Mar 19, 2015

जेलों में कुव्यवस्था

19-3-2015

सूबे में कानून-व्यवस्था में सुधार की बड़ी चुनौती सरकार के 

समक्ष आ खड़ी हुई है। विधानसभा चुनाव सिर पर है और अपराधी बेलगाम हो गए हैं। चोरी, डकैती, हत्या और सड़क पर लूट की घटनाएं जिस तरह से बढ़ी हैं, उससे लोगों को फिर आठ साल पुराना बिहार दिखाई देने लगा है। दो दिन पहले विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर आमजनों को यह आश्वासन दिया है कि अब वे आ गए हैं तो डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन उनके आश्वासन के बाद पुलिस विभाग ने अभी कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई है, जिससे इस मोर्चे पर आवाम को चिंता सता रही है। प्रशासन की सुस्ती से अपराधी जहां नित नई जरायम शैली को जन्म दे रहे हैं, वहीं अपराधियों को पकड़ने के बाद बांधकर रखने के इंतजाम की पोल भी खुलती जा रही है। देश की गिनी-चुनी जेलों में बेउर का नाम है, इसे आदर्श कारा का दर्जा है। बहरहाल यहां कामकाज ऐसे हो गए हैं कि आदर्श ताक पर नजर आ रहा है। यूं तो पैसे के बल पर जेल में कैदियों की मौज-मस्ती के किस्से आम हैं, पर अभी तक ऐसी कहानी हाईप्रोफाइल अपराधी या किसी राजनीतिक हस्ती के सलाखों के पीछे जाने पर ही सुनी जाती थी, परंतु अब आम कैदी बेउर जेल में साथियों के साथ मौज-मस्ती की तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर रहे हैं। बेउर जेल में बंद दुष्कर्म और चोरी के एक नाबालिग कैदी ने ऐसे फोटो फेसबुक पर तो शेयर किए ही हैं, अश्लील तस्वीरें भी लोड की हैं। यह गंभीर मामला प्रदेश की राजधानी पटना के एसएसपी की नजर तक पहुंच चुका है। इस प्रकरण ने जेल में आदर्श व्यवस्था की पोल खोल दी है।
वैसे आदर्श मानी जाने वाली बेउर जेल में जब-तब प्रशासन के छापे पड़ते रहते हैं। इस जेल में कई कुख्यात और नक्सली भी बंद हैं। इनके वार्ड में जब छापे पड़ते हैं तो बड़ी संख्या में चाकू, सेलफोन, सिम कार्ड आदि बरामद होते हैं। कुछ दिन पहले एक हकीकत सामने आई थी कि कैदी बाहर से खाने के लिए जो मुर्गा मंगाते हैं, उसी में सेलफोन सेट आ जाता है। जेलों में अव्यवस्था का एक और उदाहरण छपरा मंडल कारा में सामने आया है। यहां जिलाधिकारी दीपक आनंद को गुमराह कर जेल अधीक्षक ने चैता का आयोजन कर बार बालाओं को बुला लिया। किसी ने जिलाधिकारी तक सूचना पहुंचा दी तो कारा अधीक्षक सत्येंद्र कुमार के रंगीन मिजाज की पोल खुल गई। जिलाधिकारी के आदेश पर जेल में सदर के अनुमंडल अधिकारी और पुलिस उपाधीक्षक ने छापेमारी की। उन्हें चैता गाने वाली टीम मौके पर मिली। दोनों की जांच रिपोर्ट में जेल अधीक्षक दोषी पाए गए हैं। जिलाधिकारी ने जेल अधीक्षक के विरुद्ध कठोर कार्रवाई के लिए कारा महानिरीक्षक से अनुशंसा की है। ताज्जुब यह कि जांच टीम से कारा अधीक्षक ने हकीकत को तोड़-मरोड़कर पेश किया। जांच टीम को उन्होंने बताया कि जिलाधिकारी के मौखिक आदेश पर चैता का आयोजन किया गया, ताकि कैदियाें का मनोरंजन हो सके। बहरहाल, जांच रिपोर्ट पर कारा महानिरीक्षक ने उनसे दो दिन के भीतर स्पष्टीकरण मांगा है। फिलवक्त आवाम राजनीतिक दलों का कुछ बनाने और बिगाड़ने की हैसियत में आ चुकी है। इसलिए अच्छा यही होगा कि सरकार के आला अफसर कम से कम जेलों की दीवारें सुरक्षित रखें, क्योंकि बाहर अपराध में संलग्न लोगों पर उनकी लगाम ढीली नजर आ रही है।

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