अब सांस लेना दुषवार
कितना प्रदूषित होगा भारत.....?
आशीष शुक्ला
आज इस आधुनिक युग मे काम-काज के चलते हम इतने व्यस्त हैं, कि अपनी सेहत का सही से ख्याल भी नहीं रख
पाते, आये दिन बीमार पडते हैं। चारो तरफ धुंआ- धुंआ, वायु पूरी तरह से प्रदूषित हो
चुकी है, सासं लेना दुषवार हो गया है। पर्यावरण को प्रदूषित करने का ठेका लोगों ने
ले लिया है, आज भारत भले विकास के मार्ग पर अग्रसर हो, परन्तु लोगों का विकास आज
तक नहीं हो पाया है। लोग जहां मन करता है वाहां कचरा डाल देते हैं, मौका मिलते ही
सड़कों पर मल-मूत्र करते हैं। गांव के मुकाबले शहरों का प्रदूषण लगभग दुगना या
उससे भी अधिक है। आज जिस तरह जल, वायु, ध्वनि आदि प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है,
इसके पीछे ना सिर्फ कार्पोरेट जगत का हाथ है, बल्कि इसे प्रदूषित करने मे लोगों का
भी बडा योगदान है।
दिल्ली मे रहने वाले लोगों को प्रदूषण का सबसे
ज्यादा सामना करना पड रहा है, अन्य राज्यों के मुकाबले। प्रत्येक व्यक्ति लगभग 30
सिगरेट पीने के बराबर जितनी परेशानियां उत्पन्न होती हैं, उतना बिना पिए ही दिल्ली
वाले प्रदूषण के चलते झेल रहे हैं। विश्व
स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से कराए गए एक अध्ययन मे दिल्ली को दुनिया का
सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर माना गया है। दिल्ली की हवाओं में PM2.5 (सांस के साथ अंदर जाने वाले
पार्टिकल, 2.5 माइक्रोन्स से छोटे पार्टिकल) का कॉन्सनट्रेशन
सबसे ज्यादा (153 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) है। जल,
वायु, ध्वनि हर तरफ का प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। शहरों से प्रतिदिन लगभग 622 टन
करचा निकलता है, यह धरती के लिए खतरा बनता जा रहा है। सड़क किनारे बिखरा कूड़ा
पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, इन कचरो से निकलने वाला धुआं पर्यावरण और लोगों
के लिए खतरनाक है। कूड़े के जलने से निकलने वाली जहरीली गैसें कई प्रकार की
बीमारियों को जन्म देती हैं।
जमीन पर पड़ा कूड़ा बरसात के पानी को रीचार्ज करने के
साथ भूजल तक उन खतरनाक रसायनों को पहुंचा जाता है, जो पानी में मिलने के बाद भूजल
को जहरीला बना देता है। कूड़े के जलने से निकलने वाला धुंआ मानव स्वास्थ्य के लिए
बड़ा खतरा है। धुंए में कार्बन मोनोऑक्साड गैस भारी मात्रा में होती है। जो हवा की
तुलना में भारी होती है, धुआं उस समय और खतरनाक हो जाता है, जब कूड़े में पॉलिथिन,
कपड़े व प्लास्टिक जलता है। इसके जलने से सल्फाइड व नाइट्रोजन की खतरनाक यौगिक गैस
निकलती है। जो स्वास्थ्य के लिए खतरा है। सबसे खतरनाक कूड़ा तो बैटरियों,
कम्प्युटरों, और मोबाइल का है। इसमें पारा, कोबाल्ट और कई जहरीले रसायन होते हैं।
एक कम्प्यूटर का वजन लगभग 3.15 किग्रा होता है। इसमें 1.90 किग्रा लेड और 0.693
ग्राम पारा और 0.04936 ग्राम आर्सेनिक होता है, शेष हिस्सा प्लास्टिक, इसमें
अधिकांश सामग्री गलती- सड़ती नही हैं, जमीन के संपर्क में आकर मिट्टी की गुणवत्ता
को प्रभावित करती हैं और भूगर्भ जल को जहरीला बनाती हैं। देश को विकास चाहिए और
विकास की हर गाथा कुछ न कुछ कीमत जरुर मांगती है। लेकिन, उस कीमत को टिकाऊ बनाना
भी मनुष्य का ही काम है। देश में करीब 50 प्रतिशत सड़कें वन क्षेत्रों में बन रही
हैं। इनमें राष्ट्रीय पार्क हैं, वाइल्डलाइफ सेंचुरी हैं, और विस्तृत रुप में अन्य
आरक्षित वन भी शामिल हैं।
पारिस्थितिकीय स्थिति आज बहुत नाजुक हो चुकी है, इतनी
नाजुक कि शीघ्र ही हमने कोई कदम नहीं उठाया तो स्थिति वश से बाहर हो जाएगी। देश की आबोहवा को अगर सफाई की चादर से नहीं ढका गया तो खुली हवा
में भी सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। वाहनों का धुआं हवा में पांच गुना अतिरिक्त
गंदगी घोल देगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में
कई कंपनियां अपने परिसर से औद्यौगिक कचरे को
ट्रीट किए बिना ही, हिंडन काली और कृष्णा नदियों में डाल रही हैं, जिसके चलते
भूमिगत जल दूषित हो रहा है।
पूरे पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में स्थिति विकराल है।
पर्यावरणीय समस्या एक गंभीर समस्या है, इसे हलके मे नहीं लिया जाना चाहिए,
पर्यावरण प्रदूषण से मुक्त होने के लिए जितना प्रयास केंद्र सरकार द्वारा किया जा
रहा है वह ना के बराबर है। भारत को पदूषण मुक्त बनाने के लिए सरकार को गंभीर कदम
उठाने पड़ेंगे।
(लेखक युवा पत्रकार है)
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