक प्रसंग में अर्जुन के
पुत्र अभिमन्यु, को शत्रु के
चक्रव्यूह को भेदने के लिए कहा गया। प्रत्येक चक्र कौरवों सात
युद्ध वीरों से सुसज्जित था। यद्यपि अभिमन्यु व्यूह को भेदने में सफल हो गए,
मगर वह बाहर आने में असमर्थ रहे। ऋषि-मुनियों द्वारा चलाए जा रहे
गुरुकुलों में भी कबड्डी खेली जाती थी, जहाँ शिष्य शारीरिक
व्यायाम के लिए इसे खेलते थे।
कबड्डी
की पहली प्रतियोगिता
20वीं सदी के पहले
दो दशकों में महाराष्ट्र के
विभिन्न सामाजिक संगठनों ने कबड्डी के खेल को औपचारिकता व लोकप्रियता प्रदान करने
में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1918 में कुछ सामान्य नियम बनाए
गए और कुछ प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं। लेकिन कबड्डी के नियमों के औपचारिक गठन और
प्रकाशन का ऐतिहासिक क़दम सन् 1923 में भारतीय ओलिंपिक संघ के
तत्वावधान में उठाया गया। इस स्वदेशी खेल का पहला अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन एक खेल
संगठन, हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल ने 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में
किया। 
पहली
प्रतियोगिता कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के टाला बगीचे में आयोजित की गई। 1950 में भारतीय कबड्डी महासंघ
की स्थापना हुई। पुरुषों के लिए पहली राष्ट्रीय प्रतियोगिता 1952 में मद्रास (वर्तमान
चेन्नई) में आयोजित की गई, जबकि महिलाओं की पहली राष्ट्रीय
प्रतियोगिता 1955 में कलकत्ता में हुई। लगभग 1938 1972 ग़ैर व्यावसायिक कबड्डी
संघ (एमेच्योर कबड्डी फ़ेडरेशन) की स्थापना हुई और प्रतिप्रयोगिताएँ शुरू की गईं। 1974 में भारतीय दल ने खेल को
लोकप्रिय बनाने के लिए बांग्लादेश का दौरा किया। 1978 में बांग्लादेश के दल
ने भारत के विरुद्ध टेस्ट शृंखला खेलने के लिए यहाँ का दौरा किया। दक्षिण एशिया
क्षेत्र में इस खेल के विकास का महत्त्वपूर्ण मोड़ था, एशियाई
ग़ैर व्यावसायिक कबड्डी संघ (एशियन एमेच्योर कबड्डी फ़ेडरेशन) की स्थापना। पहली
एशियाई कबड्डी
प्रतियोगिता 1980 में कलकत्ता में आयोजित की
गई। 1982 में नई दिल्ली में हुए
एशियाई खेलों में कबड्डी का प्रदर्शन किया गया। 1985 से इसे दक्षिण एशियाई संघीय
खेलों में शामिल कर लिया गया। 1990 में बीजिंग में हुए एशियाई
खेलों में कबड्डी ने एक प्रतियोगी खेल के रूप में पदार्पण किया।
खेलने के नियम 
यह खेल
दो पंक्षो के बीच खेल जात है, प्रत्येक पक्ष में खिलाड़ियों की संख्या बारह होती
है। एक साथ मैदान में सात खिलाड़ी ही उतर सकते है। खेल की अवधि पुरुषों के लिए 20 मिनट तथा स्त्रियों व जूनियरों के लिए 15 मिनट की दो
अवधियाँ होती है। इन दोनों अवधियों के बीच 5 मिनट का
मध्यांतर होता है। प्रत्येक आउट होने वाले विपक्षी के लिए दूसरे पक्ष को एक अंक
मिलता है। 'लोना' प्राप्त करने वाले
पक्ष को दो अंक मिलेंते है। 
खेल
की समाप्ति पर सबसे अधिक अंक प्राप्त करने वाले पक्ष को विजयी घोषित किया जाता है।
ग्रन्थि होने पर पाँच-पाँच मिनट की दो अतिरिक्त अवधियों के लिए खेल होता है। इन
अवधियों में खेल दूसरे अर्द्धक के अंत वाले खिलाड़ी जारी होते हैं। यदि 50 मिनट के खेल के पश्चात खेल टाई होता है तो वह टीम जीतेगी जिसने पहले अंक
प्राप्त किये है।
