पानी का बंटवारा
22-3-2015
पानी के बंटवारे पर हरियाणा का विवाद केवल पंजाब और
राजस्थान से ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से भी है। हालांकि भौगोलिक
कारणों से स्थितियां एकदम विपरीत भी है। हरियाणा के पानी का हिस्सा पंजाब दबाए
बैठा है और दिल्ली का आरोप रहा है कि हरियाणा उसके हिस्से का पानी देने में हमेशा
आनाकानी करता रहा है जिसके कारण राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को जल संकट झेलना पड़
रहा है। नवीनतम घटनाक्रम के तहत अपर यमुना रिवर बोर्ड की बैठक में हरियाणा के
मुख्यमंत्री ने दो टूक कह दिया है कि दिल्ली को उतना ही पानी दिया जाएगा जितना उसका
हिस्सा बनता है। प्रदेश के लोगों के हक को मार कर पड़ौसी को पानी देना किसी स्तर पर
व्यावहारिक नहीं है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री हरियाणा से अतिरिक्त पानी की अपेक्षा कर रहे हैं
दोनों सीएम के बीच अभी वार्ताओं का सिलसिला चलने की संभावना है लेकिन मुख्य सवाल
यह है कि यमुना के जल पर दिल्ली और हरियाणा का जितना हिस्सा नियत किया गया,
क्या आज के संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता को परखा जा रहा है? क्या विविध कारण बता कर अतिरिक्त पानी के लिए दबाव बनाया जा सकता है?
क्या इस दबाव का कोई कानूनी आधार बन सकता है? बात
सीधी और स्पष्ट है कि दबाव की राजनीति का कोई असर या लाभ होने वाला नहीं।
हरियाणा अपने हिस्से का पानी मांगने के लिए पंजाब पर लगातार
दबाव बनाता रहा लेकिन उसे मिला क्या? सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा जीतने,
केंद्र, पंजाब और हरियाणा में एक ही पार्टी की
सरकार होने जैसे अधिकतम अनुकूल कारकों-कारणों-आधारों के बावजूद हरियाणा की
उम्मीदों-अपेक्षाओं पर हमेशा पानी फिरता रहा। राजस्थान भी जब-तब आंखें तरेरता है।
दिल्ली भी यदि दबाव बनाने की मुद्रा में दिखे तो जरूरी हो जाता है कि हरियाणा अपना
पक्ष, दावा और हक मजबूत करने के लिए तार्किक, व्यावहारिक और न्यायिक मोर्चाबंदी करे। दिल्ली को उसके हिस्से का पानी
देने में संकोच न किया जाए पर साथ ही यह भी देखना होगा कि इस आपूर्ति से स्वयं
उसके हित प्रभावित न हों। दिल्ली में पानी की मांग लगातार बढ़ रही है और आपूर्ति
के परंपरागत स्त्रोत सिकुड़ रहे हैं, स्वाभाविक है कि पानी के
लिए हरियाणा से उसकी अपेक्षाएं बढ़ती जाएंगी। जल बंटवारे पर प्रदेश को अपनी नीति व
नीयत स्पष्ट रखते हुए यह भी सुनिश्चित करना होगा कि किसी तरह का दबाव
प्रदेशवासियों के हितों को प्रभावित न कर पाए।
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