लोना -जब एक टीम के सारे खिलाड़ी आउट हो जाएं तो
विरोधी टीम को 2 अंक अधिक मिलते हैं। उसको हम लोना कहते हैं। प्रतियो गिता निम्नलिखित दो
प्रकार के होती हैं।
नाक
आउट- इसमें जो टीम हार जाती है, वह टीम प्रतियोगिता से
बाहर हो जाती है।
लीग- इसमें यदि
कोई टीम हार जाती है, वह टीम बाहर नहीं होगी। उसे अपने ग्रुप
के सारे मैच खेलने पड़ते हैं। जो टीम मैच जीतती है उसे दो अंक दिये जाते हैं। मैच
बराबर होने पर दोनों टीमों को एक एक अंक दिया जाता है। हारने वाली टीम को शून्य
अंक मिलता है। यदि दोनों टीमों का मैच बराबर रहता है और अतिरिक्त समय भी दिया जाता
है या जिस टीम ने खेल आरम्भ होने से पहले अंक लिया होगा वह टीम विजेता घोषित की जाती
है। यदि दोनों टीमों का स्कोर शून्य है तो जिस टीम ने टॉस जीता हैउसे  विजेता घोषित की जाता है। किसी कारणवश मैच न
होने की दशा में मैच पुन: खेला जा सकता है। दोबारा किसी और दिन खेल जाने वाले मैच
में दूसरे खिलाड़ी बदले भी जा सकते हैं। परंतु यदि मैच उसी दिन खेला जाए तो उसमे वही
खिलाड़ी खेलेंगे जो पहले खेले थे। यदि किसी खिलाड़ी को चोट लग जाए तो उस पक्ष का
कप्तान 'समय आराम' पुकारेगा, परंतु समय आराम की अवधि दो मिनट से अधिक नहीं होगी तथा चोट लगने वाला
खिलाड़ी बदला जा सकता है। 
खेल
की दूसरी पारी शुरू होने से पहले दो खिलाड़ी बदले जा सकते हैं। खेल शुरू होने के
समय एक दो से या कम से कम खिलाड़ियों से भी खेल शुरू हो सकता है। जो खिलाड़ी खेल
शुरू होने के समय उपस्थित नहीं होते खेल के दौरान किसी भी समय मिल सकते हैं। रैफरी
को सूचित करना ज़रुरी है। यदि चोट गम्भीर हो तो उसकी जगह दूसरा खिलाड़ी खेल सकता
है   किसी भी टीम में पाँच खिलाड़ियों
से कम होने की दशा में शुरू किया जा सकता है, परंतु-टीम के
सभी खिलाड़ी आउट होने पर अनुपस्थित खिलाड़ी भी आउट हो जाएंगे और विपक्षी टीम को 'लोना' दिया जाएंगा। यदि अनुपस्थित खिलाड़ी आ जाएं तो
वे रैफरी की आज्ञा से खेल में भाग ले सकते हैं। अनुपस्थित खिलाड़ी के स्थानापन्न
कभी भी लिए जा सकते हैं। परंतु जब वे इस प्रकार लिए जाते हैं तो मैच के अंत तक
किसी भी खिलाड़ी को बदला नहीं जा सकता। मैच पुन: खेले जाने पर किसी भी खिलाड़ी को
बदला नहीं जा सकता। 
खेल
के दौरान कप्तान या नेता के अतिरिक्त कोई भी खिलाड़ी अनुदेश न देगा। कप्तान अपने
अर्द्धक में ही अनुदेश दे सकता है। यदि खिलाड़ी कबड्डी शब्द का उच्चारण ठीक प्रकार
से नहीं करता तथा रैफरी द्वारा एक बार चेतावनी दिए जाने पर वह बार-बार ऐसा करता है
तो दूसरी टीम को एक प्वाइंट दे दिया जाएगा परंतु वह खिलाड़ी बैठेगा नहीं। यदि कोई
खिलाड़ी आक्रमण करने जा रहा है और उस टीम का कोच या अधिकारी ऐसा करता है तो रैफरी
दूसरी टीम को विरुद्ध एक प्वाइंट अंक दे देता है।
खेल अवधि
यह
खेल आमतौर पर 20-20 मिनट के दो हिस्सों में खेला जाता है। हर हिस्से में टीमें
पाला बदलती हैं और इसके लिए उन्हें पांच मिनट का ब्रेक मिलता है। हालांकि आयोजक
इसके एक हिस्से की अवधि 10 या 15 मिनट की भी कर सकते हैं। हर टीम में 5-6 स्टापर
(पकड़ने में माहिर खिलाड़ी) व 4-5 रेडर (छूकर भागने में माहिर) होते हैं। एक बार
में सिर्फ चार स्टापरों को ही कोर्ट पर उतरने की इजाजत होती है। जब भी स्टापर किसी
रेडर को अपने पाले से बाहर जाने से रोकते हैं उन्हें एक अंक मिलता है। लेकिन अगर
रेडर उन्हें छूकर भागने में सफल रहता है तो उसकी टीम को अंक मिल जाता है। मैचों का
आयोजन उम्र और वजन के आधार पर किया जाता है, परंतु आजकल
महिलाओं की भी काफी भागेदारी हो रही है। पूरे मैच की निगरानी सात लोग करते हैं। एक
रेफ़री, दो अंपायर, दो लाइंसमैन,
एक टाइम कीपर और एक स्कोर कीपर । पिछले तीन एशियाइ खेल में भी कबड्डी को शामिल
करने से जापान और कोरिया जैसे देशों में भी कबड्डी
की लोकप्रियता बढी है।
कबड्डी विश्व कप पर एक नजर 
कबड्डी
का विश्व कप सबसे पहले 2004 में खेला गया था। उसके बाद 2007 और 2010 और 2012 में
हुआ। अभी तक भारत सभी में विजेता रहा है।
खेल मैदान 
खेल का मैदान समतल तथा नर्म होता है। यह मिट्टी, खाद या
बुरादे का होता है। पुरुषों के लिए मैदान का आकार 121/2 मी X
10 मी होता है। केन्द्रीय रेखा इसे दो समान भागों में बाँटती है।
प्रत्येक भाग 10 मी X 61/4 मी. होता
है। स्त्रियों तथा जूनियर्स के लिए मैदान का नाप 11 मी. X
8 मी. होता है। मैदान के दोनों ओर एक मीटर चौड़ी पट्टी होगी जिसे
लॉबी कहते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में केन्द्रीय रेखा से तीन मीटर दूर उसके
समानांतर मैदान की पूरी चौड़ाई के बराबर रेखाएं खीची जाती है। इन रेखाओं को बॉक
रेखाएं कहते हैं। केन्द्रीय रेखा स्पष्ट रुप से अंकित की जानी चाहिए। केन्द्रीय
रेखा तथा अन्य रेखाओं की अधिकतम चौड़ाई 5 सैंटीमीटर या 2"
होनी चाहिए। साइड रेखा और अंत रेखा के बाहर की ओर 4 मीटर स्थान खुला छोड़ना आवश्यक है। बैठने का ब्लॉक अंत रेखा से दो मीटर
दूर होता है। पुरुषों के लिए बैठने का ब्लॉक अंत रेखा से जूनियर्स के लिए 2
मीटर X 6 मीटर होता है।
कबड्डी के खिलाड़ी
कबड्डी क्या है कैसे खेलते है आदि चीजे हम पहले ही जान चुके
है। अब जानते कि इस खेल के प्रमुख खिलाड़ी कौन– कौन है। सुखबीर सरवन, निक्कु
पानडरी, संदीप, सोनु जंप, केशरी शर्मा, बीरा, सोहन सीरा, गोल्डी आदि खिलाड़ियो ने
इस खेल को सवारा है, ना सिर्फ भारत में अपितु पूरे विश्व मे इन्होने अपना वह अपने
दश का नाम ऊंचा किया है। 
कबड्ड़ी  के
स्टेडियम – नेहरु स्टेड़ियम रुपनगर,
गुरुनानक स्पोर्ट स्टेडियम, गुरुगोविंद सिंह स्टेडियम जलंधर गुरुनानक स्टेडियम
लुधियाना यह प्रमुख स्टेडियम है, जहां कबड्डी के मैंच वह कबड्डी विश्व कप के मैच
खेले जाते हैं। 
टीमे जो कबड्डी विश्वकप में भाग लेती हैं - भारत, पाकिस्तान, श्री लंका युनाइटेड किंगडम,
युनाइटेड स्टेट, इटली, आस्टेलिया कनाड़ा, जर्मनी, अरजेनटीना, नॉवरवे अफगानिस्तान,
स्पेन, नेपाल आदि टीमे कबड्डी विश्वकप मे भाग लेती है आभी तक जितने भी कबड्डी
विश्व कप हुए है सब मे भारत विजयी रहा है।
कबड्डी मे कैरियर
पहलवानी के इस खेल मे करियर बनाना आपके लिए अच्छा साबित हो
सकता है। जब आप खिलाड़ी होते हैं तो सरकार आपको तमाम सुविधाये प्रदान करती है। 
जैसे- रेलवे टिकट मे छूट, सरकारी अस्पतालो मे छूट, नौकरी मे
छूट आदी कई अन्य तरीके की सेवाये सरकार खिलाड़ियो को देती है। कबड़डी मे आपको
करियर बनाने के लिए चुस्त- दुरूस्त रहना पड़ेगा इसमे अपना करियर आप आसाने से बना
सकते हैं। बस जरुरत है जज्बे की और भरपूर जोश और ताकत की।
 
 
 
No comments:
Post a Comment